
movie review: सड़क-2 महेश भट्ट के कॅरियर की सबसे अवसादग्रस्त फिल्म है
वह वक़्त अलग था, उस वक़्त के दर्शक भिन्न थे। वह एक अलग ही कालखंड था, जिसमे महेश भट्ट की सड़क ने इतिहास बनाया था। तीन हॉलीवुड फिल्मों के मिश्रण का भट्ट ने ऐसा भारतीयकरण किया कि दर्शक थियेटर्स पर टूट पड़े थे। सड़क एक रिपीट रन थी, जिसने भट्ट की तिजोरी सोने से भर दी थी। ये वक़्त अलग है। इस वक़्त के दर्शक जुदा हैं। ये एक भिन्न कालखंड है, जिसमे महेश भट्ट निर्देशित सड़क-2 रिलीज के पहले दिन ही बह गई। मैं ये कतई नहीं कहूंगा कि सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण की काली छाया के कारण फिल्म का ये हाल हुआ। मैं ये कहूंगा कि ये औसत से भी गई-गुज़री फिल्म है, सुशांत की काली छाया इस पर ना पड़ती, फिर भी इसका हश्र बॉक्स ऑफिस पर बुरा ही होता।
नई सड़क वही से शुरू होती है, जहाँ पिछले भाग में इसका अंत हुआ था। रवि की पत्नी पूजा का निधन हो चुका है। वही पूजा, जिसको रवि ने महारानी से खूनी जंग के बाद पाया था। रवि के जीवन का अब कोई उद्देश्य नहीं है। दुनिया की नज़रों में वह एक मनोरोगी है, जो अपनी मृत पत्नी से बातें किया करता है।
एक दिन हॉस्पिटल में उसे आर्या देसाई मिलती है। आर्या एक ऐसे परिवार से है, जो एक पाखंडी धर्मगुरु की चाल में फंसकर सबकुछ गंवा बैठा है। एक दिन आर्या घर से भाग जाती है। आर्या उस धर्मगुरु की सच्चाई उजागर करना चाहती है। इस काम में उसका साथ विशाल और रवि देते हैं। गुरु के पाखंड से शुरू हुई ये कथा एक रन चेस में परिवर्तित हो जाती है। अंत में आर्या उस मज़िल पर पहुँच जाती है, जहाँ टैक्सी ड्राइवर रवि उसे पहुँचाना चाहता था।
किसी फिल्म का सीक्वल बनाना बॉलीवुड के निर्देशकों के बस की बात नहीं है। दक्षिण भारत में एस एस राजामौली और हिन्दी फिल्म उद्योग में राकेश रोशन ही सफलतापूर्वक सीक्वल बना सके हैं। बीस वर्ष पुरानी फिल्म का सीक्वल बनाना बॉक्स ऑफिस पर बड़ा जोखिम होता है।

उस फिल्म से उपजी भावनाएं पुरानी हो चुकी होती हैं। जिन युवा दर्शकों ने उस फिल्म को सफल बनाया, वे उम्रदराज हो चुके होते हैं यानि फिल्मों के नियमित दर्शक नहीं रहते।
उस फिल्म के एक्टर्स डिमांड में नहीं रहते। उनकी फॉलोइंग वर्तमान युग में बहुत कम होती है। ये सब जानते हुए भी महेश भट्ट ने बीस साल पुरानी फिल्म का सीक्वल बनाया और बॉक्स ऑफिस पर पराजित हो गए।
सबसे पहली कमी फिल्म के केंद्रीय पात्रों में प्रेम रसायन की अनुपस्थिति है। आदित्य रॉय कपूर और आलिया भट्ट के बीच केमेस्ट्री दिखाई ही नहीं देती। उनके बीच प्रेम पनपने के लम्हे हाइलाइट नहीं किये गए। दर्शक समझ ही नहीं पाता कि कौनसे पल में विशाल ने आर्या के मन को छुआ था।
भट्ट तो इन लम्हों के जादूगर माने जाते हैं, फिर भी उनका टच नहीं दिखाई दिया। आदित्य रॉय कपूर किरदार में दिखाई ही नहीं दिए, उनका उखड़ा हुआ अभिनय विशाल के किरदार को अभिव्यक्त नहीं कर पाया। यही बात आलिया भट्ट के किरदार में दिखाई दी। बाहरी निर्देशकों के साथ अविस्मरणीय अभिनय करने वाली आलिया अपने पिता के निर्देशन में बेहद औसत दिखाई दी और उनकी केमेस्ट्री आदित्य के साथ जमी नहीं। जब मुख्य पात्र ही सेट नहीं हो पाते तो कहानी का अचार डलना लगभग तय हो जाता है।
महेश भट्ट की सड़क के ब्लॉकबस्टर होने में स्वर्गीय सदाशिव अमरापुरकर का महती योगदान था। अभिनय के रत्न सदाशिव ने सड़क में महारानी का किरदार निभाया था। ये किरदार हमेशा के लिए दर्शकों के मन में छप गया है। सड़क की दूसरी किश्त में भी महारानी जैसा एक पात्र रखा गया है।
जिसे मकरंद देशपांडे ने अभिनीत किया है। गुरूजी के किरदार को मकरंद उकेर नहीं पाते, न ही सदाशिव के श्रेष्ठ अभिनय के आगे पासंग ठहर पाते हैं। महारानी का किरदार भय और आतंक का पर्याय था। सदाशिव का एक लुक झुरझुरी पैदा कर देता था लेकिन यहाँ तो मकरंद एकदम निष्प्रभावी दिखाई दिए। मकरंद का चुनाव महेश भट्ट की दूसरी बड़ी गलती रही। कॉस्टिंग के महारथी भट्ट मिसकॉस्टिंग का शिकार हो गए।
संजय दत्त एकमात्र अभिनेता रहे, जो औसत से बेहतर थे। उन्होंने सधा हुआ अभिनय दिखाया है लेकिन उनका किरदार अनावश्यक नकारात्मकता से भर दिया गया है। पत्नी के देहांत के तीन माह के भीतर ही ये किरदार मतिभ्रम से पीड़ित हो जाता है। इसे मैं एक बड़ी निर्देशकीय त्रुटि कहूंगा क्योंकि ऐसी समस्याएं अलगाव के तुरंत बाद शुरू नहीं होती हैं।
शुरू से लेकर अंतिम शॉट तक गहराई कहीं दिखाई ही नहीं देती। ऐसी उथली फिल्म महेश भट्ट ने बनाई है तो उनको अब संन्यास की घोषणा कर देनी चाहिए। सड़क -2 भट्ट के मयार से बहुत नीचे की फिल्म है, जो उल्लास से अधिक अवसाद बांटती है। सड़क में वहशीपन इससे अधिक था किन्तु उसमे प्रेम सजीव लगता था, उसके दृश्यों में गहराई थी, उसमे भारत दिखाई देता था।
महेश भट्ट भारत के धर्मगुरुओं से बहुत पीड़ित हैं। वे अपनी प्रेमिल फिल्मों में भारत के धर्म गुरुओं को कामुक और धन लोलुप ही दिखाते आए हैं। सो इस फिल्म में उन्होंने धर्मगुरुओं को उस जगह रखा है, जहाँ सड़क में उन्होंने वैश्याघर चलाने वाली किन्नर महारानी को रखा था।
ये रिप्लेसमेंट बहुत से दर्शकों को पसंद नहीं आया। आईएमडीबी जैसी संस्था ने इसे केवल एक स्टार की रेटिंग दी है। ये विशेष फिल्म्स के लिए सदमे के समान है। पूरी फिल्म में धर्मगुरुओं को कोसते हुए मुख्य पात्र आर्या को अंत में कैलाश पर्वत को प्रणाम करते हुए बताया है।
दूध पसंद करने वाले कई लोग मलाई पसंद नहीं करते, ये उसका श्रेष्ठ उदाहरण है। क्या महेश भट्ट की गति भी ऐसी हो होने वाली है। जीवनभर हिन्दू परंपराओं पर आघात करने वाले महेश भट्ट किसी दिन पाप धोने वाली दार्शनिक फिल्म बनाए। जैसे कई वामपंथी जीवनभर हिन्दू दर्शन को गाली देकर कॅरियर बनाते हैं और मृत्यु पश्चात् उनका दाह संस्कार विधि-विधान से किया जाता है। मृत्यु हर सेकुलर हिन्दू प्राणी को सनातनी बना ही देती है, ये सड़क -2 के क्लाइमैक्स शॉट से सिद्ध होता है।
ज्ञान अनमोल हैं, परंतु उसे आप तक पहुंचाने में लगने वाले समय, शोध, संसाधन और श्रम (S4) का मू्ल्य है। आप मात्र 100₹/माह Subscription Fee देकर इस ज्ञान-यज्ञ में भागीदार बन सकते हैं! धन्यवाद!
Select Subscription Plan
OR
Make One-time Subscription Payment

Select Subscription Plan
OR
Make One-time Subscription Payment

Bank Details:
KAPOT MEDIA NETWORK LLP
HDFC Current A/C- 07082000002469 & IFSC: HDFC0000708
Branch: GR.FL, DCM Building 16, Barakhamba Road, New Delhi- 110001
SWIFT CODE (BIC) : HDFCINBB
Paytm/UPI/Google Pay/ पे / Pay Zap/AmazonPay के लिए - 9312665127
WhatsApp के लिए मोबाइल नं- 8826291284
Dear Mahesh Bhatt ji ab apko direction nhi krna chahiye please chod do ye sab ab na ho payega aapse