अकबर के हौसले को देखिए ! वो मानहानि का दावा करेंगें ! पत्रकारिता के पेशे में खास कर अंग्रेजी पत्रकारिता को नजदीक से जानने वाले आंख मूंद कर भरोसा करते हैं कि अकबर पर लगा आरोप बेबुनियाद हो नहीं सकता। लेकिन उनका हौसला लाजवाब है। निर्भया कांड के बाद 2013 में जस्टिस वर्मा कमिशन की रिपोर्ट के बाद बने कानून के मुताबिक जो आरोप एमजे पर लगे हैं उसके मुताबिक उन्हें जेल जाने से कोई नहीं रोक सकता। हद तो यह है कि एक नहीं, दर्जन भर महिलाओंं ने उनके संपादकीय पौरुष का बखान किया है कि पत्रकार बनाने की कीमत वे क्या वसूलते थे?
अकबर उन हल्लाबोल पत्रकारों की तरह मूर्ख नहीं है जिन्हें यह पता नहींं कि कानून के मुताबिक चरित्र हनन के अलावा इन आरोपों से उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता। पत्रकारिता को मौका दर मौका राजनीति का टूल बनाने वाले किसी पक्षकार के लिए चरित्र के क्या मायने हैं अकबर को इसके लिए किसी बीरबल की जरुरत नहीं! उनसे इस्तिफा इसलिए मांग रहे हैं क्योंकि अकबर ने पत्रकारिता को हथियार बना कर वो हासिल कर लिया जो किसी भी महात्वाकांक्षी पक्षकार का सपना होता है!
देखिए न दशक भर से ज्यादा समय तक कांग्रेस के लिए पत्रकारिता करते हुए राजीव गांधी को लिजलिजा प्रधानमंत्री साबित करने वाले शाहबानों कांड के रचयिता अकबर ये मीटू कांड तब कर रहे थे जब कांग्रेस प्रवक्ता थे। इतना तक तो बीरबल बर्दास्त कर लेते लेकिन ये राज्यमंत्री का पद नहीं झेल सकते। तो माहौल बनाना तो बनता है। अब जिन वरिष्ठ नागरिक का दर्जा पा चुकि महिलाओं ने अकबर की सीढी का इस्तेमाल तीन दशक पहले किया उस अपराध पर वर्मा कमिशन लागू नहीं होता। और दादी बन चुकी देवियां वो आरोप नहीं लगा रहीं जिसके दायरे में अकबर अब भी सलाखों के पीछे जा सकते हैं।
कानून के मुताबिक सिर्फ बलात्कार का आरोप ही आप वारदात के तीन साल बाद भी लगा सकते हैं। वर्ना दशकों बाद लगाए ऐसे आरोप बस समाज को मुफ्त का मनोरंजन ही दे सकता है। ऐसे आरोप से यदि किसी को मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिलवाया जाने लगे तो सत्ता छीनने और सरकारी नौकरी से कभी भी किसी को बेदखल करने का धंधा सबसे लाभदायक रोजगार बन जाएगा। ऐसे आरोपो को भी अदालत में साबित करना होता है। चूँकि भारतीय कानून में यह आरोप सब से संगीन है और यह हरिजन एक्ट से भी खतरनाक है जिसमें आरोप लगाना मात्न ही काफी है।
अकबर वर्मा कमिशन के कठोर कानून के दायरे से बाहर हैं तो उनमें हौसला है कि मानहानि का दावा ठोंक सकें। मतलब मनोरंजन जारी है। मजा लीजिये! 2003 में जब एनडीटीवी आया था उस समय बदनाम गली के संपादक ने 23 साल 24 साल की दो महिला पत्रकार को यकायक स्टार बनाने के लिए दिल्ली में बड़े बड़े बैनर लगा कर वरिष्ठ पत्रकारों को डिप्रेशन में डाला था उन्हें भी सदमें में नहीं रहना चाहिए। इस #METOO से बस थोड़ा चरित्र हनन ही तो होगा कानूनी रुप से उनका कुछ नही बिगड़ेगा और न उनका जो दशक भर पहले शासक होने का मजा ले चुके हैं! शासक होने का गुमान पाले नए नवेले राजाओं को वर्मा कमिशन कि रिपोर्ट को समझने की जरुरत है।
URL: #Me Too- allegations made against me are fabricated says union minister mj akbar
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