विपुल रेगे। बॉबी देओल की नई फिल्म ‘लव हॉस्टल’ ऑनर किलिंग पर आधारित है। एक जाट समुदाय की लड़की और एक मुस्लिम युवा के प्रेम प्रसंग को इसका आधार बनाया गया है। फिल्म समीक्षकों के लिए अब एक सुविधा है कि उनको एक ऐसी फिल्म मिल गई है, जिसमे लव जिहाद नहीं है। इस फिल्म में छवि को लेकर बड़े प्रहार किये गए हैं। निर्देशक ने जाट समुदाय को दरिंदा दिखाया है और मुस्लिम प्रेमी को निर्दोष ढंग से प्रस्तुत किया है।
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फिल्मों की कहानियां काल्पनिक होती हैं लेकिन उनका असर समाज पर व्यापक रुप से होता है। लव हॉस्टल भी एक काल्पनिक कथा है लेकिन इसमें से जो मैसेज निकलकर आता है, वह दर्शक की सोच को प्रभावित करता है। हरियाणा की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में नायिका ज्योति एक बड़ी राजनेता की पोती है और नायक आशु एक मुस्लिम परिवार से है।
दोनों में प्रेम हो जाता है। दादी इस रिश्ते के विरुद्ध है और वह लड़की का विवाह अन्यत्र तय कर देती है। लड़की विवाह से पहले ही घर से भाग निकलती है। उनका विवाह कोर्ट में होता है और दोनों को एक सेफ हाउस पहुंचा दिया जाता है क्योंकि लड़की के परिवार वाले दोनों पर हमला करवा सकते हैं । दादी इस विवाह को अपना और समाज का अपमान समझती है।
वह अपने एक गुर्गे डागर को आदेश देती है कि दोनों को मार दिया जाए। दादी का भेजा हत्यारा दोनों को खोजने निकलता है और थोक में बहुत से दूसरे लोगों को भी मारता जाता है। अंत में ये कथा एक दुःखद अंत की ओर बढ़ती है। निर्देशक शंकर रमन की ये ऑनर किलिंग वाली फिल्म खून से लथपथ है और वितृष्णा पैदा करती है। पूरी फिल्म में डागर और दोनों प्रेमियों के बीच लुकाछुपी चलती रहती है।
डागर स्वयं को एक समाजसेवी मानता है और प्रेमियों को वह समाज की गंदगी की तरह देखता है। ऑनर किलिंग को लेकर बनी इस फिल्म में हिंसा के दृश्य अत्यंत वीभत्स दिखाए गए हैं। डागर को एक मनोरोगी की तरह प्रस्तुत किया गया है। वह गोली चलाते समय बिलकुल विचार नहीं करता है। आशु एक ऐसा किरदार है, जिसके परिवार पर पहले ही आतंकी होने का ठप्पा लगा हुआ है।
जब आशु देखता है कि उसके बचने का कोई मार्ग नहीं है तो वह भी हथियार उठा लेता है। ऐसा लगता है निर्देशक एक विशेष वर्ग को क्रूर दिखाना चाहता था। बॉलीवुड की अन्य फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी आशु एक बेचारा पात्र है। जबकि हम वास्तविक समाज में देखते हैं तो स्थिति इससे विपरीत दिखाई देती है। आज ऑनर किलिंग से अधिक मामले लव जिहाद के आ रहे हैं।
फिल्म दर्शक में कोई उत्साह नहीं जगाती। डागर बेहिसाब हत्याएं करता चला जाता है। खून इस फिल्म में पानी की तरह बहाया गया है। एक समलैंगिक कपल भी इस फिल्म में दिखाई देता है। इस कथा में इस एंगल की तो कहीं भी आवश्यकता ही नहीं थी। बॉलीवुड वाले अब बहुत खुले विचारों के हो गए हैं और अब नियमित रुप से अपनी फिल्मों में ऐसे एंगल डालने लगे हैं।
क्लाइमैक्स हॉलीवुड की फिल्मों की तरह बनाया गया है और ज़रा भी प्रभावित नहीं करता। लव हॉस्टल एक अत्यंत हिंसक फिल्म है और सपरिवार देखने योग्य नहीं है। ये फिल्म आपको मनोरंजन नहीं देती अपितु तनाव में डालती है। बच्चों को इस फिल्म से दूर ही रहना चाहिए। वास्तव में लव हॉस्टल किसी भी दर्शक वर्ग के देखने लायक नहीं है। बॉबी देओल ने डागर का किरदार तन्मयता से निभाया है लेकिन उनका समर्पित अभिनय कचरे की टोकरी में ही जाकर गिरा है।