माओवादी पिछले 20 सालों में 12 हजार निर्दोष भारतीयों की हत्या कर चुके हैं। 9,300 लोगों को तो इन माओवादियों ने पुलिस का मुखबिर बताकर मार डाला है। फिर भी अदालत से लेकर पत्रकार तक, एकेडमिया से लेकर कांग्रेस तक इसके गुण गा रहे हैं! यानी यह सब भी कहीं न कहीं नरसंहार में सहयोगी हैं…
गृह मंत्रालय ने नक्सलियों की करतूतों का जो काला चिट्ठा खोला है उससे भी इन नक्सली समर्थकों की आंखें नहीं खुल रही हैं। अपने निहित स्वार्थ में अंधे शहरी नक्सली समर्थक मोदी सरकार को कोसने में लगे हैं। नक्सली पिछले 20 सालों में 12 हजारो निर्दोश लोगों की हत्या कर चुके हैं। 9,300 लोगों की तो इन नक्सलियों पुलिस का मुखबिर बताकर जान ले ली है। इसके अलावा करीब 2,700 पुलिस तथा सुरक्षाबल के जवानों की जान ले चुके हैं। अगर नक्सलियों पर लगाम लगाने में कोई सरकार सफल हुई है तो वह मोदी सरकार ही है। यह खुलासा गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से हुआ है।
मुख्य बिंदु
* नक्सलियों ने 9,300 लोगों को तो पुलिस मुखबिर बताकर मौत के घाट उतार चुका है
* मोदी सरकार की विकासपरक योजना चलाने और सख्ती की वजह से नक्सली हिंसा में आई है कमी
पिछले दो दशक में नक्सली हमलों ने 12 हजार लोगों की जान ले ली है, इसमें 2,700 सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं। गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर करें तो जिन लोगों की जाने गईं हैं उनमें 9,300 ऐसे निर्दोष लोग शामिल हैं जिनकी या तो नक्सलियों ने पुलिस का मुखबिर बताकर हत्या कर दी या सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच की गोलीबारी में मारे गए। हालांकि सुरक्षा बलों के खिलाफ जारी हमलों के बाद भी पिछले तीन सालों में माओवादी हिंसा में करीब पचीस प्रतिशत की कमी देखी गई है। गृहमंत्रालय के अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार मई 2011 से लेकर 2014 के अप्रैल तक की तुलना में मई 2014 से अप्रैल 2017 तक माओवादी हिंसा में 25 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं सुरक्षा बलों के हताहत होने वाली संख्या में 42 प्रतिशत कम हुई है।
गौरतलब है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2010 के अप्रैल में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने घात लगाकर सीआरपीएफ के 76 जवानों की हत्या कर दी थी। इस से साफ होता है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान नक्सली कितने निरंकुश हो गए थे। लेकिन 2014 में जब से मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में आई है माओवादी हिंसा में कमी आई है। गृहमंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि नक्सल कैडर को खत्म करने की दर में 65 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा चरमपंथियों के आत्मसमर्पण करने की दर में 185 प्रतिशत का इजाफा हुआ। लगता है कि मोदी सरकार की नक्सलियों के संदर्भ में मिल रही सफलता के कारण ही शहरी नक्सलियों ने नई साजिश रची है।
गृह मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इस सरकार के सत्ता में आने के बाद नक्सलियों की 90 प्रतिशत गतिविधियां अब देश के महज 35 जिलों में सिमट कर रह गई है। वैसे देखे तो देश के 10 राज्यों के 68 जिलों में नक्सलियां गतिविधिया चलती रही हैं।
नक्सल प्रभावित इलाकों के विकास पर सरकार ने दिया ध्यान
मोदी सरकार ने माओवादियों की बढ़ती गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय नीति और क्रियान्वयन योजनाएं शुरू की। इस योजना के तहत सुरक्षा, विकास तथा स्थानीय समुदायों के अधिकार सुनिश्चित करना शामिल है। मोदी सरकार ने अपनी इस योजना के तहत पिछले तीन सालों में नक्सल इलाकों में 307 थाने खोले हैं। इस सरकार ने सबसे मुश्किल इलाकों में भी 1,391 किलोमीटर सड़क का निर्माण कराया है। 9 नक्सल प्रभावित इलाकों में कुल 5,412 अतिरिक्त सड़क निर्माण को मंजूरी दी गई है जिसपर 11,725 करोड़ रुपए की लागत आएगी। दूर दराज के इलाकों में टेलीफोन कनेक्टिविटी में सुधार करने के लिए 2,187 मोबाइल टावर लगाए गए हैं। माओवाद प्रभावित राज्यों में 358 बैंक खोले गए हैं, 752 एटीएम लगाए गए हैं और 1,789 डाक घरों को खोलने की मंजूरी दी गई है।
कई विकास योजनाओं के विस्तार के वास्ते अतिरिक्त कोष के लिए गृह मंत्रालय पहले ही वित्त मंत्रालय से संपर्क कर चुका है जिन्हें नक्सल प्रभावित राज्यों में शुरू किया गया था। अधिकारियों का कहना है कि वित्त मंत्रालय से अगर मंजूरी मिल जाती है तो सुरक्षा संबंधी व्यय योजना (एसआरई), विशेष अवसंरचना योजना (एसआईएस), एकीकृत कार्य योजना (आईएपी) और कुछ अन्य योजनाओं का विस्तार कुछ अन्य सालों तक कर दिया जाएगा।
URL:HMA said, Naxal violence claims 12,000 lives in 20 years
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