दिल्ली में भी लुटिया डूबी , भारत में डूबेगा “लोटा” ;
अब्बासी – हिंदू न जीतेगा , हिंदू उसको करेगा “नोटा” ।
जितने भी खोटे सिक्के हैं , चलन से उनको बाहर कर दो ;
जितने भी हैं धर्म के द्रोही , एक-एक को सबक सिखा दो ।
कितना लालच अय्याशी का ? धर्म से भी गद्दारी करते ;
राजनीति के मगरमच्छ हैं , राजनीति को गंदा करते ।
हिंदू-जनता पहचान चुकी है , मन में अपने ठान चुकी है ;
अब्बासी-हिंदू है धर्म का दुश्मन,काशी में भी जान चुकी है ।
काशी के मंदिर तुड़वाकर , गलियारा बनवाते हो ;
कितना गंदा षड़यंत्र कर रहे ? धर्म – नींव ढहवाते हो ।
क्या भस्मासुर का वंशज है ? भस्म सभी कुछ कर देगा ;
पापी – मन की कठपुतली है , गंदा – खेला कर देगा ।
तूने ऐसा जाल बिछाया , पार्टी को लकवाग्रस्त कराया ;
तेरे संग – संग सब डूबेंगे , हिंदू ने “ब्रह्मास्त्र” उठाया ।
“हिंदू का ब्रह्मास्त्र” है “नोटा” , हर हाल में तुझे हराना है ;
त्यागपत्र देकर पद छोड़ो , वरना सब कुछ जाना है ।
गद्दी से काहे चिपके हो ? जब भला राष्ट्र का कर न पाओ ;
देश-सेवा को भूल गया तू , अब तो इसकी सजा ही पाओ ।
तेरी जितनी भी दीवारें , एक-एक करके दरकेंगी ;
घर की छत भी उड़ जायेगी , नींव भी पूरी धंसकेगी ।
फूट डालकर राज करो , ये फार्मूला फ्लॉप हो चुका ;
अब्राहमिक तेरा फार्मूला , हिंदू जागकर फ्लॉप कर चुका ।
तेरी बातों से न बहकेगा , अब हिंदू सावधान हो गया ;
सारे पापों की सजा मिलेगी , तेरा अच्छा युग बीत गया ।
अब तक हिंदू विकल्पहीन था , पर अब सशक्त विकल्प है ;
इकजुट-जम्मू, इकजुट-हिंदू, इकजुट-भारत का संकल्प है ।
जम्मू में “अंकुर” फूटा है , “इकजुट-जम्मू” आया है ;
“इकजुट-भारत” इसे बनाना , हिंदू – मन को भाया है ।
आमचुनाव जो आने वाला,”इकजुट-भारत” का विकल्प है ;
अबकी बार हो सत्ता इसकी , हिन्दू का “दृढ-संकल्प” है ।
“इकजुट-भारत” की सत्ता ही , न्याय का शासन लायेगी ;
हजार बरस की जो है लानत , हिन्दू की गुलामी जायेगी ।
इस्लामी – शासन नहीं रहेगा , सारे भेदभाव टूटेंगे ;
सर्वश्रेष्ठ है “धर्म – सनातन” , इसके ही सिद्धांत बचेंगे ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”,रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”