
लगता है RSS हिंदू धर्म को अब्राहमिक बनाकर ही मानेगा!
Sandeep Deo. वसीम रिजवी ने कुरान की करीब दो दर्जन आयतों को हटाने की बात की तो RSS का संस्कार भारती मनु स्मृति को दलित और महिला विरोधी बताकर उसमें संशोधन की बात कर रहा है। हद तो यह है कि संघ का अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना पिछले सात साल में कम्युनिस्टों के लिखे इतिहास की एक लाईन तो बदलवा नहीं सका, रामायण में संशोधन कराएगा!
इन्होंने न मनु स्मृति पढ़ी, न रामायण, न कोई अन्य सनातनी धर्मग्रंथ! ‘पंचमक्कार’ सदियों से हमारे धर्म ग्रंथों को लेकर जो झूठ फैलाते रहे, बिना ज्ञान के संघ के अंदर भी वही झूठ दृढ़ हो चुका है! मुझे याद है, RSS के एक तथाकथित इतिहासकार की पुस्तक के विमोचन में मैं गया था। RSS के एक बड़े नेता ने उस पुस्तक का विमोचन किया था। बौद्ध धर्म के समय से रामायण में शंबूक वध को लेकर जो क्षेपक जोड़ा गया था, उसी क्षेपक को उस पुस्तक में जस्टिफाई किया गया था। मैं सन्न रह गया!
उस दिन मेरा माथा ठनका कि RSS के अंदर किसी ने भी सनातन धर्म ग्रंथों को ठीक से पढ़ा भी है या नहीं? इसकी पुष्टि तब और हुई जब हेमंत शर्मा जी की पुस्तक ‘युद्ध में अयोध्या’ के विमोचन अवसर पर स्वयं RSS प्रमुख मोहन भागवतजी ने कहा कि ‘मेरा नाम भागवत जरूर है, लेकिन मैंने भगवत नहीं पढ़ी है। जो भी सुना है कथा वाचकों से सुना है।’ मैं तब कंफर्म हो गया कि संघ और सनातन के बीच अज्ञानता की एक गहरी खाई है।
गुरु गोलवलकर जी की जीवनी लिखने के दौरान भी शोध के लिए संघ के जिन वरिष्ठ स्वयंसेवकों से मिला, उनके अंदर इतिहास बोध की शून्यता पाकर मन बड़ा खिन्न हुआ था। मेरी गुरुजी वाली पुस्तक में भारत विभाजन का वह इतिहास है, जिसे लंबे समय से दबाया गया है। मुझे लगा संघ के नेताओं को प्रसन्नता होगी, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह पुस्तक एक साल तक रुकी रही। उस पर ढेर सारे ऑब्जेक्शन लगा दिए गये थे। बाद में ऐतिहासिक सत्यता की पुष्टि होने पर वह पास हुआ। अर्थात संघ भी विभाजन का उतना ही इतिहास समझता है, जितना मार्क्सवादी-नेहरूवादी इतिहासकारों ने लिखा है!
इस सबके बाद ही मेरे मन में यह दृढ़ हो गया कि संघ ‘पोलिटकल हिंदुत्व’ का वाहक भले हो, ‘सांस्कृतिक हिंदुत्व’ की समझ उसके अंदर बिल्कुल भी नहीं है।
और भागवतजी के ‘हिंदू धर्म में आरंभ में केवल रुद्र और इंद्र थे बाद में नये नये देवता बने’ ’50 साल के लिए मूर्ति पूजा छोड़ दो’ ‘हिंदू मुसलमान दो नहीं, एक हैं’- जैसे बयान ने इसे और स्पष्ट कर दिया है।
यदि भारत में भक्ति आंदोलन जैसा कोई सांस्कृतिक पुनर्जागरण होना है तो आपको संघ से निराशा ही साथ लगेगी। अतः हाथ जोड़ कर सभी सनातनियों से निवेदन है कि अपने धर्मग्रंथों का पठन-पाठन आरंभ करें, अपने बच्चों को रामायण-महाभारत समझाने के लिए सप्ताह में कुछ घंटे निकालें, इतना नहीं पढ़ सकते हों तो कम से कम गीता का पाठ तो आरंभ कर ही दें। उसे समझें और समझाएं।
अन्यथा संघ आपको अब्राहमिक रिलीजन के समकक्ष खड़ा कर देगा, और अज्ञानता के कारण आपको इसका पता भी नहीं चलेगा। ज्ञान का कोई विकल्प नहीं है, और संघ व ज्ञान के बीच जैसे एक द्वंद्व है, यह अब स्पष्ट है। संघ और उसकी राजनीति-सांस्कृतिक सभी संस्थाएं और नेता पंचमक्कारों से प्रमाण पत्र पाने के लिए जैसे लालायित रहते हैं, उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ अज्ञानता है।
ज्ञान आत्मविश्वास देता है, और अज्ञानता आत्मविहीन कर देता है।संस्थाएं जड़ होती हैं, वह नहीं बदलती, स्वतंत्र मानव के अंदर चेतना होती है, अतः बदलना आपको होगा। यह स्पष्ट है। जय भारत!
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