मेरे आज के इस लेख और इसकी भाषा से बहुतों को आपत्ति हो सकती है! लेकिन बीएचयू के छात्र के नाते मैं बेहद दुखी और तकलीफ में हूं। जिस तरह से राजदीप सरदेसाई ने एक के बाद एक झूठ फैलाते हुए बीएचयू को बदनाम करने की कोशिश की है, उसे देखते हुए यदि मैं इसके मुंह पर थूक दूं तो भी कम है! इस दोगले ने अमेरिका में गंदी भाषा और हाथापाई किया ही था न? और इसकी अभिव्यक्ति ब्रिगेड ने तब खुलकर इसका बचाव भी किया था! फिर हमारी भाषा और हमारे तरीके भी अब हम ही तय करेंगे! आज जरूरत इनके खिलाफ हर तरह से उतरने की है। आज सरेआम इसके मुंह थूका जाना चाहिए, जैसे गुलाम भारत में अंग्रेजों के पिट्ठुओं के मुंह पर भारत की आम जनता थूकती थी। यह महा दोगला और पाखंडी है।
राजदीप सरदेसाई भले ही खुद को बड़ा पत्रकार माने। उसके चेले-चपाटे और नौकरी लोलुप पत्रकार उसकी जी-हुजूरी करे। कुंठित वामपंथी बुद्धिजीवी बिरादरी उसकी फर्जी रिपोर्टिंग पर उचक-उचक कर दरबारियों की तरह वाह-वाही करे! लेकिन यह सच है कि राजदीप सरदेसाई पत्रकारिता का सबसे निकृष्ट उदाहरण है!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने के चक्कर में जिस तरह से उसने गौरवपूर्ण इतिहास वाले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय(BHU) को फर्जी खबर चलाकर बदनाम करने का अभियान चलाया है, उसे देखते हुए मैं बीएचयू के एक पूर्व छात्र की हैसियत से कह रहा हूं कि इस व्यक्ति के मुंह पर थूका जाना चाहिए! न इसे महामना मालवीय जी की शिक्षाओं का ज्ञान है, न बीएचयू के इतिहास का पता है, न यहां से निकले विद्यार्थियों ने समाज को क्या दिया है, इसकी जानकारी है, बस अपनी राजनीतिक कुंठा को शांत करने के लिए इसने बीएचयू के खिलाफ लगातार झूठ फैलाया है और इसके लिए इसे चौराहे पर खड़ा कर इसके मुंह पर कालिख पोती जानी चाहिए! इसकी औकात नहीं है कि यह बीएचयू के किसी छात्र से विमर्श कर सके, इसलिए यह झूठ का सहारा लेकर बीएचयू को बदनाम कर रहा है। अरे वो पाखंडी,यह BHU है, JNU नहीं, समझा क्या?
जिस आदमी को नौकरी भी अपनी योग्यता से अधिक अपने ससुर व दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक भास्कर घोष की कृपा से मिली हो, वह किसी गौरवपूर्ण इतिहास वाले शैक्षणिक संस्थान का महत्व क्या समझेगा? जिसने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत में ही माफिया दाउद इब्राहिम के पक्ष में लेख लिखा हो, उसे सच और झूठ के अंदर से आखिर क्या लेना है? जिसने संगठित तरीके से राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रति अभियान चलाया हो, उसे देश की गरिमा से क्या मतलब है? जिसने पूरी जिंदगी एकतरफा रिपोर्टिंग की हो, उसे वस्तुनिष्ठ रिपोर्टिंग का क्या पता है? यह दोगला और पाखंडी पत्रकार शुरु से कांग्रेस का चाटुकार रहा है, लेकिन चाटुकारिता करते-करते कब यह पत्रकारिता का सबसे बड़ा दलाल बन गया, इसे भी शायद नहीं पता है!
चार छात्राओं को प्लांट कर बीएचयू के बारे में यह कहना कि वहां बोलने की आजादी नहीं है, वहां खाने की आजादी नहीं है और वहां वाई-फाई कनेक्शन की आजादी नहीं है-बनारस में इसकी मानसिक दुर्गति से उपजी कुंठा का ही प्रदर्शन है। चार की जगह 40 छात्राओं ने एक दिन बाद ही एक अन्य चैनल पर कहा कि राजदीप सरदेसाई ने बीएचयू को बदनाम करने के लिए झूठ फैलाया है। बीएचयू में बोलने से लेकर खाने तक की पूरी आजादी है। इस मक्कार को यदि बीएचयू के अंदर छोड़ दिया जाए तो बिना किसी की सहायता के यह वहां से निकल भी नहीं सकता और यह बीएचयू को समझने की बात करता है? गदहा कहीं का!
पहली खबर में जब इस दोगले का झूठ पकड़ा गया तो इसने फिर बीएचयू के कुलपति के खिलाफ झूठा अभियान चलाया। इस मक्कार पशु ने यह टवीट किया, “हैरानी, बीएचयू के वीसी त्रिपाठी प्रधानमंत्री के राजनीतिक रोड शो में शामिल हुए। ये कहां आ गए हम?” इस झूठ को चुनौती देते हुए बीएचयू के कुलपति ने जब राजदीप को कानूनी कार्रवाई की धमकी दी तो इस दोगले ने उस टवीट को डिलीट कर दूसरे टवीट में माफी मांग लिया। लेकिन तब तक यह झूठ को प्रसारित कर चुका था और यही इसका मकसद भी था! दाउद से लेकर गुजरात दंगे तक इसने झूठ ही तो फैलाया है! तभी तो मुंह से थूक उड़ाता इसका चेहरा घिनौना और बास मारता लगता है।
राजदीप के टवीट को इसके मक्कार गैंग के सदस्य, जैसे- अरविंद केजरीवाल, आम आदमी की नेता आतिशी, आम आदमी पार्टी का प्रवक्ता वेब ‘जनता का रिपोर्टर’, सीरिया की तस्वीर को कश्मीर का तस्वीर बताने वाला ‘कैच वेब’, सुब्रहमनियन स्वामी के कारण ‘द हिंदू’ की नौकरी खोने वाला सिद्धार्थ वरदराजन का वेब ‘द वायर’ जैसों ने इस पूरे झूठ को खूब फैलाया। लेकिन यह सोशल मीडिया का जमाना है। इन दोगलों का झूठ ज्यादा देर तक टिक नहीं सका और सोशल मीडिया पर ही इनके झूठ की परत खुल गई। माफी तो इसने कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए मांगी थी, वर्ना तो सारी उम्र इसने झूठ ही झूठ फैलाया है!
सोचिए गुजरात दंगे के समय, जब सोशल मीडिया नहीं था, जब राजदीप, बरखा, मनोज मिट्टा, टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस आदि ने पत्रकारिता के नाम कितना गंध और झूठ फैलाया था। इस मक्कार और झूठे राजदीप सरदेसाई की पोल इंडिया टुडे के ही एक रिपोर्टर राहुल सिंह ने खोली थी और उसने बताया था कि राजदीप, तीस्ता सीतलवाड़ के साथ मिलकर गुजरात में खबरें प्लांट किया करता था!
बीएचयू के कुलपति सीएनएन 18 नेटवर्क को दिए साक्षात्कार में में कहा- “मैं उस दिन सारा कार्यक्रम अपने कार्यालय में बैठकर टीवी पर देख रहा था। मेरे रैली में उपस्थित होने के सारे आरोप मुझे और बीएचयू को बदनाम करने की साजिश है। अगर यह सिद्ध हो जाए कि मैं रैली में उपस्थित था तो मैं कोई भी परिणाम भुगतने के लिए तैयार हूं। द्वेषपूर्ण पत्रकार (राजदीप सरदेसाई) ने ट्वीटर पर इस झूठ को फैला कर इस विवाद की शुरुआत की। अगर वो कैंपस में दोबारा आए तो विधिवत पीटे जाएंगे। बिल्कुट पीटे जाएंगे। मैं किसी को मेरे और विश्वविद्यालय के बारे में झूठ फैलाने नहीं दूंगा।”
बीएचयू के कुलपति ठीक कह रहे हैं। राजदीप सरदेसाई जैसों को सड़क पर दौड़ाना जाना चाहिए, जैसा कि अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर पर लोगों ने उसे दौड़ाया था। हां, अभिव्यक्ति ब्रिगेड को स्पष्ट कर दूं कि मेडिसन स्क्वायर पर राजदीप ने ही हाथापाई और गंदी गाली की शुरुआत की थी, लेकिन तब यह अभिव्यक्ति के गुंडे यह कहने नहीं आए थे कि राजदीप ने हाथ-पैर और गंदी गाली का का इस्तेमाल क्यों किया था? इसलिए अब यह तर्क नहीं चलेगा कि लोग गलत भाषा और हाथ-पैर का इस्तेमाल कर रहे हैं! तुमने किया तो कुछ नहीं और हम करें तो अभिव्यक्ति की आजादी का हनन? यह दोगलापन और पाखंड अब हम और नहीं चलने देंगे।
बीएचयू के छात्र होने के नाते मैं बहुत आहत हूं और यदि मौका मिला तो मैं खुद राजदीप के मुंह पर थूक दूंगा! उस दोगले में जरा भी शर्म बची है तो मेरे साथ या फिर BHU के किसी भी छात्र के साथ विमर्श और तर्क कर ले और यदि तर्कपूर्ण बातों में जीत गया तो मान लूंगा कि वह पत्रकार है, अन्यथा वह दोगला था और दोगला ही रहेगा! ससुर और बीबी की पहचान से खड़ा होने वाला, और सोनिया गांधी के पेटिकोट में मुंह छिपाने वाला रीढ़विहीन दोगला, बीएचयू के किसी छात्र का क्या मुकाबला करेगा? राजदीप तुम्हारी औकात नहीं कि तुम बीएचयू परिसर में खड़े भी हो सको। तुम जैसे कलुषित मन वालों के लिए सीवर का ढक्कर जगह-जगह खुला है, जाओ वहां जाकर डूब मरो!