आज दोपहर रेड लाइट क्रॉस करते समय हेडफोन पर चल रहे वार्तालाप ने मुझे चौंका दिया। ये वार्तालाप एक एफएम स्टेशन के रेडियो जॉकी की ओर से किया जा रहा था। जॉकी चिंता जताते हुए कह रहा था ‘अपने संस्कारी बाबू जी आलोक नाथ का नाम भी मी टू अभियान में आ गया है। बताया जा रहा है कि बाबूजी भी इस खेल के खिलाड़ी हैं’। जिस खबर पर वह चिंता जाहिर कर रहा था, वह एक फेसबुक पोस्ट के कारण ‘खबर’ बन गई थी। न तो आलोकनाथ के खिलाफ उस महिला ने विधिवत रिपोर्ट दर्ज करवाई और न इस पर अदालत ने ही कोई संज्ञान लिया। एक महिला के फेसबुक पोस्ट पर लगाए गए आरोप के आधार पर आलोकनाथ को बिना बहस, बिना मुकदमा अपराधी घोषित कर दिया गया।
‘मी टू’ के दूसरे संस्करण में आलोकनाथ के साथ कैलाश खेर, विकास बहल, चेतन भगत और रजत कपूर को भी मीडियाई अदालत ने अपराधी मान लिया है। विश्व के सबसे आदर्श समाज में स्त्री-पुरुषों के संबंधों को लेकर एक फेब्रिकेटेड तनाव फैलाया जा रहा है। ये सिलसिला एक साल से चल रहा है। इस मसले पर कोई भी राय देने से पहले कुछ अतीत में जाना होगा। 2017 में हॉलीवुड फिल्मकार हार्वे वेनस्टेन पर सत्तर महिलाओं ने कास्टिंग काउच का आरोप लगाया था। मामले में कई महीनों तक जाँच चली और उसके बाद वेनस्टेन ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद पूरी दुनिया में इस तरह के मामलों में ऐसे अभियान छेड़े गए।
जब इस अभियान ने भारत में प्रवेश किया तो इसका मूल स्वरूप ही बदल दिया गया। बॉलीवुड में कुछ अभिनेत्रियों ने नामचीन अभिनेताओं और निर्माताओं पर यौन प्रताड़ना और बलात्कार के आरोप लगाए। मजे की बात कि अधिकांश मामले पुलिस तक पहुंचे ही नहीं। बस एक ट्वीट किया जाता। ट्वीट को न्यूज़ चैनलों पर ब्रेकिंग के रूप में दिखाया जाता। महिला आयोग नोटिस भेजता। आरोपी और पीड़ित आयोग के सामने पेश होते। शाम को टीवी पर बड़ी बहस चलती। तथाकथित आरोपी को बलात्कारी घोषित कर दिया जाता। लीजिये हो गया ‘मी टू कैम्पेन’।
फिल्म निर्माता विंटा नंदा एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला हैं। अपनी बात बेबाक ढंग से रखती हैं। सवाल यही है कि एक अदना से अभिनेता ने उनके साथ रेप किया और वे बीस साल तक चुप बैठी रहीं। आलोकनाथ का रुतबा कभी सुपर सितारे जैसा नहीं रहा और न ही उनकी छवि ऐसी थी, जिससे विंटा को भय होता। उन्होंने आलोकनाथ पर कार में बलात्कार जैसा संगीन आरोप फेसबुक पोस्ट के माध्यम से लगा दिया। उन्होंने पुलिस के पास शिकायत दर्ज क्यों नहीं करवाई। क्या मीडिया अदालती कार्रवाई से पहले आलोकनाथ को सजा दिलवा देगा।
फ़िल्मकार रजत कपूर की फिल्म को ‘मामी फिल्म फेस्टिवल’ से बाहर कर दिया गया। रजत को ये सजा इसलिए दी गई कि 2007 में इंटरव्यू के लिए उनके पास गई एक महिला पत्रकार के साथ उन्होंने बदसलूकी की थी। इस आरोप के कोई प्रणाम नहीं हैं। विडंबना है कि भारत में एक प्रभावशाली महिला के आरोपों को पहली बार में क्लीन चिट देते हुए सच मान लिया जाता है। बदसलूकी के आरोप के कारण फ़िल्मकार को ज़िल्लत झेलनी पड़ती है।
मशहूर डायरेक्टर दिबाकर बनर्जी पर अभिनेत्री पायल रोहतगी ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। पायल ने कहा था कि फिल्म ‘शंघाई’ के ऑडिशन के दौरान दिबाकर ने उनका यौन शोषण किया। जब यौन शोषण हुआ तो पायल सिर्फ मीडिया के सामने जाकर ही क्यों चुप हो गई। वे पुलिस के पास क्यों नहीं गई। फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर पर 2004 में मॉडल प्रीति जैन ने बलात्कार का आरोप लगाया। प्रीति ने पुलिस रिपोर्ट में सोलह बार बलात्कार होने की बात कही। हालाँकि ये बात साबित नहीं हो सकी। इसके ठीक एक साल बाद प्रीति को मधुर की हत्या के लिए सुपारी देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
अभिनेता जितेंद्र पर उनकी चचेरी बहन ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी थी। महिला के मुताबिक जितेंद्र ने कई साल पहले उनके साथ बलात्कार किया था। हालांकि जितेंद्र ने इस आरोप को झुठला दिया था। यहाँ उनकी बेटी एकता कपूर के ब्यान पर गौर करना जरुरी है। इस अभियान पर मीडिया से बात करते हुए एकता ने कहा था ‘निर्माता होने के नाते निजी तौर पर जब मैं अपने पुरुष समकक्षों से बात करती हूं, तो वे बताते हैं कि उन्हें स्पष्ट यौन प्रस्ताव मिले थे। क्या वे दोषी है?
ये देखना और भी रोचक है कि मी टू अभियान के समर्थन में वही जाने पहचाने चेहरे सामने आ रहे हैं जो कटरा में बलात्कार के झूठे मामले में तख्तियां लेकर प्रेस के सामने खड़े हो गए थे। यही लोग एक विवादित फिल्म के समर्थन में खड़े हो गए थे। प्रियंका चोपड़ा, अनुराग कश्यप, फरहान अख्तर, स्वरा भास्कर, सोनम कपूर जैसे कलाकार ही इन विवादित मुद्दों पर सामने क्यों आते हैं। यदि ये अभियान वाकई नैतिकता के धरातल पर खड़ा है तो और भी लोगों पर आरोप क्यों नहीं लगाए जाते। कुछ चुनिंदा कलाकारों को ही इसमें क्यों घसीटा जा रहा है।
अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन मुखर होकर इस अभियान के पक्ष में बोल रही हैं। क्या उन्हें अपना अतीत याद दिलाया जाए। जब उन्होंने सलमान खान पर खुद को गंभीर रूप से पीटने का आरोप लगाया था। उन्हें तो ‘मी टू अभियान’ में सबसे पहले पूर्व प्रेमी सलमान खान का नाम लेना चाहिए। फिर वे उनका नाम क्यों नहीं ले रही हैं। एकाएक इंडस्ट्री के कुछ चुने हुए चेहरों को गंदगी भरे दलदल में खींच लिया गया है। क्या ये कोई षड्यंत्र है जो बहुत सोच समझकर चला जा रहा है। इतने गंभीर आरोप अदालतों की चौखट पर क्यों नहीं जा पा रहे। ऐसे मामले केवल टीवी चैनलों की खुराक क्यों बने हुए हैं। किसी के पास कोई जवाब तो होगा।
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