फ़िल्में ‘वाचाल’ होती है। दर्शक को समझने में ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। कुछ फ़िल्में ‘अनुच्चरित’ होती हैं। उनके स्वर दर्शक को बड़े अस्पष्ट मालूम होते हैं। विश्वरूप-2 एक ऐसी ही फिल्म है, जिसका सन्देश व्यर्थ की सिनेमाई कसरत में मंद पड़ जाता है। ये फिल्म ऐसी पेंटिंग की तरह है, जिसके रंगों का अलहदा मज़ा लिया जा सकता है लेकिन मुकम्मल होने पर ये समझ नहीं आती। विश्वभर में प्रदर्शित हुई ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर मिश्रित प्रतिक्रियाओं का सामना कर रही है। हालांकि इसके कुछ रंग बड़े चटखदार हैं।
विश्वरूप का पहला भाग प्रदर्शित होते ही ऐसा माना गया कि फिल्म मुस्लिम विरोधी है। जबकि उस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं था। फिल्म की आलोचना हुई, जिसका असर सीधा इसके व्यापार पर हुआ। निर्माता-निर्देशक कमल हासन को इसके दूसरे भाग के साथ लौटने के लिए पांच साल की प्रतीक्षा करनी पड़ी। इस बीच उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ बलवती हो उठी। ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि उन्होंने मूक रूप से इस फिल्म को अपना ‘राजनीतिक घोषणापत्र’ बनाया है। यहाँ वे रजनीकांत के सिनेमाई राजनीतिक घोषणापत्र ‘काला’ से कुछ पीछे रह गए। रजनीकांत ने अपनी फिल्म में मुखरता से खुद को जन नायक घोषित कर दिया लेकिन कमल हासन दबे-छुपे से अपनी बात कहते नज़र आते हैं।
फिल्म उसी जगह से आगे बढ़ती हैं, जहाँ पांच साल पूर्व विराम लिया था। कमल हासन का रॉ एजेंट किरदार अल-कायदा के जेहादियों को ट्रेनिंग देने के बहाने उनकी खुफिया जानकारियां इकट्ठा करने के लिए पाकिस्तान और अफगानिस्तान जाता है और राहुल बोस का आतंकी किरदार उसे अपना दोस्त, अपना भाई मान लेता है। बाद में ओमार इसका बदला लेने के लिए पलटवार करता है। इस बार वह भारत के कुछ शहरों को उड़ाने की योजना बना रहा है। कहानी दिलचस्प थी लेकिन निर्देशक ने क्लाइमैक्स तक पहुँचने के लिए कहानी को जलेबी जैसा गोल-गोल घुमाया है, उसे समझने के लिए आम दर्शक इतना दिमाग नहीं लगा सकेगा।
जैसा कि मैंने कहा ये फिल्म खंड-खंड में प्रभावित करती है लेकिन समग्र प्रभाव में एक बेतरतीब ढांचा नज़र आती है। फिल्म का ओपनिंग सीक्वेंस बहुत वास्तविकता से दर्शक को फिल्म में प्रवेश करवाता है लेकिन बेवजह डाले गए लम्बे और उबाऊ सीक्वेंस दर्शक के धैर्य की कठिन परीक्षा ले डालते हैं। फ्लैशबैक एक साथ न होकर टुकड़ों में दिखाया गया है। इसके कारण आम दर्शक के लिए कई बार भ्रम की स्थिति बन जाती है। तगड़ा सिनेमाई दर्शक या फिल्म मेकिंग को गहराई से जानने वाला दर्शक ही विश्वरूप की गूढ़ता को समझ सकता है। आखिरी आधे घंटे में कहानी में गति लौटती है। क्लाइमैक्स जबरदस्त है लेकिन इस तक पहुँचने के लिए दर्शक को काफी अनुपयोगी दृश्यों को सहना पड़ता है।
विश्वरूप का कैमरा वर्क और आर्ट डायरेक्शन दर्शनीय है। कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ इंसाफ किया है। वरिष्ठ अभिनेत्री वहीदा रहमान की उपस्थिति चौंकाती है। उनका और कमल हासन का एक सीक्वेंस देखने लायक है। अल्जीमर्स से पीड़ित माँ अपने बेटे को नहीं पहचानती। वह स्मृतियों के खुलते-बंद होते वातायनों के सामने बैठी है। उस माँ के मनोभावों को वहीदा जी ने क्या खूब दिखाया है। कमल हासन अपने किरदार में परफेक्ट लगते हैं लेकिन अब उनके ‘रिफ्लेक्सेस’ उतार पर हैं। एक्शन दृश्यों में उन्होंने बहुत मेहनत की है किन्तु बढ़ती उम्र का असर उनकी फिटनेस में साफ़ झलकने लगा है।
अब सवाल ये कि इस फिल्म का हासिल क्या है। कमल हासन फिल्म के जरिये जो कहना चाहते थे, क्या कह सके हैं। रॉ एजेंट विजाम अहमद काश्मीरी जब किसी सजातीय के दिल में छूरा घोंपता है तो उसकी रूह की सलामती की दुआ पढ़ता है। आतंकी ओमार के दो बेटों की जान बचाकर उन्हें शिक्षित बनाता है। देश की रक्षा के लिए जान पर खेल जाता है। एक ओमार है, जो अपनी आखिरी सांस लेते हुए पत्नी और बच्चों से कहता है कि उन्हें मर जाना चाहिए था। एक मुस्लिम तिरंगे के तले खड़ा है लेकिन चाहकर भी एक आतंकी को घर वापस नहीं ला सकता।
यदि आप कमल हासन के प्रशंसक हैं। यदि आप एक अच्छा अंत देखने के लिए अत्यंत बोरियत भरे दृश्य झेल सकते हैं। यदि आप कैमरा वर्क और आर्ट डायरेक्शन का मज़ा लेना जानते हैं तो विश्वरूप-2 पर पैसा खर्च करने में कोई परहेज नहीं है। बाकी आम दर्शक को इस फिल्म से निराशा ही हाथ लगेगी। इसे देखना ऐसे ही है जैसे बेहद खूबसूरत मोहतरमा को झीने परदे के पार देखना।
URL: Movie Review in hindi- kamal hasan Vishwaroopam-2
Keywords: vishwaroopam-2, vishwaroopam-2 review, vishwaroop, vishwaroop review, kamal haasan, vishwaroopam-2 movie review, विश्वरूपम-2, विश्वरूपम-2 समीक्षा, विश्वरूप समीक्षा, कमल हासन, विश्वरूप-2 फिल्म समीक्षा,