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India Speak Daily > Blog > समाचार > संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही > सुप्रीम कोर्ट का आदेश! बलात्कार मामले में TRP के चक्कर में हिंदु मुस्लिम खेल मेनस्ट्रीम मीडिया को अब भारी पर सकता है!
संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही

सुप्रीम कोर्ट का आदेश! बलात्कार मामले में TRP के चक्कर में हिंदु मुस्लिम खेल मेनस्ट्रीम मीडिया को अब भारी पर सकता है!

Courtesy Desk
Last updated: 2021/04/09 at 12:57 PM
By Courtesy Desk 182 Views 7 Min Read
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भारत की न्यायपालिका Kerala High Court dismissed plea for women mosque entry
Kerala High Court dismissed plea for women mosque entry
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पत्रकारिता का मूलभूत सिद्धांत है, संवेदनशील मामले में  पीड़ित और पीड़िता की पहचान छिपाना। पहचान के मायने उसके नाम, जाति,मजहब और स्थान से है। हाल तक प्रिंट और टीवी मीडिया पत्रकारिता के इस मूल सिद्धांत का पालन करते रहे। इसी कड़ी में एक अहम मुद्दा है बलात्कार पीड़ितों की पहचान छुपाने का। यह पत्रकारिता के मूल सिद्धांत पर सुप्रीम कोर्ट की पहरेदारी है। लेकिन हालिया दिनों में बलात्कार जैसे मामलों में हिंदु मुस्लिम एंगल होने पर प्रिंट और टेलीविजन मीडिया टीआरपी की लालच में पत्रकारिता के मूल सिद्धांत और आम आदमी के मौलिक अधिकार का हनन करते हुए कई बार लक्ष्मण रेखा लाधने लगे। इसे गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया के लिए सख्त निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देश दिया कि बलात्कार और यौन उत्पीड़न पीड़ितों की पहचान को ‘किसी भी रूप’ में उजागर नहीं किया जाए। भारत की सुप्रीम अदालत ने कहा ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि समाज में बलात्कार पीड़िताओं के साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता है’। मीडिया इस गंभीरता ने नहीं लेता कि उसके पहचान को सार्वजनीक किए जाने से पीड़िता और उसके परिवार का समाज में जीना कितना दुश्कर होता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश सार्वजनिक तौर पर रैलियों की अगुआई करने वाले और सोशल मीडिया पर सक्रिए लोगों के लिए भी जारी किया है। अदालत के निर्देश के मुताबिक ‘पुलिस या फोरेंसिक अधिकारी बलात्कार पीड़ितों के नामों का खुलासा नहीं कर सकते हैं चाहे इस पर उनके माता-पिता की सहमति  ही क्यों न हो.’

 

 

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक यह किसी भी आम आदमी का सम्मान के साथ जीने काम मौलिक अधिकार है। लेकिन जब बलात्कार जैसे मामले में पीड़ित और अभियुक्त का मजहब अलग हो तो टीवी मीडिया टीआरपी के लिए मचलने लगता है। हाल के दिनो में भारतीय टीवी मीडिया ने अपनी गंभीरता को ताक पर रखते हुए कई ऐसे मिसाल पेश किए हैं। सही मायने में भारत की टीवी मीडिया टीआरपी के भागम भाग में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की धज्जियां उड़ाते हुए कब आम आदमी के मौलिक अधिकार को रौंदना शुरु कर दिया उसे इसका एहसास ही नहीं हुआ। अब सुप्रीम अदालत ने टीवी मीडिया को सख्त निर्देश दिया है कि वो किसी भी हाल में बलात्कार पीड़ित के नाम और पहचान को गुप्त रखे। तब भी जब पीड़ित के माता पिता उसे उजागर करना चाहे।

सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार जैसे मामले में विरोध रैलियों के बारे में भी  चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा, ‘इन रैलियों में पीड़ितों को प्रतीक के तौर पर प्रयोग करने से हम ख़ुश नहीं हैं। मृत पीड़ितों या मानसिक रूप से अस्वस्थ पीड़ितों की भी पहचान किसी भी तरह से उजागर नहीं की जा सकती है चाहे माता-पिता की सहमति ही क्यों न हों। इस तरह की कार्रवाई को अदालत की अनुमति की आवश्यकता होगी।’

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर के कठुआ इलाके में इस साल की शुरुआत में आठ वर्षीय बच्ची की साथ हुई बलात्कार और हत्या की घटना के बाद बहुत बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन और इस पूरे मामले में मीडिया की भूमिका पर चिंता व्यक्त करते हुए यह आदेश जारी किया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने ऐसे मामले को राजनीतिक रंग दिए जाने को लेकर मानवधिकार संगठनों की भूमिका पर चिंता जताते हुए कहा है कि पीड़ित की पहचान को उजागर करने का यह खेल खतरनाक है। पीठ ने दिशानिर्देशों में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पीड़िता का साक्षात्कार भी नहीं किया जाना चाहिए जब तक वो ख़ुद किसी न्यूज़ संस्थान तक न पहुंचने का प्रयास करे. कोर्ट ने इस तरह के मुद्दे पर टीआरपी के लिए सनसनी बनाने से बचने को कहा।

इसके अलावा कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पुनर्वास के लिए हर ज़िले में ‘वन-स्टॉप सेंटर’ की स्थापना सहित अन्य उपायों को अपनाने के लिए निर्देश दिया। साथ ही कोर्ट ने फोरेंसिक प्रयोगशाला अधिकारियों से भी मुहरबंद कवर में अदालत में अपनी रिपोर्ट जमा करके पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा करने के लिए कहा है। साल 2012 में दिल्ली गैंगरेप मामले के चलते सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाने को लेकर वकील निपुन सक्सेना की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह सख्त आदेश जारी किया है।

दिलचस्प यह है कि मीडिया ने बलात्कार जैसे गंभीर मामलें पहचान छुपाने के कई मिसाल पेश किए हैं। इसमें सन 2003 का मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की लड़की के साथ बलात्कार का अहम मामला था जिसमें पीड़िता ने अभियुक्त की पहचान की उसे सुप्रीम कोर्ट तक से सजा हुई लेकिन कभी पीड़ता की पहचान सार्वजनिक नहीं हो पाई। हालिया वर्षों में मीडिया में टीआरपी की रेस के लिए बलात्कार पीड़ितों की जाति और मजहब के रंग से होने वाले नफे नुकसान से समाज ने कई गंभीर परिणाम भुगते हैं। मीडिया के इस भूमिका के कारण दिल्ली हाइकोर्ट ने पिछले दिनो एक दर्जन मीडिया संस्थानों पर दस दस लाख रुपये का जुर्माना भी किया लेकिन मीडिया संस्थानों पर इसका बहुत असर नहीं हुआ। उम्मीद की जानी चाहिए की साख का पेशा सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को गंभीरता से लेगा। चुंकी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट इस बार जांच अधिकारियों से लेकर सोशल मीडिया को भी कानूनी दायरे में लिया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि बलात्कार जैसे संवेदनशील मामले में आम आदमी के मौलिक अधिकार की रक्षा हो पाएगी।

 

URL ; Identity of rape victim should be protected..supreme court..

Keywords : rape,kathua rape case,media,social media,supreme court

 

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TAGGED: indian media, kathua rape case, Rape, social media, Supreme Court, कठुआ रेप केस, बलात्कार, मेनस्ट्रीम मीडिया, सुप्रीम कोर्ट, सोशल मीडिया
Courtesy Desk December 13, 2018
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