धर्म बिना मानव दानव है , पशुवत् जीवन जीता है ;
भ्रष्टाचार, पापमय – जीवन , सदा ही जीता रहता है ।
एकमात्र है धर्म – सनातन , सबको जीवन देता है ;
लोभी, लालची ,स्वार्थी मानव , जीवन व्यर्थ गंवाता है ।
बहुतायत में यही लोग हैं , इनको मार्ग दिखाना है ;
सर्वश्रेष्ठ है धर्म – सनातन , वही राह बतलाना है ।
सच्चे – गुरु बहुत दुर्लभ हैं , शास्त्र को गुरु बनाना है ;
रामायण , गीता , महाभारत , पढ़कर इन्हें समझना है ।
पाखंडी – गुरु घूम रहे हैं , हमको इनसे बचना है ;
महाभ्रष्ट अधिकांश गुरु हैं , इनका उद्देश्य कमाना है ।
म्लेच्छों से पैसा खाते हैं , हिंदू को भरमाते हैं ;
हिंदू को कमजोर बनाकर , दंगों में मरवाते हैं ।
बीच भजन में अली मौला करते , डॉलर दीनार कमाते हैं ;
हिंदू को इनसे बचना है , नर्क का मार्ग बताते हैं ।
इसी तरह हिंदू – नेता हैं , डीएनए सदा मिलाते हैं ;
बर्बर – हत्यारों से मिलीभगत है , अपने साथ बिठाते हैं ।
तजें मूर्खता हिंदू अपनी , भले – बुरे की पहचान करें ;
सोशल मीडिया ज्ञान का सूरज , जीवन की परवाह करें ।
राजनीति सब भ्रष्ट हो चुकी , भरे हुये मक्कार हैं ;
उनसे विश्वास की बातें होती , जो पक्के गद्दार हैं ।
मौत के मुंह में विश्व जा रहा , मजहब की उल्टी चाल है ;
भारत ही इसे बचा सकता है , धर्म – सनातन ढाल है ।
पर पहले हमें संभलना होगा , धर्म में वापस आना होगा ;
पाखंडी सत्ता पर हावी , उनसे मुक्ति पाना होगा ।
परम – साहसी , चरित्रवान को ही , सत्ता पर लाना होगा ;
यूपी या आसाम के जैसा , पूरा देश बनाना होगा ।
बहुमत की कायर सरकार , इसको सही राह पर लाओ ;
सबका साहस-शौर्य जगाकर , देश को हिंदू- राष्ट्र बनाओ ।
हिंदू – राष्ट्र बनेगा भारत , हत्यारों को दफन करेगा ;
शांति – सुरक्षा वापस लाकर , रक्तपात का दमन करेगा ।
दुनियावालो आंखें खोलो , अपना भला – बुरा पहचानो ;
परमश्रेष्ठ है धर्म – सनातन , अच्छी तरह से इसको जानो ।
पहले जानो बाद में मानो , जबरन नहीं थोपना है ;
स्वाभाविक है धर्म – सनातन , सबको मुक्ति पाना है ।
“जय हिंदू-राष्ट्र “\
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”