कभी 45 पार के उम्र के लोगों को देखकर सोचता था कि मैं इस उम्र में किस सीमा तक पहुंचूंगा? आज इस 15 जुलाई को जीवन के 45 वसंत पूरे हो चुके हैं और लगता है कि वह एक कार्य जो मेरी आत्मा को तृप्त कर दे, अभी किया जाना बांकी है।
मेरा जीवन काफी उतार-चढ़ाव और संघर्ष भरा रहा, जिससे लड़ने और जूझने की शक्ति ईश्वर ने मेरे अंदर भर दी। मैं अपनी मां से मात्र 3 साल 1 महीने की उम्र में दूर हो गया। बचपन ननिहाल में और युवावस्था हॉस्टल में बीता।
मेरे अंदर सनातन का संस्कार बचपन से मेरी नानी ने भरा, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। असल में मेरे जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव मेरी नानी का ही है। वह बचपन में अपने हाथों से खाना खिलाती थी और रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद की कथाएं सुनाती थी।
इसने मेरे जीवन को इतना दृढ़ बनाया कि मैं सनातन धर्म के लिए अपनों के विरुद्ध भी खड़ा हो जाता हूं। समाज, सरकार, मित्र, जानकार आदि तो बहुत छोटी बात है, मैं अपने परिवार के विरूद्ध भी काफी बार खड़ा होता हू़ं। और यही वह कारण है कि मैं KGF( Kurukshetra Gurukulam Foundation) के जरिए हर घर को सनातन पाठशाला बनाने की चेष्ठा कर रहा हूं।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चे के आरंभिक 7 साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। उस दौरान जो संस्कार उसके अंदर रोप दिए जाएं, वही वह आजीवन रह जाता है। मैं स्वयं इसका उदाहरण हूं। आज बच्चे क्रेच में पल रहे हैं और दादी-नानियां वृद्धाश्रम में छोड़ दी गई हैं। इसने हमारे सनातन पारिवारिक समाजीकरण को बहुत क्षति पहुंचाई है।
ईश्वर की कृपा, अपनों का साथ, बड़ों का आशीर्वाद और छोटों के स्नेह से हर घर सनातनमय हो, इस प्रयास को यदि सफल बना सका तो ही इस मानव जीवन का अर्थ सधेगा, अन्यथा परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि वह मुझे इस भारत भूमि में बार-बार जन्म दे, जब तक कि यह लक्ष्य सध न जाए। मोक्ष की कामना हम जैसों के लिए नहीं है। इस जीवन पथ पर सहायक हर व्यक्ति के प्रति मैं श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं। आभार!
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