विपुल रेगे। कार्तिक आर्यन एक स्वाभाविक अभिनेता हैं किन्तु वे ऐसे किरदार में फिट नहीं बैठते, जैसा उन्होंने अपनी नई फिल्म ‘धमाका’ में किया है। वे हल्की-फुल्की मनोरंजक फिल्मों के नायक हैं, ऐसे गंभीर एक्ट तो उनके कॅरियर को लील जाएंगे। शुक्रवार को प्रदर्शित हुई उनकी फिल्म ‘धमाका’ बड़ी ही निष्क्रिय फिल्म सिद्ध हुई है। ऐसे बचकाना निर्देशकों के साथ उभरते हुए कलाकारों को काम नहीं करना चाहिए। बॉक्स ऑफिस पर ये धमाका दर्शक सुनेंगे, इसकी संभावनाएं कम ही दिखाई देती है।
ओटीटी मंच : नेटफ्लिक्स
दक्षिण भारतीय फिल्मों को जमकर दोह लेने के बाद बॉलीवुड कोरियाई सिनेमा से माल चुरा रहा है। धमाका एक कोरियाई फिल्म ‘द लाइव टेरर’ पर आधारित है। निर्देशक राम माधवानी ने इसका बहुत ही लचर भारतीयकरण किया है। देखा जाए तो बॉलीवुड के निर्देशक चोरी भी कायदे से नहीं कर पाते। किसी दक्षिण भारतीय फिल्म को जस का तस परोसने में इनको कोई कठिनाई नहीं होती लेकिन एक कोरियाई फिल्म को जस की तस नहीं परोसा जा सकता। उसकी कथा को भारत के संदर्भों और प्रतीकों में गढ़ना पड़ता है, जो बॉलीवुड के बुते की बात नहीं है।
सलमान खान की पिछली फिल्म ‘राधे’ बॉक्स ऑफिस पर फेल रही थी। उसकी कहानी भी एक कोरियाई फिल्म से चुराई गई थी। धमाका एक ऐसे पत्रकार की कहानी है, जिसे एक आतंकी का कॉल आता है। वह आतंकी मुंबई का एक ब्रिज उड़ाने की धमकी दे रहा है। ब्रेकिंग के लालच में चैनल आतंकी से सौदा करता है और उससे बातचीत करने के लिए पत्रकार अर्जुन पाठक को ऑन एयर बैठाता है। कुछ देर में पता चलता है कि ये कोई आतंकी नहीं है बल्कि एक ऐसा युवा है, जिसके पिता ब्रिज पर काम करते हुए मारे गए थे और उनको मुआवजा नहीं दिया गया था।
इसका बदला लेने के लिए उसने न केवल ब्रिज पर बम लगा दिए हैं बल्कि कुछ नागरिकों को भी बंधक बना लिया है। अर्जुन को पता चलता है कि उसके इयरफोन में आतंकी ने बम लगा दिया है और अब उसे उसकी सारी बात माननी होगी। चैनल चाहता है कि अर्जुन आतंकी को गिरफ्तार करवा दे, ताकि उसका श्रेय चैनल ले सके। ये एक ऐसी कहानी है, जिसमे सैकड़ों लूप होल्स सहज ही दिखाई दे जाते हैं। फिल्म की अधिकांश कहानी स्टूडियो के भीतर ही चलती है। बहुत कम शॉट आउटडोर के लिए गए हैं। ऊपर से कथा में कोई आकर्षण ही नहीं दिखाई देता।
निर्देशन में ऐसी ग्रिप नहीं है कि एक चलताऊ कहानी को देखने लायक बना सके। जब आप एक आम आदमी को आतंकी बना देते हैं तो कथा का आकर्षण वही समाप्त हो जाता है और वह एक उबाऊ आर्ट फिल्म की ओर मुड़ने लगती है, जिनका शत-प्रतिशत अंत दुःखद ही होता है। शुरुआती आधे घंटे में ही दर्शक की रुचि फिल्म से समाप्त हो जाती है। निर्देशक ने कम बजट में फिल्म बनाने की कोशिश की है और मुंह की खाई है। आउटडोर के दृश्य बहुत नकली प्रतीत होते हैं। फिल्म का मुख्य खलनायक अंत तक दिखाई नहीं देता।
और जब वह क्लाइमैक्स में सामने आता है तो पता चलता है कि एक निहायत ही कमज़ोर अभिनेता को एक महत्वपूर्ण भूमिका दे दी गई। कार्तिक आर्यन एक उभरते हुए सितारे हैं। उनको अब सोच-समझकर फ़िल्में साइन करनी चाहिए। करण जौहर से हुए विवाद ने उन्हें बहुत नुक़सान पहुंचाया है। उस विवाद के बाद शाहरुख़ खान की एक बड़ी फिल्म भी उनसे छीन ली गई। ‘धमाका’ बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी है। ये असफलता कार्तिक को बहुत कष्ट देगी क्योंकि इससे उनको बड़ी अपेक्षाएं थी। एक बहुत कमज़ोर फिल्म ने उनकी स्थिति फिल्म उद्योग में और कमज़ोर कर दी है। कार्तिक के प्रशंसकों के लिए ये बड़ा आघात है।