आप में से कितने दर्शक पाउली दाम को जानते होंगे। कितने हिन्दी दर्शकों ने पाउली की फ़िल्में देखी होंगी। बंगाली सिनेमा के इस काले जादू का सम्मोहन कितनों को छूकर निकल गया होगा। बंगाली सिनेमा ने ओटीटी पर शंखनाद करते हुए बताया है कि वे बॉलीवुड और टॉलीवुड की सिनेमेटिक क्षमता के सामने कहीं से भी निर्बल नहीं है। उनका सिनेमा स्वाभाविक है, उनका सिनेमा सहज ही दर्शक के मन में प्रवेश करता है। उत्तेजक, बोल्डनेस वाली फ़िल्में सदा से ही बंगाली सिनेमा की पहचान रही है किन्तु काली के दोनों सीजन देखने के बाद मैं आश्वस्त हूँ कि उन्होंने वेब प्लेटफॉर्म पर बॉलीवुड को सशक्त चुनौती दे डाली है।
काली कोलकाता की एक आम निम्न मध्यमवर्गीय महिला है। उसका पति ड्रग के धंधे में है और काली मसाज पार्लर चलाती है। एक दिन पति के अपराध की काली छाया उसके परिवार पर पड़ जाती है। उसका बेटा एक हमले में घायल होकर अपना एक फेफड़ा गँवा देता है। बेटे की जान बचाने के लिए काली को अपराध की राह पकड़नी पड़ती है।
विवशता उसे ऐसे गैंग वॉर में ले जाती है, जहाँ ज़िंदगी की रफ़्तार बंदूक की नाल से भी कम है। कोलकाता में एक बहुत बड़ा ड्रग कन्साइनमेंट पकड़ा गया है। बेहद बर्बर लिंग जियान को ये ड्रग्स किसी भी कीमत पर चाहिए। एक अन्य गैंग लार्ड स्वपन भी ड्रग्स का ये जखीरा पाना चाहता है। दुर्भाग्य से काली के कारण दोनों गिरोह के बीच गैंगवॉर शुरू हो जाती है।
काली के बेटे को हमेशा ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है। स्वपन उसके बेटे को अगवा कर लेता है और बदले में कंसाइनमेंट लाने के लिए कहता है। अब काली को बेटे की जान बचानी है क्योंकि माल नहीं मिला तो बेटे की ऑक्सीजन निकाल दी जाएगी।
काली एक क्राइम थ्रिलर है। इसकी मुख्य किरदार पाउली दाम हैं। दोनों वेब सीरीज उन पर ही केंद्रित है। काली और कोलकाता का तो संबंध प्रगाढ़ है। ये शहर माँ काली का सिद्ध धाम है। काली का एक अदृश्य प्रभाव हम कोलकाता के अनिद्य सौंदर्य में देख पाते हैं। काजल से सुशोभित नेत्रों से तेज़ बिखरता महसूस होता है।
काली के तेज़ का सूक्ष्म प्रभाव बंगाल के सौंदर्य में अनुभव किया जाता है। पाउली दाम ने काली की भूमिका में वही प्रभाव प्रस्तुत किया है। इस किरदार में उनको अपनी सुंदरता दिखाने के बहुत कम मौके थे क्योंकि वह लगातार रणक्षेत्र में खूंखार अपराधियों से घिरी हुई रहती है।
ऐसा प्रभावोत्पादक अभिनय बहुत समय से बॉलीवुड में देखा ही नहीं गया। इस रेंज की आखिरी अभिनेत्री माधुरी दीक्षित थीं। काली का बेटे को बचाने के लिए गैंग माफिया से संघर्ष को उन्होंने बहुत सजीवता से प्रस्तुत किया है। काली का किरदार पाउली ही निभा सकती थीं।
उनकी आँखों से जो चिंगारियां बरसती है, उसे देखकर इस बात का यकीन होता है। ये किसी भी अभिनेत्री के लिए गौरव की बात है कि हीरो के बिना फिल्म को अपने कंधों पर निकाल ले जाए। काली ही इस फिल्म की नायक है।
फिल्म के किरदारों को जतन से गढ़ा गया है। एक एक किरदार को देखते हुए लगता है, कोई कैरेक्टर स्कैच देख रहे हो, जिसकी एक एक भाव-भंगिमा मन को प्रिय लगती है। निर्देशक को कैरेक्टर बिल्डिंग के लिए पूरे नंबर मिलना चाहिए। निर्देशक जोड़ी रोहन घोष और अरित्र सेन ने किरदारों की चारित्रिक विशेषताएं बड़े दिलचस्प ढंग से दिखाई है।
जैसे जिनलियांग खुद को काक्रोच कहता है। इसके पीछे उसका लॉजिक है कि करोड़ों साल में डायनासोर ख़त्म हो गए लेकिन काक्रोच सर्वाइव कर गए। वह क्रूर है। दुश्मन के अंगों को मशीन से काटने में उसे स्वर्गिक आनंद मिलता है। स्वपन व्हील चेयर पर रहकर अपना गैंग संचालित करता है। जिनलियांग के मुकाबले वह सभ्य सरगना है। वह किताबें पढ़ता है और गोली भी चलाता है। एक हैरतअंगेज दृश्य में उसका संवाद है ‘हमारा अपीयरेंस ही हमारी ताकत है।‘
कितने कलाकारों का नाम लिया जाए, ये सभी बेहतरीन साबित हुए हैं। अनिकेत की भूमिका में राहुल बनर्जी, डीसीपी मानवी गुप्ता के किरदार में विद्या मालदवे, कौशिक चक्रबर्ती, मौनी आदि ने गहराई से अपने किरदारों को उभारा है। कोलकाता के बैकड्रॉप में घटते रक्तरंजित गैंगवॉर के इन किरदारों को देखना अलहदा अनुभव है।
यदि काली को मैं एक सुंदर नेकलेस मानूं तो उसके पैंडल में पाउली नामक रत्न लगा है और बाकी किरदार उस नेकलेस के मोती हैं। वेब सीरीज में हिंसा और शारीरिक संबंधों के कुछ दृश्य हैं इस कारण ये बच्चों के लायक नहीं है। इसे वयस्क दर्शकों को ही देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि बंगाल से आया ये काला जादू बॉलीवुड से उन्नीस नहीं बीस ही है।ये वेब सीरीज zee 5 पर देखी जा सकती है।