अर्चना कुमारी । जाने-माने वकील और पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भारत का अटॉर्नी जनरल बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया है। सूत्रों का दावा है कि जून 2014 से जून 2017 के बीच देश के अटॉर्नी जनरल रहे मुकुल रोहतगी ने इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया है। उनका कहना है कि उन्होंने प्रस्ताव के बारे में सोचा और अस्वीकार कर दिया ।
सनद रहे कि मौजूदा अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल (91) का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो गया था लेकिन केंद्र सरकार 29 जून को तीन महीने के लिए उन्हें एक बार फिर देश का शीर्ष कानूनी अधिकारी नियुक्त कर दिया था। उस समय वेणुगोपाल ने कहा था कि वह अब इस पद पर आगे बने रहने के इच्छुक नहीं हैं, लेकिन इस समय उन्होंने सरकार का अनुरोध स्वीकार कर लिया है।
गौरतलब है कि अटॉर्नी जनरल का कार्यकाल आमतौर पर तीन वर्ष का होता है और जब अटॉर्नी जनरल के तौर पर वेणुगोपाल का पहला कार्यकाल खत्म हुआ था, तब उन्होंने सरकार से अपनी आयु का हवाला देते हुए जिम्मेदारियों से मुक्त करने का अनुरोध किया था। लेकिन वेणुगोपाल के बाद केंद्र सरकार मुकुल रोहतगी को यह पद देना चाहती थी लेकिन उनके इंकार किए जाने के बाद केंद्र सरकार पसोपेश में है कि अटॉर्नी जनरल के पद पर अब किसे नियुक्त किया जाए या फिर मुकुल रस्तोगी को ही मनाया जाए कि वह इस पद को ग्रहण करें । बताया जाता है कि मोदी सरकार के संकटमोचक रहे तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत अरुण जेटली के खास मित्र मुकुल रोहतगी
शीर्ष अदालत के साथ-साथ देशभर के उच्च न्यायालयों में कई चर्चित मामलों में सरकार का प्रतिनिधित्व करने का अनुभव हैं। वह वकालत के अपने लंबे करियर में 2002 के गुजरात दंगों से लेकर 2022 में फ़िल्म स्टार शाहरुख़ ख़ान के बेटे आर्यन ख़ान तक का केस लड़ा है। इनमें से उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित जकिया जाफरी की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान विशेष जांच दल (एसआईटी) की पैरवी की थी।
इस दंगे के दौरान कांग्रेस के नेता एहसान जाफरी की 28 फरवरी 2002 को गुजरात के अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हुई हिंसा के दौरान हत्या कर दी गई थी और एसआईटी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 64 लोगों को क्लीन चिट दे दी थी, जिसके खिलाफ जकिया जाफरी ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया था। यह मुकुल रोहतगी का ही पहल था कि सर्वोच्च अदालत ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में मोदी और 63 अन्य को दी गई एसआईटी की क्लीन चिट को बरकरार रखा था।
मूल तौर पर मुंबई के रहने वाले मुकुल रोहतगी कई हाईप्रोफ़ाइल केस के वकील रह चुके है और उनके पिता भी एक वरिष्ठ वकील थे जो बाद में दिल्ली हाईकोर्ट के जज बन कर रिटायर हुए। मुकुल रोहतगी का जन्म 1955 में मुंबई में हुआ था लेकिन शुरुआती पढ़ाई दिल्ली और मुंबई में हुई। विधि स्नातक तो उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से किया, लेकिन वकील की हैसियत से रजिस्ट्रेशन दिल्ली बार काउंसिल में कराया । दिल्ली में योगेश कुमार सभरवाल के नीचे उन्होंने काम करना शुरू किया और बहुत जल्द ही अपने तर्क शैली से सुनवाई के दौरान विरोधियों पर हावी होते हुए कई सफलताएं अर्जित की ।
उनके गुरु योगेश कुमार सभरवाल भी बाद में भारत के चीफ़ जस्टिस रह चुके हैं। मुकुल रोहतगी के बारे में बताया जाता है कि महज़ 38 साल की उम्र में वह दिल्ली हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट बन गए थे जबकि केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तब 1999 में उन्हें एडिशनल सॉलिसीटर जनरल बनाया गया। साल 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो मुकुल रोहतगी को भारत का अटॉर्नी जनरल बनाया गया। हाल ही में जब फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को ड्रग्स लेने के आरोप में पकड़ा गया था तब मुकुल रहतोगी उसके वकील बने ।
आर्यन खान का केस लड़ते हुए मुकुल रोहतगी ने उन्हें जमानत दिलाई तथा बेगुनाह साबित करवा दिया। इसके अलावा जज बीएच लोया की मौत के मामले में भी मुकुल रोहतगी ने महाराष्ट्र सरकार की तरफ़ से केस लड़ा और महाराष्ट्र सरकार को इस मामले में क्लीन चिट दिलाने में मदद की ।
उनके मुवक्किलों में पत्रकार राजदीप सरदेसाई और अर्नब गोस्वामी से लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, कांग्रेस नेता शशि थरूर, अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया आदि तक रहे हैं जबकि वह पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या मामले में दोषी क़रार दिए गए बलवंत सिंह राजोआना, दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना और मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह और संजय पांडे के लिए भी कोर्ट में उनका पक्ष रखा तथा उन्हें फौरी राहत दिलाई ।
उन्होंने रिलायंस के लिए केस लड़ा। इसके अलावा उन्होंने फ़्यूचर ग्रुप की तरफ़ से भी केस लड़ा है ,जिसमें उनके ख़िलाफ़ अमेज़ॉन जैसी बड़ी कंपनी थी । इतना ही नहीं उन्होंने फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप का भी दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया और दिल्ली के रियल एस्टेट कारोबारी सुशील और गोपाल अंसल का भी केस लड़ चुके है लेकिन उनके कैरियर का सबसे महत्वपूर्ण तथा प्रभावी केस गुजरात दंगा था। हालांकि उन्हें कुछ मामलों में निराशा भी हाथ लगी।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग मामले में अटॉर्नी जनरल होने के नाते उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का बचाव किया लेकिन इस मामले में तब बड़ा झटका लगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने NJAC को रद्द कर दिया था। इसी तरह उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में भी मुकुल रोहतगी की किरकिरी हुई क्योंकि केंद्र सरकार ने उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार को भंग करते हुए वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया था जबकि केंद्र सरकार की पैरवी करने मुकुल रोहतगी उत्तराखंड हाईकोर्ट में पेश हुए, लेकिन हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन लगाने के फ़ैसले को रद्द कर दिया।
अटॉर्नी जनरल रहते हुए एक वक्त ऐसा भी आया जब बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने उस समय मुकुल रोहतगी को पद से हटाए जाने की मांग की थी । महाराष्ट्र सरकार के मराठों को आरक्षण दिए जाने के फ़ैसले का भी रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक क़रार दिया था।