विपुल रेगे। वेब सीरीज का रोमांच अब फीका पड़ने लगा है। सन 2010 से इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया के कंटेंट का आकर्षण लोगों में बढ़ने लगा। सन 2014 में भारत में पहली बार एक वेब सीरीज की घोषणा हुई। बमुश्किल आठ वर्ष के भीतर ही फिल्म की इस नई विधा का आकर्षण मंद पड़ता जा रहा है। इसके कई कारण हैं और एक मुख्य कारण तो इस नई वेब सीरीज ‘मिथ्या’ में स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ता है।
ओटीटी मंच: Zee5
खानदानी फिल्म निर्देशक रोहन सिप्पी की ‘मिथ्या’ दर्शक को सस्पेंस में नहीं डालती, बल्कि खीज पैदा करती है। एक ऐसी वेब सीरीज, जो कछुए की गति से चलती है और अंत में कहीं भी नहीं पहुँचती। इसका अंत दर्शक को समझ ही नहीं आता। ऐसा ही आज के दौर में नब्बे प्रतिशत वेब सीरीज के साथ हो रहा है। दर्शक अपने छह-सात घंटे ख़राब कर एपिसोड देखता है और अंत में पाता है कि उसके हाथ कुछ नहीं आया।
आधे-अधूरे अंत के साथ मिथ्या समाप्त हो जाती है। बोरियत इस वेब सीरीज की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरती है। एक-एक प्रसंग अकारण खींचा गया है। ये एक अच्छी कथा थी और शुरुआत में सस्पेंस अच्छा क्रिएट किया गया किन्तु निर्देशक की नासमझी इस वेब सीरीज को ले डूबी। वेब सीरीज से दर्शकों का मोह भंग हो चला है तो उसका कारण ऐसे आधे-अधूरे अंत दिखाना है।
दर्शक को सस्पेंस में छोड़कर ये फिल्म निर्माता छह माह से एक वर्ष का गैप लेते हैं। तब तक दर्शक उस कहानी को ही भूल जाता है। मिथ्या एक प्रेम त्रिकोण से शुरु होती है। एक प्रोफेसर जूही अधिकारी, पति नील अधिकारी और उसकी स्टूडेंट रिया राजगुरु के बीच ये त्रिकोण जन्म लेता है। एक रात प्रोफेसर के पति की हत्या कर दी जाती है।
सारे सबूत प्रोफेसर के विरुद्ध जा रहे हैं। प्रोफेसर गिरफ्तार कर ली जाती है। कथा आगे बढ़ती है तो स्टूडेंट के अतीत के रहस्य सामने आते हैं। अब कथा नया मोड़ लेती है और बार-बार फ्लैशबैक में जाती है। छह एपिसोड निकल जाने पर भी कथा अधूरी ही रहती है। इसका कोई मुक़म्मल अंत नहीं किया गया है। मिथ्या की प्रेरणा एक ब्रिटिश थ्रिलर शो ‘चीट’ से ली गई है।
अपितु वह शो बहुत स्तरीय था। उसमे एक प्रोफेसर और स्टूडेंट के संबंध को सुंदरता से रेखांकित किया गया था। मिथ्या का हासिल भाग्यश्री की बेटी अवंतिका दासानी हो सकती थी लेकिन ऐसा हो न सका। अवंतिका इस वेब सीरीज की मुख्य किरदार थी। निर्देशक ने इस किरदार के लिए अवंतिका को चुनकर वेब सीरीज के सफल होने की संभावनाओं पर ही ग्रहण लगाकर रख दिया।
अवंतिका की अभिनेत्री माँ एक औसत अभिनेत्री थी। उनके पास अपनी एकमात्र सफल फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में दिखाने के लिए एक दो एक्सप्रेशंस हुआ करते थे। वही स्थिति अवंतिका की दिखाई देती है। उनका अभिनय लचर स्तर का है और उनका चेहरा भी ऐसा नहीं है कि वे यहाँ सुंदरता के बल पर सफल हो सके। फिल्म जगत में किसी कलाकार को केवल दो ही गुण टिका सकते हैं।
या तो उसमे अभिनय क्षमता होनी चाहिए या उसमे बला की सुंदरता होनी चाहिए। दुर्भाग्य से अवंतिका के पास ये दोनों ही गुण नहीं हैं। अपितु बाकी कलाकारों ने अच्छा अभिनय दिखाया है। हुमा कुरैशी, के.सी. शंकर, रजीत कपूर के अभिनय से कुछ दिल बहल जाता है। मनोरंजन का अभाव और अवंतिका का चयन इस वेब सीरीज को डूबाकर रख देता है।
ये वह बिंदु है, जहाँ से वेब सीरीज बनाने वालों को अपने कंटेंट में सुधार लाना होगा। यदि वे ऐसी ही आधी-अधूरी सीरीज बनाने लगेंगे तो अगले दो तीन वर्ष में ही दर्शक फिल्म की इस आठ वर्ष पुरानी विधा से किनारा कर सकते हैं।