जेएनयू की रेप पीड़िता लड़की ने Me Too अभियान के तहत जिस प्रकार इस मामले को उठाया है इससे तो साफ जाहिर है कि वह इस मामले को कानूनी रूप नहीं देना चाहती है। यानि उसे इंसाफ नहीं बल्कि रेप का तुलनात्मक विश्लेषण चाहिए। तभी तो उसने लिखा है कि रेप करने के बाद भी उसकी हत्या नहीं की गई, क्या ये कम भारी बात है! वह अपने रेप को कठुआ रेप के मामले से तुलना करना चाहती है। यहां पर भी उसने हिंदू और मुसलिम की बर्बरता को दर्शाने का प्रयास किया है। उसने दिखाने का प्रयास किया है कि देखो एक मुसलमान रेप करता भी है तो हत्या नहीं करता लेकिन दूसरी ओर रेप के बाद हत्या कर दी जाती है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में जितना प्रख्यात है उतना ही अपने कुछ वामी छात्रों की करतूतों के कारण बदनाम भी है। अब जब देश में ME TOO अभियान चल निकला है तो ‘जेएनयू’ की भी एक छात्रा ने इस बहती गंगा में अपना हाथ धोया है। जबकि उसका यह मामला कहीं से मीटू से मेल नहीं खाता है। ऐसे कैसे संभव है कि जिस व्यक्ति के साथ आप कठुआ रेप मामले में देश और हिंदुओं को बदनाम करने का अभियान चलाती है। उस व्यक्ति को रेप के खिलाफ चले अभियान का सबसे बड़ा चेहरा बनाती हैं। इस मामले को प्रचारित करने के लिए देश के विभिन्न जगहों पर बुलवाने के मुहिम में शामिल होती हैं, उसे बोलने के लिए जेएनयू आमंत्रित करती हैं।
यह सब जानते हुए कि वह व्यक्ति खुद रेप के कई मामले में आरोपी है, उसका एक रात में 40-40 फोन कॉल एटेंड करती हैं, आधी-आधी रात को उसका प्यार जताने की बात सुनती हैं, अंट-शंट मैसेज पढ़ती है, उसकी निकाह करने की इच्छा से वाकिफ रहती हैं। एक दिन आधी रात को कार में बैठकर उसके साथ जेएनयू से बाटला हाउस के नजदीक एक फ्लैट में जाती है और सोती हैं। जेएनयू में पढ़ने, कठुआ रेप मामले में अभियान चलाने के बाद भी आप अपने साथ हुए बलात्कार को पुलिस से छिपाती हैं। क्या इसे रेप कहा जाएगा? या फिर सबकुछ समझते हुए इसे सेक्स कराने के बाद मी-टू की बहती गंगा में हाथ धोना कहा जाएगा?
मुख्य बिंदु
* इतने खुले होने के बाद भी जेएनयू की रेप पीड़िता छात्रा ने बलात्कारी के खिलाफ पुलिस में कोई शिकायत क्यों नहीं की?
* क्या वह अपने बलात्कार की घटना को तुलनात्मक अध्ययन का विषय बनाना चाहती हैं? लेखनी से तो ऐसा ही लगता है
जेएनयू में पढ़ने वाली एक छात्रा की मी-टू के संदर्भ को लेकर फर्स्ट पोस्ट में प्रकाशित कहानी में भले ही बलात्कार का आरोप लगाने वाली छात्रा की पहचान न हो लेकिन जिसपर यह आरोप लगाया गया है उसकी पहचान करना मुश्किल नहीं है। क्योंकि अपनी पत्नी को पीटकर घर से निकालने और अपने एक रिश्तेदार से बलात्कार के आरोपी की पहचान जगजाहिर है। और यह मामला कठुआ रेप मामले के दौरान ही उछला था। उस पर जेएनयू की एक छात्रा के साथ मिलकर इस मामले में करोड़ों रुपये उगाहने का भी आरोप लगा था। उसके खिलाफ जम्मू-कश्मीर के पुलिस स्टेशन में मामला भी दर्ज है। अब सवाल उठता है कि जेएनयू की छात्रा ने मी-टू के तहत जो आरोप लगाया है वह सही है या नहीं? न्यायिक दृष्टि से तो यह जांच का और कोर्ट का मामला है, लेकिन जिस प्रकार इस मामले को पुलिस में न ले जाकर मीडिया के माध्यम से उठाया गया है तो फिर इसका विश्लेषण तो किया ही जा सकता है।
कुछ लोगों की प्रवृत्ति ही नकारात्मक होती है। जेएनयू में कुछ वामी छात्र-छात्राएं इसी नकारात्मक सोच से ग्रसित हैं। इसलिए वे देश व समाज को बदनाम करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते। खुलापन के नाम पर मानसिक गुलामी की ओर अग्रसर ये लोग कब क्या बकना शुरू कर दे कोई ठीक नहीं। रेप का आरोप लगाने वाली पीड़िता लड़की दो सप्ताह तक अपनी शारीरिक पीड़ा सहती रही, लेकिन बलात्कारी के खिलाफ मामला दर्ज कराना या पुलिस से शिकायत करना मुनासिब नहीं समझा। अब सवाल उठता है जब आपने पुलिस में मामला दर्ज नहीं कराया तो फिर उस मामले को अब क्यों उठाया? वह भी मी-टू अभियान के तहत? जबकि यह मामला तो कतई मी-टू का नहीं है, बल्कि यह तो बिल्कुल बलात्कार का मामला बनता है।
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URL: Me Too i was raped by the man leading protests against the kathua
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