हरियाणा में सीट को लेकर हुए दो व्यक्तियों के बीच हुए झगड़े में एक मुसलमान लड़के की मौत हो गयी। तथाकथित सेक्यूलरों और अवार्ड वापसी गिरोह ने इसे ‘गोरक्षा’ से जोड़ दिया और पूरी दुनिया में इसे प्रचारित कर दिया कि भारत में मुसलिम असुरक्षित हैं। गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिग भीड़ द्वारा उपद्रव हो रही है। एनजीओ माफिया शबनम हाशमी ने अवार्ड वापसी की शुरुआत की तो तथाकथित बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, वामपंथियों, कम्युनिस्ट-कांग्रेस पार्टी ने ‘नॉट इन माई नेम’ नामक अभियान चलाकर हिंदुओं को अपमानित करने का कार्यक्रम शुरु कर दिया। हरियाणा रेलवे पुलिस की जब जांच रिपोर्ट आयी तो इसकी पुष्टि हो गयी कि हाफिज जुनैद की हत्या सीट को लेकर झगड़े की वजह से हुई थी न कि गोरक्षा की वजह से! लेकिन कौन सुनता है?
हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की तरह कांग्रेस के नेता 31 जुलाई यानी आज भी संसद में कांग्रेसी सांसद जुनैद की हत्या को मॉब लींचिंग ही बता रहे हैं! कमाल है! झूठ की भी हद होती है! इसी तरह उप्र में अखलाक के घर से मिले मांस पर आयी रिपोर्ट में यह साफ स्पष्ट हुआ कि उसके घर जो मांस मिला था, वो गोवंश का था! जब गोवंश की हत्या उप्र में दशकों से प्रतिबंधित है तो किसी ने यह पूछने की जहमत क्यों नहीं उठाई कि अखलाक के यहां गोवंश का मांस पक कैसे रहा था? लेकिन कानून व्यवस्था से जुड़ा यह सवाल सिरे से नदारत था! हैदराबाद के रोहित बेमुला की जाति सर्टिफिकेट से स्पष्ट हुआ कि वह दलित नहीं था, लेकिन ढोल पीटा गया दलित का! आखिर किस कारण से सच को झूठ की चासनी में लपेट कर दुनिया में परोसा गया? हत्या का विरोध आप करते तो मैं भी आपके साथ था, लेकिन आपने तो हत्या और आत्महत्या में भी हिंदू-मुसलमान-दलित का एंगल ढूंढ़ लिया था, इसलिए मेरा सवाल आपके इसी झूठ पर है! इन तथाकथित बुद्धिजीवियों का झूठ उजागर होता चला गया, लेकिन इनके झूठ का शोर इतना ज्यादा कि आज भी सच बहुतों के कान-आंख तक नहीं पहुंच पाया है। हत्या और आत्महत्या को तो कोई भी संवेदनशील इनसान गलत ही ठहराएगा!
चलिए मान लिया कि आप संवेदनशील हैं और भारत में मॉब लींचिंग से चिंतित हैं! लेकिन बंगाल में हिंदुओं पर हमले से लेकर बिहार के मुसलिम विधायक फिरोज अहमद द्वारा जयश्री राम कहने पर मुसमलानों द्वारा उनके खिलाफ दिया गया फतवा, स्वर्गीय अब्दुल कलाम की स्मृति में बने अभिलेखागार में बाइबिल और कुरान के साथ गीता रखे जाने के बावजूद आपका केवल गीता के विरोध में बोलना और तसलीमा नसरीन जैसी लेखिका पर औरंगाबाद में ओवैसी की पार्टी के मुसलमान कट्टरपंथियों का हमला आदि एक साथ एक दिन में घटी, लेकिन आपने जुबान क्यों सी ली? ऐसा तो नहीं कि मुसलमानों की कट्टरता का विरोध करते ही आपका सेक्यूलरिज्म खतरे में पड़ जाएगा? जनाब सच यही है। एक दिन में एक साथ कई बड़ी और दहशत पैदा करने वाली घटनाएं हुई, लेकिन देश का कोई बुद्धिजीवी आगे आकर इसका विरोध करने नहीं आया, जिससे पता चलता है कि मुसलिम कट्टरपंथियों और भारत के बुद्धिजीवियों के बीच गजब की सांठ-गांठ है और कश्मीर के मामले में तो यह कई बार उजागर भी हुआ है! याद कीजिए, आतंकवादी बुरहान वानी को पत्रकार बरखा दत्त ने आतंकवादी नहीं, एक स्कूल मास्टर का मासूम बेटा लिखा था!