पुस्तक का नाम: सैफ्रॉन स्वोर्ड्स : 52 एपिसोड्स ऑफ़ सनातनी वेलोर अगेंस्ट इनवेडर्स‘
लेखिका: मानोशी सिन्हा रावल
प्रकाशक: गरुड़ प्रकाशन
पृष्ठ : 404
भाषा: अंग्रेजी
मूल्य: 499 (प्रिंट)
यदि मैं पूछूं कुर्मा देवी कौन थीं, उन्होंने क्या पराक्रम किया था? तो अधिकांश लोग सिर खुजलायेंगे या तुक्के मारेंगे। अगर मैं पूछूं हंबीरराव मोहिते, बाबा दीप सिंह, शिवप्पा नायका, हाड़ी रानी कौन थे, इन्होने क्या क्या किया? तो लोग गूगल सर्च करने लगेंगे। लेकिन यदि मैं पूछूं औरंगजेब, बाबर, हुमायूँ, अकबर कौन थे? तो उत्तर में कुछ न कुछ जरूर सुनने को मिलेगा। आखिर ऐसा क्यों हुआ? जब कभी भी स्कूलों और उच्च शिक्षण स्थानों की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों पर नजर मारते हैं तो हमारे सामने क्या आता है? मुगलों का इतिहास, आक्रमणकारियों का महिमामंडन, विदेशियों का गुणगान और साथ ही भारत के लोगों का बड़ा ही तुच्छ वर्णन। या कोई भी वर्णन नहीं। हम सबने यही इतिहास पढ़ा है और आज भी लगभग ऐसा ही चल रहा है।
इसका परिणाम क्या हुआ? इस देश के लोग हीन भाव से भर गए। विदेशियों के गुणगान के कारण हमारे लोगों की आस्था के केंद्र विदेश बन गए। और जो भारत सहस्रावदियों से मानवता का संदेश दे रहा है वह भारत और उसकी परम्पराएं सिकुड़ती चली गई। इसके पीछे का कारण क्या है? कारण है, इस देश का इतिहास भारत विरोधी और विदेशी चापलूसों ने लिखा है और योजनाबद्ध तरीके से लिखवाया गया है। दूसरा कारण भारत भक्तों की निष्क्रियता भी रही होगी, जिन्होंने ये सब होने दिया अथवा स्वयं इतिहास लेखन का काम नहीं किया। तीसरा, यदि ऐसा इतिहास लिखा भी गया होगा तो भारत भक्तों ने अपने आलस के कारण उसका अध्ययन नहीं किया। परिणाम आज का परिदृश्य।
पर अब घड़ी की सुई घूमी है और भारत को भारत की दृष्टि से देखने वाले लोग इतिहास लेखन के इस क्षेत्र में आगे आ रहे हैं। उनमे से एक सुप्रसिद्ध नाम है मानोशी सिन्हा रावल का। मानोशी सिन्हा रावल की पहली पुस्तक ‘सैफ्रॉन स्वोर्ड्स भाग 1’ (अंग्रेजी भाषा में) ने भारत के लोगों को उपरोक्त प्रश्नों के बारे में सोचने के लिए विवश किया है साथ ही अनेक छुपे और षड्यंत्रपूर्वक छुपाये गए उत्तर भी दिए हैं। अब मानोशी की दूसरी पुस्तक ‘सैफ्रॉन स्वोर्ड्स : 52 एपिसोड्स ऑफ़ सनातनी वेलोर अगेंस्ट इनवेडर्स’ आयी है, जिसका प्रकाशन भारत के सुप्रसिद्ध गरुड़ प्रकाशन ने किया है। इस पुस्तक के अधिकांश अध्याय लेखिका मानोशी के सम्पूर्ण भारत में उनकी शोध सम्बन्धी यात्राओं पर आधारित हैं। यह पुस्तक अंग्रेजी भाषा में है, लेकिन बहुत सरल शब्दों में लिखी गई है । अंग्रेजी भाषा की हल्की सी जानकारी रखने वाला पाठक इसकी विषयवस्तु सरलता से समझ सकता है। इस लेख में इसी उत्कृष्ट पुस्तक की समीक्षा लिखने का गिलहरी प्रयास किया गया है।
नरेंद्र मोदी की सरकार से इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को बदलने की मांग के पोस्ट सोशल मीडिया पर अनेक बार देखे जा सकते हैं। मीडिया पर भी अनेक बार चर्चा होती है। लेकिन इस पर कितना काम हुआ है उस पर अभी कहना बड़ा मुश्किल है। लेकिन ये भी सत्य है कि सरकार के भरोसे हर काम के लिए बैठे रहना उचित नहीं है, कुछ काम हमें भी करने होंगे। भारत सरकार के पिछले 8 बर्षों के कार्यकाल में बहुत सी अज्ञात प्रतिभाओं को सम्मान मिलते देश ने देखा है।
यह पुस्तक भी कुछ ऐसी ही है जिसके प्रथम पृष्ठ पर भारत के वर्तमान उपराष्ट्रपति श्री एम् वैंकैया नायडू का शुभकामना संदेश सहित हस्ताक्षरित पत्र लगा हुआ है। देश के उपराष्ट्रपति यदि किसी पुस्तक के लिए पत्र देते हैं तो उस पुस्तक का मूल्य अथवा प्रासंगिकता समझी जा सकती है। उसकी वैधता का महत्व समझा जा सकता है। ऐसे पत्र किसी पुस्तक के लिए मिलना लेखक और प्रकाशक के लिए गर्व की बात है। दूसरे पुस्तक की विषयवस्तु की गंभीरता और तथ्यपरकता के महत्व को भी दर्शाता है।
अंग्रेजी भाषा में लिखी 404 पृष्ठ की इस पुस्तक में 52 अध्याय हैं। जिनमें 52 अलग अलग भारत पुत्रों और पुत्रियों अथवा योधाओं की वीरगाथाओं का वर्णन है। इनमें से अधिकांश भारतविरोधी इतिहासकारों द्वारा लिखित इतिहास (इतिहास के नाम पर कलंक जिसे भारत की पढियाँ पढ़ती आयीं हैं) से विलुप्त हैं अथवा विकृत रूप में दर्शायी गयीं हैं। पुस्तक में इन सभी भारतीय वीर पुरुषों और वीरांगनाओं के पराक्रमों का वर्णन पाठक को झकझोर देगा। एक नहीं ऐसे 52 शूरवीर और वीरांगनाएं जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों की बैंड बजायी थी। लेकिन हम लोगों को इतिहास में मिला केवल आक्रांताओं का महिमामंडन। यह पुस्तक उस झूठे महिमामंडन का पर्दाफ़ाश करती है। मुख्य बात, यह पुस्तक कोई कपोल कल्पना नहीं है, प्रत्युत पुस्तक के अंत में प्रत्येक अध्याय संबंधी संदर्भ सूचि भी संलग्न है। साथ ही कई जगह चित्र भी दिए गये हैं जो अध्याय पढ़ते समय उस शूरवीर या वीरांगना को नमन करने के लिए प्रेरित करते हैं।
पाठक को इस पुस्तक में चित्तौड़ की रानी कुर्मा देवी ( जिनके बारे में शायद ही कोई जानता है) के बारे में पता चलेगा, जिन्होंने इस्लामिक आक्रांता क़ुतुब-अल- दीन-ऐबक को हराया था, बल्कि घायल भी किया था। 1857 में लगभग 150 अंग्रेजों को मौत्त के घाट उतारने वाले और दो-दो बाघों के साथ लड़ने का सामर्थ्य रखने वाले गंगु मेहतर (गंगा बाबा) के पराक्रम के बारे में जानकारी मिलेगी। पुस्तक का पाँचवा अध्याय पाठक को दत्तू रांगड़ी और माधव विनायक रानाडे सहित 10 युवा क्रांतिकारियों के बारे में बताएगा जिनके नाम भी शायद लोगों ने सुने होंगे।
राजा दाहिर ने अरबी इस्लामिक आक्रांताओं का प्रतिकार कैसे किया, राजा दाहिर की पुत्रियों ने मोहम्मद बिन कासिम को कैसे मरवाया, सदर्भ सहित इस पुस्तक में मिलेगा। सन 1672 में इस्लामिक आक्रांता औरंगजेब के विरुद्ध हुए सतनामी विद्रोह (पराक्रम) के बारे में कितने लोग जानते हैं? यह पुस्तक नारनौल से आक्रांता औरंगजेब की सेना को भगाने वाले सतनामियों के बारे में बताएगी। अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लगभग 500 लोगों की सेना बनाने वाले और केवल 26 वर्ष की आयु में ही फांसी की सजा पाने वाले और धर्म आधारित हेराका आंदोलन शुरू करने वाले हैपौ जादोनांग के बारे में जानकर पाठक लेखक के इस इतिहास लेखन के प्रयास की प्रशंसा करेंगे।
मैंने कभी भी पजहस्सी राजा का नाम भी नहीं सुना था। मानोशी सिन्हा रावल की पुस्तक से ही मुझे आक्रांता हैदर अली, टीपू सुलतान और अंग्रेजों को नाकों चने चवाने वाले केरल के कोट्ट्यम के पजहस्सी राजा के बारे में पता चला। सन 1664 में नागा साधुओं ने काशी विश्वनाथ मंदिर की रक्षा करते हुए इस्लामिक आक्रांता औरंगजेब की सेनाओं को हराने की घटना का वर्णन इस पुस्तक को पूरा पढ़ने के लिए विवश करता है। इस पुस्तक में पूरे 52 अध्याय ऐसे ही अज्ञात अथवा अल्प या फिर विकृत रूप से ज्ञात भारत पुत्र और पुत्रियों के पराक्रमों से भरे पड़े हैं। जिन्होंने समय समय पर भारत को लूटने आयीं इस्लामिक और ईसाई आक्रांताओं को दौड़ा दौड़ा कर मारा है।
यह पुस्तक पढ़ने पर पाठक को आभास होगा कि जो लोग ये कहते हैं कि भारत का इतिहास गुलामी का रहा है वो लोग कितने बड़े झूठे और मक्कार हैं। यह पुस्तक हर भारतीय को पढ़नी चाहिए। बच्चों को इस पुस्तक से एक एक कहानी सुनानी चाहिए। और यह दायित्व भारत के हिन्दू समाज की है, ताकि इतिहास में हुई गलती की पुनरावृति न हो। भारत की आने वाली पीढ़ियों को सही इतिहास की जानकारी होनी चाहिए। लेखिका मानोशी रावल का यह प्रयास सराहनीय है। पुस्तक का हिंदी संस्करण प्रभावी हो सकता है।