“महाकुम्भ” है तभी सार्थक
मत करो भरोसा नेता पर , अपनी-बुद्धि से काम करो ;
सदा सतर्क रहना तुम हिंदू ! वरना निश्चित बेमौत मरो ।
“महाकुम्भ” का लालच देकर , पूरा – देश बुलाते हैं ;
अपनी राजनीति चमकाकर , भगदड़ में मरवाते हैं ।
अंतिम-संस्कार से वंचित करके , लाशें गायब करवाते हैं ;
हिंदू की जान है इतनी सस्ती , कीड़ा-मकौड़ा मानते हैं ।
भेदभाव कर रहे धर्म में , वी आई पी करते हैं अय्याशी ;
पददलित कर रहे ये हिंदू को, क्या है अयोध्या क्या काशी ?
अब्बासी-हिंदू ये हिंदू – नेता , धर्म का सत्यानाश कर रहे ;
म्लेच्छों के हक में काम कर रहे ,भारत को बरबाद कर रहे ।
नेता-अफसर की बुद्धि भ्रष्ट है , भ्रष्टाचार का है परिणाम ;
चरित्रहीन अब्बासी-हिंदू , हिंदू का करवाते कत्लेआम ।
सच्चे-धर्म से दूर कर दिया , पाखंडों में फंसा रखा है ;
हिंदू-बच्चों को गंदी-शिक्षा , पौराणिक-मंदिर को तोड़ रहा है ।
मंदिर तोड़ करे गलियारा , तीर्थ-स्थल को नष्ट कर रहा ;
अब्बासी-हिंदू भारत का नेता , हिंदू-धर्म को नष्ट कर रहा ।
जैसे – जैसे धर्म छूटता , चरित्रहीनता बढ़ती जाती ;
स्वार्थ ,लोभ व लालच बढ़ता , पूरी-शांति नष्ट हो जाती ।
सब कुछ है पर कुछ भी नहीं है,चरित्र नहीं तो कुछ भी नहीं है;
सब कुछ वहाॅं नष्ट ही समझो , चरित्र की दौलत जहाॅं नहीं है ।
अभी समय है हिंदू ! संभलो,अब्बासी-हिंदू के जाल को तोड़ो ;
अपने सच्चे-धर्म में लौटो , अपने भाग्य-चक्र को मोड़ों ।
“भविष्य-मालिका” भविष्य का दर्शन , स्पष्टतया बतलाता है ;
हिंदू ! अगर नहीं संभला तो रक्त का सागर बहता है ।
सौ-करोड़ से ज्यादा जीवन , रक्त के सागर में डूबेंगे ;
तेंतीस-करोड़ ही “विष्णु-कृपा” से , मौत के मुंह से निकलेंगे ।
सोना – चांदी , रुपया – पैसा , तेरा सब – कुछ धरा रहेगा ;
कुछ भी काम नहीं आयेगा , बुरी मौत मारा जायेगा ।
अब्बासी – हिंदू की यही योजना , हिंदू – धर्म मिटाना है ;
अब्राहमिक – ग्लोबल – एजेंडा , उसको पूरा करवाना है ।
गजवायेहिंद ये नेता चाहे , म्लेच्छों को ताकत देता है ;
टैक्स-डकैती हिंदू पर है , म्लेच्छों को जजिया देता है ।
जागो हिंदू ! अब तो जागो, “महाविष्णु” की कृपा को पाओ ;
“शंकराचार्य” ही धर्म-मूर्ति हैं , उनसे सच्चे-ज्ञान को पाओ ।
सबसे पहला काम यही हो , अच्छी – सरकार बनाना है ;
“महाकुम्भ” है तभी सार्थक , “धर्म का मर्म” समझना है ।