द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर देखने के बाद ये सुखद आश्चर्य हो सकता है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अभिनेता अनुपम खेर को चाय पर बुलाए और कहे ‘वाह अनुपम तूने क्या खूब काम किया’। आज के बाद से देश डॉ मनमोहन सिंह को सम्मान की नज़र से देखेगा। आज देश जानेगा कि मनमोहन सिंह एक श्वेत हंस थे, जो दलालों के कीचड़ में फंस गए थे। जो पीड़ा उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए भोगी, वह पीड़ा इस उत्कृष्ट फिल्म के जरिये देश की पीड़ा बन गई है। अभिव्यक्ति का सबसे शक्तिशाली माध्यम सार्थक हो जाता है, जब ऐसी फिल्मे बनती हैं।
2004 के चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को भारी जीत मिली है। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक पार्टी में संजय बारू कांग्रेस के नामी नेताओं से मिल रहे हैं। पत्रकार होने के नाते बारू के पास पक्की सूचना है कि फाइनांस मिनिस्ट्री मनमोहन अपने पास रखना चाहते हैं। बारू जब पी.चिदंबरम से मिलते हैं तो इस बात का जिक्र करते हैं। इस पर चिदंबरम का जवाब होता है ‘पीएम फाइनांस संभालेंगे तो मैं क्या करूंगा’।
सिनेमा के स्क्रीन पर जब ये दृश्य चल रहा था तो एकबारगी लगा कि जैसे मैं सिनेमा नहीं देख रहा बल्कि किसी कटु सत्य से साक्षात्कार कर रहा हूँ। विजय रत्नाकर गुट्टे की फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ का प्रभाव बहुआयामी है। आम दर्शक के लिए ये एक साहसिक प्रयास है तो कांग्रेस के लिए आईना है। और ‘परिवार’ के लिए ये फिल्म अदृश्य चाबुक की तरह है। इसका हर दृश्य परिवार की पीठ पर चाबुक की तरह पड़ता है।
कोई नहीं जानता था कि संजय बारू की किताब जब फिल्म का रूप धरकर ‘बोलने’ लगेगी तो कैसा कहर बरपेगा। अनुपम खेर, अक्षय खन्ना, सुजैन बर्नेट, विपिन शर्मा के किरदार यूँ लगे हैं, मानो बारू की किताब से सीधे निकलकर परदे पर आ गए हो। कहानी सन 2004 के साल से शुरू होती है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि पार्टी प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी को आगे लाने जा रही है। भाजपा इसका देशव्यापी विरोध करती है। सोनिया गांधी मनमोहन का नाम प्रस्तावित करती है।
पीएमओ में आने के बाद मनमोहन को अहसास होता है कि सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल अपने ढंग से सत्ता चलाना चाहते हैं। मनमोहन और सोनिया गाँधी में कोल्ड वॉर शुरू हो जाता है। अहमद पटेल इस युद्ध में अहम् भूमिका निभाते हैं। खुद को चारों ओर से घिरता देख मनमोहन संजय बारू को मीडिया सलाहकार नियुक्त करते हैं। सियासी गलियारों की इस पेचीदगी भरी कहानी को फिल्म में बहुत सुंदर ढंग से पेश किया गया है।
फिल्म में 2004 से लेकर 2014 तक के दस साल का निचोड़ पेश किया गया है। बताया गया है कि कैसे मनमोहन अपनी पार्टी, विपक्ष और हमलावर मीडिया का सामना कर रहे थे। सतह के नीचे ‘महाभारत’ चल रहा था और अर्जुन कृष्ण के संग निपट अकेला युद्धरत था। उसे मैडम इसलिए इस्तेमाल करती रही ताकि बेटे की ताजपोशी ‘मजबूत प्लेटफॉर्म’ पर कर सके। फिल्म दृश्य दर दृश्य परिवार की कलई खोलती चलती है। भले ही हर दृश्य में ‘मैडम’ मौजूद न हो लेकिन उनका अदृश्य प्रेत आप महसूस करते हैं।
अनुपम खेर को एक महान अभिनेता कहने में हमें और कितनी देर लगेगी। वे अभिनय कला के चरम शिखर पर विराजमान हैं। इस फिल्म के किसी दृश्य में वे ‘अनुपम खेर’ लगते ही नहीं हैं, यही उनके इस किरदार की कामयाबी है। ये फिल्म उनके कॅरियर के सर्वाधिक चमकीले मील के पत्थरों में गिनी जाएगी। अक्षय खन्ना ने संजय बारू के किरदार में प्राण फूंक दिए हैं। सुजैन ने सोनिया गाँधी के ‘हिकारत’ वाले भाव खूब दिखाए हैं। अहमद पटेल के किरदार में विपिन शर्मा ने खूब रंग जमाया है।
जब इंटरवल हुआ तो बगल में बैठे युवा दर्शकों ने ‘अहमद पटेल’ को गूगल पर सर्च करना शुरू किया। वे जानना चाहते थे कि इस व्यक्ति का क्या इतिहास है। यही कारण था कि कांग्रेस लगातार फिल्म का विरोध करती रही। यही कारण है कि आज ‘पोषित मीडिया’ इसे बेकार फिल्म बता रहा है। परिवार चिंतित है कि फिल्म चर्चा में आई तो गड़े मुर्दे उखाड़े जाएंगे। यदि मनमोहन सिंह की पीड़ा जाननी हो, यदि परिवार की दादागिरी देखनी हो तो आज ही ये फिल्म देखिये। सच देखने वाले दर्शकों को ये फिल्म अवश्य पसंद आएगी।
URL: Anupam Kher Transformed Into Manmohan Singh For The Accidental Prime Minister
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