भगवान विष्णु के क्रोधावतार थे भगवान नरसिंह देव। भगवान नरसिंह प्रकट उत्सव पर धर्मपत्नी Shweta Deo के साथ आज डासना गया और मां एवं महादेव का आशीर्वाद लिया। आधुनिक समय में स्वामी नरसिम्हानंद गिरी जी महाराज भगवान नरसिंह की ही तरह क्रोध का प्रयोग कर रहे हैं। भगवान नरसिंह का क्रोध जैसे भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए था, नरसिंम्हानंद जी का क्रोध भी हिंदू समाज को बचाने के लिए है।
यह अलग बात है कि असुर होकर भी प्रह्लाद जहां चेतना मय था, वहीं सनातनी होकर भी हिंदू प्रमाद में है और जानबूझकर सोने का नाटक कर रहा है! उसे उम्मीद है कि कोई राजनीतिक पार्टी आएगा और उसे बचा लेगा ताकि उसे कुछ नहीं करना पड़े! उसे अपने पर आए खतरे पर बात करने में भी शर्म महसूस होती है। और जो लोग उसके बचाव पर बात कर भी रहे हैं, वह उनकी टांग खींचने में ही सारा समय नष्ट करता है।
मैं स्वामी नरसिम्हानंद जी के लिए लोकमान्य तिलक जी की गीता और ओमेंद्र रतनु की ‘महाराणा’ पुस्तक ले गया था, क्योंकि दोनों पुस्तकें हमें “रणभूमि ही विजय का मार्ग है” का ज्ञान देती है।