विपुल रेगे। जॉन अब्राहम ऐसे समय पर अपनी फिल्म ‘अटैक’ लेकर आए हैं, जब बॉक्स ऑफिस पर द कश्मीर फाइल्स और आर आर आर ने धमाल मचा रखा है। अपितु अच्छे कंटेंट के कारण अटैक की दशा अक्षय कुमार की बच्चन पांडे जैसी नहीं होगी। बजट कम होने के कारण संभावनाएं बन रही है कि जॉन अब्राहम की फिल्म न केवल लागत वसूल कर लेगी, बल्कि कुछ लाभ कमाने की स्थिति में भी आ जाएगी।
अर्जुन शेरगिल एक सैनिक है। एक दिन एयरपोर्ट पर आतंकी हमला होने के बाद वह पैरेलाइज्ड होकर व्हील चेयर पर आ जाता है। भारत सरकार अपने एक सुपर सोल्जर अभियान को शुरु करना चाहती है। अर्जुन को इसके लिए चुना जाता है। उसके शरीर में एक स्मार्ट चिप डाल दी जाती है। इसके बाद उसकी अपंगता दूर हो जाती है और वह पहले से अधिक फुर्तीला और मारक बन जाता है।
इस बीच एक आतंकी संसद पर बड़ा हमला करता है और पीएम सहित बहुत से लोगों को बंधक बना लेता है। अर्जुन पर एक्सपेरिमेंट पूर्ण नहीं हुए हैं लेकिन उसे इस ऑपरेशन के लिए भेजा जाता है। निर्देशक लक्ष्य राज आनंद की ये फिल्म हमें बहुत सी हॉलीवुड फिल्मों की याद दिलाती है। यूनिवर्सल सोल्जर और साइबोर्ग फिल्म का कथानक कुछ ऐसा ही था।
हालाँकि पश्चिमी सिनेमा से आयातित इस कथानक का अच्छा भारतीयकरण किया गया है। ये एक सैनिक की वापसी और एक आतंकी अभियान को निष्फल करने की कथा है, जो दर्शक को सीट से टिकाकर रखती है। एक्शन सीक्वेंस फिल्म का विशेष आकर्षण है। जॉन अब्राहम के एक्शन दृश्य ही फिल्म की असल यूएसपी है।
ऐसे विषयों का भारतीयकरण करने में हिन्दी पट्टी के निर्देशक अक्सर गच्चा खा जाते हैं और फिल्म को आकर्षक बनाने के लिए उसमे मुंबइयां मसाला भी डाल देते हैं। हालाँकि अटैक को लेकर निर्देशक ने ऐसे जोखिम नहीं लिए हैं। कहानी एक ही ट्रेक पर चलती है। इसमें कोई आइटम सांग नहीं है और न केवल जॉन की लोकप्रियता के भरोसे पर फिल्म बनाई गई है। स्क्रीनप्ले बहुत स्मूद है और फिल्म की गति बहुत तेज़ है।
फिल्म का कथानक ऐसा है कि इसमें कही ठहराव की गुंजाइश नहीं है। निर्देशक ने अच्छा काम किया है लेकिन उससे कुछ गलतियां भी हुई है। जैसे शरीर में स्मार्ट चिप लग जाने के बाद अर्जुन का रूपांतरण प्रभावित नहीं करता है। कास्टिंग में निर्देशक गड़बड़ कर गया है। एक मंत्री के लिए रजित कपूर का चयन गलत सिद्ध हुआ है। एक वैज्ञानिक के रुप में रकुल प्रीत कौर का चयन ठीक नहीं रहा।
वे इस किरदार की गहराई में नहीं जा पाई हैं। जॉन अब्राहम की फिल्म है तो विलेन भी दमदार होना चाहिए लेकिन निर्देशक ने एक औसत अभिनेता इल्हाम एहसास को लेकर गड़बड़ कर दी है। रत्ना पाठक शाह जैसी अभिनेत्री से भी निर्देशक दमदार काम नहीं ले सके। हालाँकि निर्देशक एक संतुलित फिल्म बनाने में सफल रहे हैं।
अटैक बहुत बड़ी हिट होगी, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन दो साल से सफलता के लिए तरस रहे जॉन अब्राहम को राहत अवश्य दे जाएगी। जॉन अब्राहम के एक्शन और संतुलित निर्देशन के लिए फिल्म देखी जा सकती है। फिल्म अच्छा मनोरंजन करती है और टिकट के पैसे बर्बाद नहीं होंगे।
यह फिल्म देखने के बाद दो सीन मुझे खटके, पहला जब एक राजनेता को मारा जाता है तो उसने भगवा जैकेट पहन रखा होता है, दुसरा जब अंतिम दृश्य में भारत का ध्वज पार्लमेंट पर वापिस लगाया जाता है तो उस ध्वज में सफ़ेद और हरा रंग एक समान है लेकिन भगवा लगभग आधा है। यह भारत के ध्वज का अपमान है, लेकिन कोई शोर नहीं। सेकुलरिज्म है।