प्रियंका कौशल. बस्तर में इनदिनों पत्रकार नए आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। उनका ये आंदोलन न केवल उनके जीवन की सुरक्षा को सुनिश्चित करने को लेकर है बल्कि उनकी अस्मिता की रक्षा के है। उन्हें डराने का दुस्साहस करने वालों को करारा जवाब देने के लिए भी है।
ये आंदोलन इसलिए भी है क्योंकि सर पर कफ़न बांधकर बस्तर में पत्रकारिता कर रहे लोगों को तथाकथित क्रांतिकारियों (नक्सलियों) ने धमकी दी है, निहायत ही कायराना धमकी।
धमकी देने वाले ये भूल गए कि वे उन लोगों को धमकाने की भूल कर रहे हैं, जिन्हें सेलेरी तक नहीं मिलती, लेकिन कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए भूखे प्यासे भी जुनून के साथ अपना काम कर रहे होते हैं।
जिन्हें धमकी दी गयी है, उन्हें अपने देश, समाज, लोगों की चिंता सोने नहीं देती। जो अथक मेहनत करते हैं, जिनका जीवन समाज को उस हद तक समर्पित है कि वे अपने बीवी बच्चों को भी वक़्त नहीं दे पाते।
जो लोग किसी क्रांति की मशाल लेकर नहीं निकले, लेकिन हरेक उस कथित क्रांतिकारी से कहीं ज्यादा संघर्ष, साधना और श्रम करते हैं। जो लोग हरेक के सुख-दुख के साथी हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर उनकी मदद कोई नहीं करता।
उन्हें कायर नक्सली ललकारने की जुर्रत कर रहे हैं, जिनका अपना कोई दीन-ईमान नहीं है। जो अपने ही साथियों की निर्मम हत्या करते है। जो पत्रकारों की हत्या के बेशर्मी के साथ एक सॉरी नोट भेज कर इतिश्री कर लेते हैं।
पत्रकार की हत्या करते वक़्त ये #परजीवी #क्रांतिजीवी #हिंसाजीवी भूल जाते हैं कि इन्हीं पत्रकारों के बल उनकी बात देश/दुनिया तक पहुंचती है। वे भूल जाते हैं कि यही साहसी, निर्भय और तटस्थ पत्रकार जरूरत पड़ने पर उनकी सरकार के बीच मध्यस्थता तक करते हैं।
सुनो, नक्सलियों.. तुम उनको धमका रहे हो, जो रोज़ उन्ही रास्तों से यह जानते हुए भी सौ बार गुजरते हैं, कि यहां तुमने कायरता पूर्वक बारूद लगा रखा है।
तुम उन्हें धमका रहे हो जो तुम्हारी और पुलिस की गोलियों के बीच रिपोर्टिंग करने के आदी हैं।
तुम उन्हें धमका रहे हो जिन्हें तुम पुलिस का मुखबिर और पुलिस तुम्हारा सहयोगी कहकर परिभाषित करती है। लेकिन वो तुम दोनों की ही परवाह नहीं करते। उन्हें परवाह है तो केवल पत्रकारिता की।
तुम उन्हें धमका रहे हो जो बस्तर में तुमसे यानी नक्सलियों से, कश्मीर में आतंकवाद से, उत्तर पूर्व में उग्रवाद से एयर दुनिया में आतातायियों से जूझ रहे हैं।
तुम उन्हें धमका रहे हो जो मुठभेड़ के दौरान बिना किसी बुलेट फ्रूफ जैकेट के चलती गोलियों के शॉट और विजुअल बना रहे होते हैं।
तुम उनको धमका रहे हो, जिनकी पेंशन भी नहीं मिलनी, फिर भी उन्होंने इस चुनौतीपूर्ण पेशे को चुना है।
तुम उनको धमका रहे हो जो इतना होने के बाद भी सब भूल कर फिर तुम्हारी भी रिपोर्टिंग कर दुनिया और तुम्हारे बीच सेतु का काम करेंगे।
बहरहाल, छत्तीसगढ़ के बाहर के साथियों को बता दूं कि बस्तर के पत्रकार गणेश व लीलाधर राठी के समर्थन में 16 को गंगालूर में प्रदेशभर के पत्रकार भरेंगे धरना देंगे।
18 को बस्तर संभाग मुख्यालय और 20 फरवरी से माओवादियों की मांद में मीडिया स्वतंत्रता बाइक रैली निकालेंगे।
दरअसल बीजापुर व सुकमा के दो पत्रकार गणेश मिश्रा, लीलाधर राठी को माओवादियों की दक्षिण सब जोनल कमेटी ने पर्चा जारी धमकी दी है। माओवादी पहले भी नेमिचन जैन और साईं रेड्डी की हत्या कर चुके हैं। अब दो पत्रकारों को धमका रहे हैं की उन्हें जन अदालत में सज़ा दी जाएगी।
प्रश्न ये कि इस तरह की हरकत कर नक्सली क्या साबित करना चाहते हैं। दरअसल इस तरह की हरकट से उनका असली चेहरा सामने आ गया है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला वे अपने संगठन में तो घोंटते ही हैं, अब पत्रकारों का गला घोटना चाहते हैं। उनकी कथित क्रांति की पोल ब्यहि खुल गयी है, जहां समानता नहीं क्रूरता और दमनकारी व्यवस्था की पैरवी की जाती है।
सावधान माओवादियों! हम पत्रकार अपने साथियों के साथ हैं, उनका बाल भी बांका हुआ तो ये नक्सलियों के ताबूत की अंतिम कील साबित होगी।
नोट- मैंने 2013-14 में बस्तर के पत्रकारों पर #तहलका में एक रिपोर्ट लिखी थी। उसकी लिंक भी दे रही हूँ। वह भी पढ़िए कि वे समर्पित भाव से कितनी अथक और निस्वार्थ मेहनत करते हैं। वे केवल पत्रकार नहीं मानवता के सिपाही बनकर काम करते हैं।