सोनाली मिश्रा। क्या तीसरी लहर के बहाने हिन्दुओं के सर्वनाश की तैयारी हो रही है? क्या वह हमारे बच्चों को अपना शिकार बनाने की फिराक में हैं और क्या वह हमारे बच्चों का सुरक्षा कवच उनसे खींच लेना चाहते हैं?
यह प्रश्न इसलिए जरूरी हो उठा है क्योंकि अचानक से ही वेगन होने की बात होने लगी है, चर्चाएँ तेज हो गयी हैं, ट्विटर और फेसबुक से निकलकर बहस क्लबहाउस में होने लगी हैं कि दूध के उत्पाद छोड़कर वेगन हो जाना चाहिए। दूध पीकर हिन्दू अपने पशुओं पर अत्याचार करते हैं, गाय के मरने में केवल हिन्दुओं का हाथ है, ऐसी सारी चर्चा इन दिनों चरम पर है। पेटा इंडिया को प्रतिबंधित करने की भी मांग इन दिनों अमूल इंडिया ने कर दी है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, एकदम से वेगन, अर्थात पौधों से बनने वाले दूध पर चर्चाएँ क्यों होने लगी हैं?
इसके लिए पेटा इंडिया की पिछली कुछ महीनों की गतिविधियों पर नज़र डालनी होगी। 17 जून 2020 को एक फ़ोर्ब्स इंडिया में एक लेख का प्रकाशन होता है कि क्या भारत आने वाली महामारियों के खिलाफ वेगन इकॉनमी का नेतृत्व कर सकता है? हालांकि वह भारत के लेखक एवं नीति आयोग के ही सदस्य का लेख है, परन्तु उस लेख ने पेटा इंडिया को हिन्दुओं की समृद्ध परम्परा के खिलाफ खड़ा होने का अवसर दिया!
पर क्या हमें पता है कि यह वेगन इकॉनमी क्या है? वेगन से हम क्या समझते हैं और कितने लोग हैं जो इसकी भयावहता को समझते हैं? वेगन का अर्थ है हर वह उत्पाद जो आप खाते हैं, वह पौधों से निकला हुआ हो! इसमें आप कहेंगे कि नया क्या है, भारत में तो कृषि ही मुख्य है, हम तो खेतों से ही उपजा हुआ भोजन खाते हैं। हैं न? तो हम साथ देंगे! हम भी वेगन हो जाएंगे!
परन्तु वेगन का अर्थ है दूध भी पौधों से तैयार! अर्थात जो दूध, जो घी, जो मक्खन, जो चीज़, जो पनीर आप खाएं वह पौधों से तैयार हो! वह ओट्स से बने, वह नारियल के दूध से बने या फिर वह किसी और कृत्रिम प्रक्रिया से बने, वह गाय का न हो! वह भैंस का न हो! वह बकरी का न हो! क्योंकि उनसे दूध निकालते समय पशुओं पर क्रूरता होती है। और मजे की बात यह है कि यह क्रूरता उन्हें काटते समय नहीं दिखती है।
दूध के फायदे हमारे आयुर्वेद में हैं, ऋग्वेद में हैं, अथर्ववेद में हैं। गाय के दूध को अमृत तुल्य बताया गया है। आज से नहीं ऋग्वेद से हम गाय के दूध को पीते हुए आ रहे हैं। काम धेनु तो स्वयं स्वर्ग की गाय है, गाय इतनी पवित्र है कि जब रावण के अत्याचारों से पृथ्वी कराह रहीं थीं तो वह गाय का ही रूप लेकर पहुँची थीं। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद में प्रथम मंडल के 75वें सूक्त में 9वें मन्त्र में दूध को अमृत तुल्य बताया गया है। अग्निदेव की स्तुति करते हुए कहा गया है:
मनो न यो धवन: सद्य एत्येक: सूरो वस्व ईशे, राजाना मित्रावरुणा सुपाणी गोषु प्रियममृतं रक्षमाणा!
अर्थात मन के सदृश गति वाले सूर्यरूप मेधावी अग्निदेव एक सुनिश्चित मार्ग से गमन करते हैं, और विविध धनों पर आधिपत्य रखते हैं। सुन्दर भुजाओं वाले मित्रावरुण गौओं में उत्तम एवं अमृत तुल्य दूध की रक्षा करते हैं। इसी के साथ अथर्ववेद में कई स्थानों पर दूध की महत्ता के विषय में बताया गया है। अथर्ववेद के पुष्टिकर्म सूक्त में, सिन्धु समूह देवता का आवाहन करने हुए लिखा है:
ये सर्पिष: संस्रवंति क्षीरस्य चोदक्स्य च, तेभिर्मे सवैं: संस्रावैर्धनं सं संस्रावयामसि
अर्थात जो धृत, दुग्ध तथा जल की धाराएं प्राप्त हो रही हैं, उन समस्त धाराओं द्वारा हम धन संपत्तियां प्राप्त करते हैं। अर्थात दूध से हम धन समृद्धि प्राप्त होती है, अर्थात हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है। इसी प्रकार वाणिज्य सूक्त में कहा गया है
ये पन्थानो बहवो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी संचरन्ति ते मा जुषन्तां पयसा घृतेन यथा क्रीत्वा धन्माहराणी
अर्थात
स्वर्ग-पृथ्वी के बीच जो देवों के अनुरूप मार्ग है, वह सभी हमें घृत और दुग्ध से तृप्त करें। जिन्हें खरीदकर हम (जीवन व्यवसाय द्वारा) प्रचुर धन-एश्वर्य प्राप्त कर सकें। और धन एश्वर्य कब प्राप्त होगा जब हम स्वस्थ रहेंगे, रह पाएंगे, दूध सभी को निरोग रखेगा! और भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण तो स्वयं ही गौ रक्षक हैं। वह तो स्वयं ही गौ माता का दूध और माखन छिपकर खाते हैं।
इतना ही नहीं, हल्दी और दूध के सम्मिश्रण से एक बड़ी जनसंख्या अभी तक कोरोना की प्रचंड लहर से बची हुई है और यह हल्दी और दूध हम किसे पिलाते हैं? जाहिर है अपने बच्चों को! अर्थात हमने अभी तक अपने बच्चों की रक्षा और अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा केवल दूध के साथ की हुई है। फिर ऐसे में वह कौन हैं और क्यों हैं जो भारत के हिन्दुओं के बच्चों को इस पौष्टिकता से दूर करना चाहते हैं?
फ़ोर्ब्स में प्रकाशित इस लेख में लिखा है कि “वेगन आन्दोलन का अर्थ है पशुओं पर क्रूरता समाप्त करने के लक्ष्य के साथ 100 प्रतिशत पौधे आधारित भोजन की ओर मुड़ना! और जहाँ पर भारत अभी भी दूध से प्रेम करने वाला देश है, तो इसमें आगे बढ़ा जा सकता है,”
इसमें भारत को यह कहते हुए उकसाया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि हर्बल और आयुर्वेद दोनों का बाज़ार वर्ष 2050 तक $62 बिलियन से बढ़कर $5 ट्रिलियन तक हो जाएगा, जिसमें चीन और भारत का हिस्सा 13% और 2.5% क्रमश: है। इसी के साथ वर्ष 2019 में बार्कलेज़ ने यह अनुमान लगाया था कि उद्योग में मांस का विकल्प उद्योग अगले दशक तक $140 बिलियन तक बढ़ेगा। और वर्तमान संकट के मद्देनज़र यह अभी और बढेगा। तो भारत के लिए आवश्यक है कि वह इस दिशा में आगे बढ़े!”
इसी लेख में है कि भारत के आयुर्वेदिक उत्पादों की लोकप्रियता पश्चिम में उसी प्रकार फ़ैल रही है जैसे जंगल में आग। और अब आयुर्वैदिक उत्पादों का निर्यात भारत से लगभग $500 मिलियन सालाना हो गया है। योग, आध्यात्म और आयुर्वेद के उत्पादों की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही भारत ने एक स्वस्थ जीवन के लिए हर्बल और ऑर्गेनिक सामानों के मूल स्रोत के रूप में कब्ज़ा जमा लिया है।”
मगर इसके बाद जो बात कही गयी है, उस पर गौर किया जाना है, इसमें कहा है कि वेगन इंडिया अभियान कोविड 19 की वैश्विक लड़ी के एक प्रतीक के रूप में स्थापित हो सकता है। और कहा गया है कि भारत को आगे आना चाहिए और सबसे मजेदार बात तो यह है कि इसमें कहा गया है कि अभी कुछ ही वर्षों पहले भारत के उत्पादों जैसे घी, सरसों के तेल को खराब रूप में देखा जाता था, मगर अब समय के साथ साबित हुआ कि ऐसा कुछ नहीं था और आज घी और तेल सभी ध्यान खींच रहे हैं।
हालांकि इस लेख को नीती आयोग के ही एक युवा पेशेवर ने लिखा है, और भारत की महान एवं समृद्ध परम्परा के आलोक में ही लिखा है, परन्तु इसे आधार बनाकर पेटा इंडिया ने अपना वह एजेंडा खेला है, जिसमें अमेरिका का वर्चस्व कायम रहे!
हाल ही में फ़ोर्ब्स ने 50 वर्ष पार करने वाली ऐसी महिलाओं की सूची जारी की जिन्होंने 50 वर्ष की उम्र के बाद दुनिया को बदल कर रख दिया है। तो उनमें फ़ोर्ब्स ने पहली बार एक वेगन मियोको शिन्नर को शामिल किया है, जिन्हें मियोको क्रीमी डेयरी फ्री चीज़ के लिए जाना जाता है। इनके साथ ही अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस (56) को भी शामिल किया है जो “वेगन बीफोर 6पीएम” की समर्थक हैं।
इन दिनों वेगन उत्पादों के सबसे बड़ी प्रचारक अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हैं, तो समझा जा सकता है कि आखिर किसके इशारे पर पेटा इंडिया भारत को आर्थिक रूप से तोड़ने की साज़िश कर रही है।
इसीके साथ इन्टरनेट पर वेगन मिल्क खोजने पर सोया दूध और बादाम दूध सामने आते हैं। सोया दूध की लोकप्रियता यूरोप और उत्तरी अमेरिका में है। इस का प्रयोग कई उत्पादों में होता है जैसे मिल्कशेक, पैनकेक, धी, ब्रेड, म्योनीज़, कप केक और कई और व्यंजनों में!
साइंस डायरेक्ट वेबसाईट के अनुसार सोयाबीन अमेरिका और विश्व में मुख्य फसलों में से एक हैं। यह विश्व के लिए तेल और प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत है। अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना और चीन सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक देश हैं और सोयाबीन के सबसे बड़े आयातक हैं चीन और यूरोपीयन युनियन।
अर्थात वेगन माने पौधे आधारित दूध बेचे जाने पर सबसे ज्यादा खपत होगी सोयाबीन की क्योंकि के अनुसार सोया दूध एकमात्र ऐसा डेरी विकल्प है जो गाय के दूध के जितना प्रोटीन देता है और सोया दूध के पोषक तत्वों को गाय के दूध के समान माना जा सकता है। जैसे ही सोया मिल्क इज वेगन? के रूप में हम खोजते हैं तो सोया दूध के फायदे और सोया दूध वेगन है यह कई स्रोत बताने लगते हैं।
में ही एक और लेख में बादाम, ओट्स और सोया और गाय के दूध में सर्वश्रेष्ठ दूध कौन सा है, इस विषय में तुलना की गयी है। और अब तेजी से पश्चिम में इन विकल्पों की ओर लोग दौड़ रहे हैं। बादाम का दूध अमेरिका में सबसे ज्यादा मांग में है और इसी के साथ सोया दूध भी अमेरिका में बिकता है।
एक जो नए प्रकार के दूध की बात पेटा इंडिया बार बार करता है वह है ओट्स का दूध! ओट्स के दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है रूस। के अनुसार ओट्स के उत्पादन को ध्यान में रखते हैं तो पाते हैं कि रूस ओट्स का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, और देश में सबसे ज्यादा ओट्स के दूध का उत्पादन होता है। रूस में ओट्स के अधिक उत्पादन के चलते रूस में ओट्स दूध निर्माताओं के लिए अवसर पैदा हुए हैं कि वह अपना व्यापार बाहर फैलाएं। उत्पादन के आधार पर 22% शेयर रूस के है, जो अन्य देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है।
हालांकि इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पौधे आधारित दूध की तुलना में पशुओं के दूध में सभी आवश्यक पोषक तत्व शामिल होते हैं। अर्थात ओट्स के लिए सबसे बड़ा उत्पादक देश है रूस, और बादाम दूध के लिए अमेरिका और सोया के सबसे बड़े उत्पादक देश है चीन और यूरोपीय युनियन।
वेगन होने का सबसे ज्यादा शोर आ रहा है अमेरिका से। जहां पर सोया दूध और बादाम दूध का बाज़ार बढ़ रहा है। साइंसडायरेक्ट के अनुसार केवल 2% सोयाबीन प्रोटीन की खपत सोया खाद्य पदार्थों के रूप में इंसानों द्वारा होती है, शेष 98% सोयाबीन मील में बदला जाता है और उसे जानवरों जैसे मुर्गियों और सूअरों को खिलाया जाता है। सोयाबीन की मांग मांस की खपत के कारण बढ़ती है और बढ़ रही है।
(Soybeans increasingly are being employed as the modern input of choice for buyers। They are mainly used as intermediate food, feed, and industrial inputs, not final consumer products, therefore remaining somewhat invisible in the economy. Only 2% of soybean protein is consumed directly by humans in the form of soy food products such as tofu, soy hamburger, or soy milk analogs. All but a very small percentage of the other 98% is processed into Soybean Meal (SBM) and fed to livestock, such as poultry and pigs. In this way, soybean demand is essentially a derived demand for meat. Soybean has risen to become a leading crop because the income elasticity of meat is high.)
सीएजीआर के अनुसार विश्व में सोया दूध का बाज़ार वर्ष 2025 तक 11.08 बिलियन डॉलर का हो जाएगा.
अब फिर से पेटा की याचिका पर आते हैं. पेटा इंडिया ने पहले दूध के खिलाफ गुजरात में अभियान चलाया. गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन जो देश के सबसे बड़े डेरी संस्थान की मार्केटिंग करता है, वह 24 मार्च को जारी किये गए विज्ञापन के बाद पेटा सहित तीन संस्थाओं के निशाने पर आ गया था। शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि इस विज्ञापन में दिए गए सभी तथ्य गलत हैं। पेटा सहित तीनों संस्थानों जैसे ब्यूटी विदआउट क्रुएलिटी और शरण इंडिया ने यह कहा कि दूध एक पूर्ण आहार नहीं है और सेहत के लिए हानिकारक है और साथ ही यह पौधे आधारित प्रोडक्ट की तुलना में कम सेहतमंद है।
उन्होंने यह भी दावा किया था कि जानवरों का दूध जानवरों के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि ऐसा करके उनपर अत्याचार होता है और पौधे आधारित खाद्यपदार्थ अधिक उपयोगी हैं। अमूल ने अपने उत्तर में खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के अंतर्गत प्रावधान प्रस्तुत किये थे और कहा था कि दूध पर लगाए गए हर आरोप झूठ, तथ्य हीन तथा किसी गलत उद्देश्य के अंतर्गत लगाए हैं। एएससीआई ने भी पाया कि पौधा आधारित दूध को खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के अनुसार प्रदत्त परिभाषा में दूध नहीं कहा जा सकता है। और उन्होंने अमूल की इस बात को ऊपर रखा कि “पौधे आधारित खाद्य पदार्थों को डेरी उत्पाद कहकर और उनका रूप धरकर बेचा जा रहा है।”
एएससीआई ने यह पाया कि दूध एक शाकाहारी उत्पाद है। पौधे आधारित खाद्यपदार्थों में प्रोटीन और लाभकारी खनिज होते हैं, पर उनमें प्रोटीन दूध की तुलना में बहुत कम होता है और यह साबित करने के लिए पर्याप्त आंकड़े हैं कि दूध एक पोषक और रिच आहार है। इसलिए दूध को पूर्ण आहार कहा जा सकता है क्योंकि इसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व सम्मिलित हैं, जो जीवित रहने के लिए जरूरी होते हैं।”
गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के अनुसार कई लेख जनता के बीच में गलत सूचनाएं फैला रहे हैं कि डेयरी उत्पाद जानवरों पर क्रूरता है, दूध से कई प्रकार का कैंसर हॉट है और पौधे आधारित खाद्य पदार्थ दूध से ज्यादा ताकतवर होते हैं, और पौधे आधारित खाद्य पदार्थ को “दूध” कहा जा सकता है!” अमूल ने ऐसे लेखों और वीडियो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी शुरू की है और हर मामले में न्यायालय ने कहा कि वह या तो गलत तथ्य हटाएं या फिर अमूल के सन्दर्भ हटाएं!
अब अमूल ने मांग की है कि पेटा इंडिया पर प्रतिबन्ध लगाया जाए। इतना ही नहीं महाराष्ट्र के मंत्री सातेज पाटिल ने भी गुरूवार को कहा कि कोई भी गैर सरकारी संगठन भारत के लोगों की खान पान की पसंद को डिक्टेट नहीं कर सकता है।
इन से तीन निष्कर्ष निकल कर आते हैं कि पहला तो यह कि यह भारत को आर्थिक, धार्मिक एवं स्वास्थ्य तीनों के आधार पर तोड़ने का षड्यंत्र है क्योंकि गाय और दूध हमारी धार्मिक और आर्थिक दोनों ही आस्थाओं का आधार है। अमूल के सीईओ ने भी उस दिन कहा था कि क्या पेटा इंडिया वाले 100 मिलियन डेरी किसानों को आजीविका देंगे, कौन उनके बच्चों की स्कूल की फीस देगा और कितने लोग उन उत्पादों को खरीद पाएँगे जो केमिकल से बने हुए हैं और सिंथेटिक विटामिन से बने हैं।
कहानी इससे कहीं अधिक है। कहानी है कथित तीसरी लहर की! हमने अभी तक अपने बच्चों को हल्दी और दूध से बचा कर रखा है। हमने हर बीमारी में या चोट लगने में हल्दी और दूध पीकर खुद की रक्षा की है। हिन्दुओं ने दूध के औषधीय महत्व को पहचानकर ही अमृत की संज्ञा दी है, वह इस अमृत की छाँव हमारे बच्चों से हटाना चाहते हैं और अमेरिका, चीन और रूस के महंगे और कृत्रिम बादाम, सोया और ओट्स के दूध को पिलाना चाहते हैं।
डेयरी उत्पादों से गाय कटती हैं और जब कोई उन्हें पालेगा नहीं तो गाय का क्या होगा? यह पेटा इंडिया नहीं बताती हैं, बल्कि वह वैध कत्लखानों की वकालत करती हैं। कि जानवरों को दयापूर्वक काटा जाए! और यहाँ पर भारत में पीछे पडी है कि हमारे बच्चों को दूध न मिले, जिससे गाय सारी वैध कत्लखाने में जाएं!