
मनोज मुन्तशिर ने जम कर धोया झूठे देवदत्त पट्टनायक को
Sonali Misra. हिन्दू देवी देवताओं के सहारे प्रसिद्धि पाने वाले और फिर हिन्दू देवी देवताओं को ही झूठ ठहराने वाले देवदत्त पट्टनायक को कल गीतकार मनोज मुन्तशिर ने जम कर धोया। मनोज मुन्तशिर इन दिनों छद्म सेक्युलर बुद्धिजीवियों के निशाने पर हैं, जिन्होनें आज तक हिन्दुओं को और हिन्दू धर्म की गलत छवि प्रस्तुत की है। देवदत्त पटनायक जो पहले ही हिन्दू धर्म और देवी देवताओं के विषय में उल्टासीधा लिखकर और मूल रामायण आदि न पढ़कर अपनी पुस्तक सीता में अजीबोगरीब तथ्य लिख चुके हैं, वह अचानक से ही मनोज मुन्तशिर पर टूट पड़े।
मनोज मुन्तशिर ने एक वीडियो साझा किया था, उस वीडियो में बहुत ही स्पष्ट पूछा था कि आप किसके वंशज हैं? और जो एक प्रश्न सभी के मन में बार बार आता है कि हम लोग बचपन से ही ग से गणेश पढ़ते हुए आए थे। अब एकदम से ऐसा क्या हुआ कि ग से गधा पढने लगे हैं। परन्तु सबसे ज्यादा चोट शायद तब लगी जब उन्होंने मुगलों को ग्लोरिफाईड डकैत कहा।
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अब मुगलों को कोई ग्लोरीफाईड डकैत कह दे और सेक्युलर लोग शांत बैठ जाएं? ऐसा नहीं हो सकता। और ऐसा हुआ भी नहीं। इरफ़ान हबीब से लेकर कई पत्रकार चले आए।
मगर अपनी पुस्तकों में हिन्दू धर्म के तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने वाले देवदत्त पटनायक बहुत कुपित हो गए। और उन्होंने ट्वीट किया कि “इस आदमी को इतिहास किसने पढ़ाया? वह बंगाल पर मराठा आक्रमण को क्या कहेगा?” और फिर उन्होंने कोई वीडियो भी शेयर किया था
मनोज मुन्तशिर ने कहा था “पिछली कई सदियों से हमने अपने इतिहास की जमीनें लावारिस छोड़ रखी हैं। हम कभी जाकर देखते ही नहीं हैं कि हमारे बाप दादाओं की जमीन पर कौन सी फसल बोई जा रही है और यह फसल कौन बो रहा है। किस नियत और बदनीयती से बो रहा है।”
वह इस धरती को गौतम और नानक की जमीन कहते हुए कहते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी उपेक्षा से यह जमीन ऐसे लोगों के हाथ में लग गयी जिन्होनें कलंक के बीज बो दिए।”
फिर वह कहते हैं कि बिलकुल यही हुआ है तभी तो हम इस हद तक ब्रेनवॉश्ड हो गए कि अचानक हमारी प्री प्राइमरी टेक्स्ट बुक्स से ग से गणेश हटाकर ग से गधा लिख दिया गया और हमारे माथे पर बल तक नहीं पड़ा। हमारे घर तक आने वाली सड़कों के नाम भी किसी अकबर, हुमायूं, जहांगीर जैसे ग्लोरिफाइड डकैत के नाम पर रख दिए गए और हम रिबन काटते मौकापरस्त नेताओं को देखकर तालियां बजाते रहे।”
फिर वह कहते हैं कि अचानक से नैरेटिव बदल दिया गया और आदर्श राज्य अगर अकबर का था तो रामराज्य क्या था? वो आदर्श नहीं था। अकबर के राज्य में हज़ारों किसानों को जजिया न देने के कारण फांसी पर टांग दिया गया था, क्या वह आदर्श राज्य होता है?”
चित्तौड़गढ़ में 30 हज़ार लोगों को जेहाद के नाम पर काट डालने वाला आदर्श राजा था? आगरा के किले के सामने मीना बाज़ार लगवाने वाला जिल्लेइलाही था? जिल्लेइलाही, यानी ख़ुदा की परछाई। ये कौन सा खुदा है, जिसकी परछाई इतनी काली है?” वह यह भी कहते हैं कि मुझे बहुत दुःख होता है कि मेरे कुछ मुसलमान भाई मुगलों और तुर्कों की ओर उठने वाली उंगली को इस्लाम की ओर उठने वाली उंगली मान लेते हैं। और उसके खिलाफ हो जाते हैं।
वह कहते हैं कि अपने हीरोज़ और विलेन्स जात-पात से ऊपर उठकर चुनिए, जो इस महान देश की परंपरा है। रावण कौन था, वह एक ब्राह्मण था। भगवान ब्रह्मा की डायरेक्ट ब्लड लाइन में जन्मा था, लेकिन आपने किसी ब्राह्मण को रावण की स्तुति करते देखा है?” मगर उनका मुगलों पर हमला करना सभी को चुभ गया।
पर एक बात समझ नहीं आई कि देवदत्त पटनायक जिसकी किताब सीता में जमकर तथ्यों के साथ तोड़फोड़ हुई है और सरासर झूठ परोसा हुआ है, उन्हें इतनी चिढ़ क्यों हो रही है। इन दिनों हिन्दू और हिंदुत्व को अलग करने वाले देवदत्त पटनायक को एक समय में हिन्दुओं का बहुत प्यार मिला था। पर वह “सीता” में पुत्रकामेष्टियज्ञ के बहाने यह स्थापित करने का प्रयास करते हैं कि इसके बहाने ऋषयश्रंग ऋषि नियोग प्रथा को करने आए थे। जबकि वह स्वयं लिखते हैं कि वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख नहीं है।


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और इतना ही नहीं, वह यह लिखते हैं कि भारत के महाकाव्य रामायण और महाभारत कई सदियों के बाद अपने अंतिम प्रारूप में आए, जो कि बौद्ध धर्म के बाद भी जारी रहा।
सीता में देवदत्त पटनायक ने जो झूठ परोसा है, वह उन्हें शायद और बौखलाने पर विवश कर रहा है। ताड़का वध के मध्य ही सीता और राम का परिचय करा दिया है, जबकि न ही वाल्मीकि रामायण और न ही तुलसीदास कृत रामचरितमानस में ऐसा कुछ है। उन्होंने यह जरूर कहा है कि यह प्रकरण भवभूति के आठवीं सदी में लिखे गए नाटक महावीर चरित में था।
और उसके बाद वह क्या लिखते हैं यह महत्वपूर्ण है कि रामायण में अनेक राक्षसी स्त्रियों को अपमानित किया गया है या उनका वध किया गया है। ताड़का का नाम सबसे पहले आता है और उसके बाद शूपर्णखा का नाम आता है परन्तु इसके अतिरिक्त और नाम भी हैं जैसे अयोमुखी, सिंहिका, सुरसा, लंकिनी, और यहाँ तक कि रावण की पत्नी मंदोदरी और महिरावण की पत्नी चंद्रसेना। इस बात को मानना कठिन लगता है कि ये केवल वन्य तथा अपालित प्रकृति के नाम पर रूपक भर हैं, स्त्रियों के प्रति पुरुषों की हिंसा को स्वीकृति दी गयी हैं।
और राक्षसों से वन को खाली कराने के कार्य को वह मिशनरियों के कार्य के साथ जोड़ते हैं। वह कहते हैं कि ऋषियों के इस कार्य को मिशनरियों के कार्य से जोड़ा जा सकता है, यूरोपीयन ने भारत के औपनिवेशीकरण को ध्यान में रखते हुए, इस व्याख्या को प्रश्रय दिया और भारत के शासक, जमींदार और पुरोहित सम्प्रदाय का साथ दिया। तो जब ऐसे झूठ लिखने वाला व्यक्ति, अपने हर विरोधी को गौ-मूत्र पिलाने की धमकी देने वाला व्यक्ति राम राज्य को कैसे आदर्श मान सकता है, जब उसके लिए ऋषि ही ईसाई मिशनरी जैसा कार्य करते थे।
जब मनोज मुन्तशिर यह कहते हैं कि राम राज्य आदर्श राज्य था, तो देवदत्त जैसों का चिढ़ना स्वाभाविक है क्योंकि देवदत्त के अनुसार राम आदर्श नहीं थे। वह अपनी किताब में ज्योतिषीय गणना के अनुसार राम जन्म बताते तो हैं, परन्तु आदर्श नहीं मान सकते, क्योंकि जो व्यक्ति अपने विरोधियों को गौ-मूत्र पीने की बात करता है, वह कैसे मनोज मुन्तशिर के विषय में कुछ विशेष कह सकता है।

और वह कवि डकैत कह उठते हैं। मगर मनोज मुन्तशिर ने उन्हें बहुत स्पष्ट कहा है कि आप इतने असुरक्षित क्यों हो गए हैं ज्ञानी महाराज! कई दिनों से आप अपनी अनपोप्युलर ओपिनियन दागे जा रहे हैं। अटेंशन की बहुत भूख है आपको। मनोज ने यह भी कहा कि बाजारू थ्योरी फ्लोट करने के लिए एक बहुत बड़ा समाज आपसे चिढ़ता है, पर शायद देवदत्त एक बड़े वर्ग को चिढ़ाना ही चाहते हैं और तभी इन दिनों हिंदुत्व और हिन्दू धर्म पर श्रृंखला चला रहे हैं, जिसमें वह उन लोगों को पिछड़ा बताते हैं, जो हिंदुत्व की बातें करते हैं।
दरअसल, वह इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर अब लोग हिन्दू पहचान को लेकर मुखर क्यों हो रहे हैं? क्यों वह वामपंथी और मिशनरी वाली थ्योरी पर विश्वास नहीं कर रहे हैं? क्यों वह उस एजेंडे पर विश्वास नहीं कर रहे हैं, जो अब तक मिशनरी और वामपंथी परोसते हुए आए हैं? और जब ऐसे झूठे लोगों से प्रश्न किया जाता है, तो वह इसी प्रकार लिखते हैं। देवदत्त पटनायक हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हर वह लेख और स्टोरी साझा करते हैं, जिसमें एजेंडा होता है जैसे इंदौर में चूड़ी वाली स्टोरी।
हालांकि इससे पहले रवीना टंडन ने भी सावरकर पर कहे गए आपत्तिजनक ट्वीट पर देवदत्त पटनायक को घेरा था
देवदत्त पटनायक के अनुसार शाकाहार करने वाले लोग सबसे ज्यादा असहिष्णु एवं हिंसक होते हैं। और ऐसा इन दिनों उनकी टाइमलाइन पर काफी दिख रहा है। और जब ऐसे एजेंडा वालों का झूठ पकड़ा जाता है, तो वह इसी तरह उन लोगों का अपमान करते हैं, जो अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं और अपने धर्म पर गर्व करते हैं।
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