एकता कपूर की अल्ट बालाजी बैनर की ‘द मैरिड वुमन’ प्रदर्शित हो गई है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक विवाहित महिला की मुश्किलों को दर्शाती इस फिल्म में एक लेस्बियन प्रेम कथा परोसी गई है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सूचना व प्रसारण मंत्रालय को एक प्रकरण के दौरान ये कहकर लताड़ दिया था कि ओटीटी पर बनाए दिशा-निर्देश बिना नाख़ून और बिना दांत वाले शेर की तरह है। यदि इस फिल्म के विरुद्ध स्वयं सरकार कोर्ट चली जाए, तो भी इस फिल्म और इसे बनाने वालों का कानून कुछ नहीं कर सकता।
केंद्र सरकार द्वारा जो दिशा-निर्देश जारी किये गए थे, उनके अनुसार इन नियमों को बॉलीवुड स्वयं लागू करेगा। इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा और कानून की हद से तो दिशा-निर्देशों को पहले ही बाहर किया जा चुका है। तो देश प्रकाश जावड़ेकर से पूछना चाहता है कि लेस्बियन संबंधों पर आधारित इस वेब सीरीज पर एकता कपूर ने कौनसे दिशा-निर्देशों का पालन किया है?
अभी तो ये ही स्पष्ट नहीं है कि केंद्र सरकार किस तरह की विषय वस्तु को आपत्तिजनक मान रहा है और किसे नहीं। जब शुरुआत ही ऐसी हो रही हो तो आगे क्या होगा, समझा जा सकता है। ‘द मैरिड वुमन’ में नब्बे के दशक की कहानी में इस विषयवस्तु को दर्शाया गया है। ये तो स्वीकार करना होगा कि लेस्बियन संबंधों जैसी विकृतियां भारतीय समाज में आई है लेकिन ये अब अभी महानगरीय संस्कृति तक सीमित है।
ऐसी विकृतियों पर फिल्म बनाने का उद्देश्य तो केवल इनको बढ़ावा देना ही हो सकता है। अल्ट बालाजी ही नहीं, कई प्रोडक्शन हाउस इस तरह की फिल्मों को ओटीटी पर प्रदर्शित करने की तैयारी में है। निश्चित ही प्रकाश जावड़ेकर के नियमों के लिए वे अपनी फिल्म की विषयवस्तु नहीं बदलेंगे और न आपत्तिजनक दृश्य दिखाने से परहेज करने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस फिल्म के प्रकरण में चरितार्थ होती दिखाई दे रही है।
अब समझ में आ रहा है कि देश के सूचना व प्रसारण मंत्री दरअसल फिल्म उद्योग के लिए ये दिशा-निर्देश लेकर आए हैं। जनता की मांग तो वही यथावत बनी हुई है। ये बात और है कि सरकार बिहार चुनाव के बाद बंगाल चुनाव में व्यस्त है और प्रकाश जावड़ेकर बिना रोकटोक अपना एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं।
क्या अनुराग कश्यप ‘एके वर्सेज एके’ जैसी सेना का अपमान करने वाली दूसरी फिल्म बनाते समय जावड़ेकर के निर्देशों का ध्यान रखेंगे? एकता कपूर ने एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने दुःसाहस के साथ बताया है कि अपनी फिल्म बेचने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं।
आज एकता हैं, तो कल कोई और देश विरोधी, धर्म का अपमान करने वाली फिल्म लेकर चला आएगा। भारत का सेंसर बोर्ड और सूचना प्रसारण मंत्रालय बिना फाटक की रेलवे क्रॉसिंग है, जिसे हर कोई ऐरागैरा पार करके चला जाता है। पता नहीं जावड़ेकर साहेब चुल्लू भर पानी का मतलब समझते हैं या नहीं।