फिल्म समीक्षा: राज़ी
निर्देशक: मेघना गुलज़ार
संगीत: शंकर-एहसान-लॉय
कॉस्ट: आलिया भट्ट, रजित कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ जकारिया, विकी कौशल, सोनी राजदान, जयदीप अहलावत
वह चंद महीने पहले ही रॉ के लिए जासूस बनी थी और अब उसके जीवन का सबसे मुश्किल पल सामने था। सीक्रेट एजेंट सहमत खान का असली चेहरा उसके पाकिस्तानी पति के सामने आ गया था। सहमत अपने ही पति पर रिवॉल्वर ताने खड़ी है। आंखों में आंसू हैं लेकिन चेहरे पर दृढ़ता के भाव हैं। ‘तुमने ऐसा क्यों किया सहमत’, पति सवाल करता है। ‘मेरे लिए वतन से बढ़कर कुछ नहीं, खुद भी नहीं’, सहमत आंसू पोंछते हुए जवाब देती है।
अर्थशास्त्र में कहा गया है कि किसी भी राज्य के राजा के पास विश्वासपात्र गुप्तचरों का होना बहुत जरुरी है। जान जोखिम में डालकर देश के लिए काम करने वाले इन जासूसों की कहानियां कभी दुनिया के सामने नहीं आ पाती। दुनिया किम फिल्बी, गाय बर्गेस, मॅकलीन, नूर इनायत खान और माताहारी जैसे ख्यातनाम जासूसों को ही जानती है लेकिन कई नाम ऐसे हैं जो गुमनाम ही दुनिया से चले गए।
सहमत खान उन हजारों जासूसों में से एक थीं जिसने देश की खातिर एक पाकिस्तानी से शादी की और एक बेहद खतरनाक मिशन को अंजाम दिया। मेघना गुलज़ार की फिल्म राजी उसी सहमत की कहानी है। राजी देखते हुए आप एक जासूस की तकलीफों भरी ज़िंदगी से दो-चार होते हैं। आप जानते हैं उन अनाम नायको की कहानी, जिन्हे कभी लाल किले की प्राचीर से उनकी देशभक्ति का सम्मान नहीं मिला। वे गुमनाम ज़िंदगी जीते हैं और गुमनाम मौत मर जाते हैं।
निर्देशक मेघना गुलज़ार की फिल्म ‘राज़ी’ उसी देशभक्त जासूस सहमत खान की कहानी को बड़ी ज़िंदादिली से बयान करती है। ये फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है।यदि हरिंदर सिक्का का उपन्यास ‘कॉलिंग सहमत’ प्रकाशित न हुआ होता हम कभी जान ही नहीं पाते कि 1971 में सहमत खान (काल्पनिक नाम) द्वारा भेजी गई महत्वपूर्ण सूचनाओं की मदद से हम अपनी समुद्री सीमा बचाने में कामयाब रहे थे।
मेघना गुलज़ार-भवानी अय्यर का स्क्रीनप्ले और आलिया भट्ट की जादुई उपस्थिति ‘राज़ी’ की सबसे बड़ी ताकत है। 1971 की पृष्ठभूमि में कहानी को स्थापित किया गया है। भारत के लिए जासूसी करने वाले हिदायत खान को कैंसर हो गया है। वह एक जासूस के तौर पर देश की सेवा नहीं कर सकता। भारत-पाक की सरहदों पर तनाव बढ़ रहा है इसलिए दुश्मन देश में निगाह रखने वाला कोई भरोसेमंद व्यक्ति चाहिए। हिदायत इसके लिए अपनी बीस साल की अबोध बच्ची सहमत को तैयार करता है। सहमत पाकिस्तानी फौजी से शादी कर पाकिस्तान जाती है और भारत के लिए गुपचुप ढंग से काम करती है।
‘डिटेलिंग’ मेघना गुलज़ार के निर्देशन की विशेषता है। उन्होंने जासूसी के पेशे की मुश्किलों को सामने रखते हुए खूबसूरती से दिखाया है कि दुश्मन देश में रहते हुए जासूस किस गोपनीयता से अपना लक्ष्य भेदते हैं। अपने घर के सदस्य की हत्या करने के बाद वह संदेश भेजती है, “छत टपक रही थी, मरम्मत कर दी।” टपकने का मतलब है किसी सदस्य को उसके जासूस होने का पता चल गया था। फिल्म के पहले भाग में कहानी देर से गति पकड़ती है, जो स्क्रीनप्ले की खामी कही जाएगी। हालांकि आधे घंटे में फिल्म की कहानी ‘सेट’ हो जाती है और आप फिल्म में रूचि लेने लगते हैं।
आज किसी ने लिखा की आलिया भट्ट का स्तर सुधर गया है। आलिया भट्ट में पहली फिल्म से कोई सुधार या गिरावट नहीं आई है। वे एक नैसर्गिक अभिनेत्री हैं। वे जैसी प्रखर पहले थी, वैसी ही आज भी है। ‘राज़ी’ में उन्होंने अवार्ड विनिंग परफॉर्म किया है। एक जासूस और पत्नी के बीच की दुविधा उन्होंने मनोभावों से बखूबी दिखाई है। फिल्म में रजित कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ जकारिया ने अपने-अपने किरदार का सौ फीसदी दिया है लेकिन आलिया का ‘ओरा’ उनके अभिनय को फीका कर देता है। निश्चित रूप से राजकुमार राव (ओमर्टा) के बाद आलिया भट्ट साल के सबसे अच्छे अभिनेताओं की दौड़ में ऊपर दिखाई दे रही हैं।
फिल्म का संगीत उल्लेख करने लायक है। शंकर-एहसान-लॉय ने गुलज़ार के गीतों को पंछी बनकर उड़ने दिया है। फिल्म में महज तीन गीत हैं लेकिन आपके मेमोरी कार्ड के ‘फोल्डर’ में शामिल होने का हक रखते हैं। फिल्म के एक दृश्य में पाकिस्तानी बच्चे गा रहे हैं ‘ए वतन, वतन मेरे आबाद रहे तू’। सहमत खान के होठों पर भी वही गीत उतर आया है। फर्क इतना है कि बच्चे पाकिस्तान के लिए गा रहे हैं लेकिन सहमत खान ‘हिन्द’ के लिए गा रही है। ये दृश्य प्रभावी नहीं होता अगर शंकर-एहसान-लॉय का ये सुंदर गीत नहीं होता।
भारत का दर्शक वर्ग ‘राज़ी’ के लिए कोई उत्साह नहीं दिखा रहा। पहले दिन फिल्म को बहुत कम दर्शक नसीब हुए हैं। मानसिकता बदलनी होगी। राजी जैसी फिल्मों को दर्शक का सरंक्षण चाहिए। पिछले हफ्ते राजकुमार राव के उत्कृष्ट अभिनय से सजी ‘ओमर्टा’ अमिताभ बच्चन-ऋषि कपूर की एक औसत फिल्म से बॉक्स ऑफिस की जंग हार गई। कारण ‘ओमर्टा’ में मनोरंजन नहीं था, वह एक वास्तविक फिल्म थी। जब हम ऐसी फिल्मों को सरंक्षण नहीं दे सकते तो ऑस्कर पुरस्कारों में हमारी नगण्य भागीदारी के लिए हमें फिल्म उद्योग को नहीं कोसना चाहिए।
कहते हैं कश्मीरियत का अर्थ ही बदल चुका है। अब कश्मीरियत का अर्थ पथराव और फौजियों की हत्या करना रह गया है। कोई भी धारणा बनाने से पहले रुकिए। सहमत खान में कश्मीरियत और वतन के लिए ज़ज़्बा नहीं होता तो वह इतना बड़ा जोखिम नहीं उठाती। उस गुमनाम महिला का पुत्र आज नौसेना में शामिल होकर देश की सेवा में लगा है। उस नौजवान में जम्मू-कश्मीर असली ‘कश्मीरियत’ का दीदार कर सकता है।
URL: Movie review: Alia Bhatt’s “RAAZI’ is the face of Kashmiri patriotism!
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