सत्यान्नास्ति परो धर्मः
ना नृतात्पातकं परम् |
सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है और असत्य से बड़ा कोई पातक नहीं । मैं गणेश शंकर उपाध्याय काशी में भोग और मोक्ष के प्रदाता भगवान श्री भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग महाप्रभु का किंकर सेवक, काशी के मोक्ष स्थल काशी करवत मंदिर का महंत.
काशी में यह स्थान और इस स्थान की महंत परंपरा, सदैव परमपरया निर्विवाद, निष्कलंक – और धर्म मार्ग से इतर राजनीति आदि विषयों से विरत रही। महंत पद का उत्तरदायित्व व महाप्रभु भीमेश्वर की निर्वहन सेवा और परंपरा का धर्म दृष्टि से निर्वहन करना और उसको अक्षुण रखना रहा है।
कालांतर में अनेक बार सामाजिक व राजनैतिक आग्रह महंत परंपरा को रहा । यथा अंग्रेजी शासन में हमारे महंत पद को ज्युरी की सदस्यता का आग्रह एकाधिक बार रहा, जिसे तत्कालीन महंत ने विनय पूर्वक अस्वीकार कर अपने पद की गरिमा को संरक्षित रखा|
मेरे पूज्य पिता महंत पं. अम्बाशंकर उपाध्याय जी ने अपना संपूर्ण जीवन एक धर्म योद्धा के जैसे व्यतीत किया। कुम्भपर्व पर अपना सर्वस्व अर्जित धन दान करने वाले राजा हर्षवर्धन को कौन नहीं जानता, उसी प्रकार उनकी जीवनस्चर्या हर्षवर्धन से प्रभावित रही। उन्होंने अपने सांसारिक जीवन में शिव से सायुज्य प्राप्त होने तक प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर अपने गृहस्थ जीवन के उत्तरदायित्व को द्वितीयतः रखते हुए अपने समस्त अर्जित धन को भगवान भीमेश्वर को अर्पित कर देते थे और उस आयोजन का शीर्षक होता था “महाशिवराति महोत्सव’ जिसका उपसंहार रंगोत्सव से होते हुए होली पर्व पर होता था। इस प्रकार प्रतिवर्ष उनका एकाउंट बैलेंस शून्य पर होता था।
ऐसी महनीय त्याग परंपरा जिसमें अनेकों गृहस्थ संत उत्पन्न हुए, जिन्होंने समाज में गृहस्थ सन्यास के प्रतिमान को उपस्थित किया । प्रारब्धयोगात् मुझे ऐसा गौरवशाली पद प्राप्त हुआ।
दैव एवं गुरु कृपा से जो अल्पकाल व्यतीत हुआ उसमें पूर्ण धैर्य, निष्ठा, समर्पण के साथ सजग रहते हुए धर्माचरित आचरण पर आयास पूर्वक मैने प्रतिनिधित्व किया, किन्तु वर्तमान उपस्थित मीडिया के वितंडावाद से मुझे अतीव मानसिक क्षोभ है। विगत 9 (नौ) वर्षों में अनेक झंझावात में कई अस्तित्व रक्षा संबन्धी संकटों का सामना हुआ, जिन्हें मैने प्राणपण से अपने धर्म के रास्ते पर चलते हुए भगवान भीमेश्वर प्रभु की कृपा से निरंतर बिना विचलित हुए आगे बढ़ता रहा, किन्तु 9 (नौ) वर्षों की तपस्या के सापेक्ष विगत 9 (नौ) दिन कठिन व्यतीत हुए। यहाँ पर “महाकवि माघ ” का कथन स्मरणीय है कि धूल भी पैरों से रौंदी जाने पर उपर उठती है, तब जो मनुष्य
अपमान को सहन कर भी स्वस्थ रहे, निष्प्रभावी, रहे, उससे तो पैरों की धूल ही अच्छी है। वर्तमान की घटना से क्षोभाग्नि में मेरी स्वाभाविक सौम्यता आहूत हो गयी।
सुनु प्रभु बहुत अवग्या किएँ। उपज क्रोध ग्यानिन्ह के हिएँ॥
अति संघरषन जौं कर कोई। अनल प्रगट चंदन ते होई॥
शीतलता जिस चंदन का धर्म है वह भी अति संघर्ष करने से अपने निज गुण धर्म के विपरीत अग्निज्वाला प्रकट करता है. मेरी जीवनस्चर्या कभी भी धर्म से इतर न रही होगी | मैं अनेकशः यह घोषित कर चुका हूँ कि छल छदम युक्त राजनीति जैसे विषय में मेरी भिज्ञता सदैव शून्य से भी कम रही। यही कारण रहा कि मैं आसानी से शिकार हुआ और इससे उपजी आह्निक क्रमभंगता ने मुझे आत्यन्तिक स्तर पर विचलित कर दिया। इस संपूर्ण घटनाक्रम में मैं निजी तौर पर किसी को भी दोषी नहीं मानता | यह सब दैवीय विधान मानकर भीमेश्वर प्रभु को न्याय हेतु मुखापेक्षी हूँ क्योंकि वह न्याय व्यवस्था संसार में सर्वोच्च है उस पर अटूट विस्वास हैं, किन्तु –
ऐक्यं बलं समाजस्य तद्भावे स दुर्बल: तस्मादैक्यम प्रशंसन्ति दृढं राष्ट्र हितैषिणः किसी भी समाज की दुर्बलता या सबलता उसके ऐक्य पर घात करने से प्रभावित होती है। अतः सर्व विध राष्ट्रहित में एकता’ भावही प्रसन्शनीय है। इससे ही राष्ट्रोत्कर्ष संभव होगा !
वर्तमान उपस्थित विवादों से सनातनी हिन्दुओं का ऐक्य ही प्रभावित प्रतीत हुआ | इस सामाजिक क्षति के साथ व्यक्तिगत संदर्भ में भी जो स्वभावगत क्षरण या मानसिक वेदना का आघात हुआ है।
अस्तु!
मेरी प्रबल मान्यता है कि इस प्रवाहको “निरन्तरता देने के लिए मैं स्व विवेक से धर्मनिष्ठ याज्ञिक, कर्मकाण्ड मर्मज्ञ व पद हेतु सामर्थ्यवान अनुज डॉ. दिनेश अम्बाशंकर उपाध्याय, को श्री काशी करवत मंदिर के अगले महंत पद पर निश्चित करता हूँ। आज अभी इसी सभा से मैं महंत पद को उसकी गरिमा, मर्यादा और निर्बाध परंपरा के रक्षणार्थ त्याग कर रहा हूँ ताकि पश्चाताप के प्रायश्चित हेतु स्वंतत्र हो सकूं !
श्री भीमेश्वरार्पणमस्तु । असतो मा सद्गमयः तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा अमृतं गमयः