मुलायम ‘चोर बोले जोर से’ मुहावरे को खारिज करते हैं! इसीलिए कभी ‘मुल्ला मुलायम’. कभी ‘संघी मुलायम’ नजर आते है! मुलायम सिंह यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है। मुलायम पर सौ करोड़ की अवैध सम्पत्ति अर्जित करने के मामले में डेढ दशक से मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस दौरान सत्ता की सांठ गांठ से मुलामय राजनीतिक दांव पेंच चलते रहे अपने कुनबे को तबाह करते दिखते रहे ,चोर बोले जोर से के मुहावरे को खारिज करते रहे। इस सबसे उलट में राजनीतिक के मझे खिलाड़ी साबित होते रहे। लालू की तरह बुढ़ापा जेल में बिताने और जिस कुनबे के लिए राजनीति की उसे अपने अपराध की सजा दिलाने और परेशानी से बचाते रहे। लेकिन क्या मुलायम और उनके कुनबे का अपराध कभी जांच के दायरे में नहीं आयएगा! क्या मुल्ला मुलायम की उपाधी से संघी मुलायम कहलाने का सफर मुलायम को स्वीकार होगा! क्या मोदी शरण गच्छामी से मुलामय सीबीआई के शिकंजे से बच जाएंगे! सुप्रीम कोर्ट यूं ही सब देखता रहेगा!जैसे सालों से देख रहा है! 1990 में कारसेवकों पर गोली चलवा कर मुलायम सिंह यादव यकायक देश में मुसलमानों के सबसे पसंदीदा नेता बन गए । तभी से उत्तर भारत में कांग्रेस का मूल वोट बैंक खत्म हो गया। कांग्रेस उत्तर भारत के महत्वपूर्ण प्रदेशों के साथ-साथ केंद्र की सत्ता से भी बाहर नजर आने लगी। मुल्ला मुलायम नाम, मुलायम को भी पसंद आने लगा। यह नाम उनके वोट बैंक को भी रास आने लगा। 2004 में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में वापस आई तो मुलायम कांग्रेस की सहयोगी सहयोगी पार्टी बन सौदेबाजी करने लगे। इससे पहले भी मुलायम जनता दल की सरकार से लेकर संयुक्त मोर्चा की सरकार में सत्ता संग हमजोली का दांव चलते रहे। तब वो शायद धनोपार्जन की मजबूरी थी और अब उसे बचाने और सलाखों के पीछे जाने से बचने की मजबूरी। मुलायम सत्ता से सौदा करने लगे तो कांग्रेस ने मुलायम पर लगाम कसने के लिए सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ एक याचिका डलवाई। मुलायम जानते थे उस याचिका में दम है और याचिकाकर्ता उनकी नवज को पहचानता है। साल 2005 में मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया। आरोप उत्तर प्रदेश के तत्कालिन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव उनके पुत्र अखिलेश यादव उनकी पत्नी और मुलायम के छोटे बेटे प्रतीक यादव के खिलाफ था । आरोप लगाया गया था कि मुलायम ने अपनी राजनीतिक सत्ता का दुरुपयोग करते हुए 100 करोड़ से ज्यादा की अवैध संपत्ति कमाई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को दी। सीबीआई ने अपनी जांच की प्रार्थमिक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में अक्टूबर 2007 में दर्ज करते हुए कहा कि मुलायम सिंह के खिलाफ प्राथमिक सबूत उनके पास है। सुप्रीम कोर्ट से सीबीआई ने जांच की अनुमति ली। सुप्रीम कोर्ट ने जांच के आदेश दिए। तब से अब तक बस यही हुआ कि इस मामले से अखिलेश की पत्नी और सांसद डिंपल यादव का नाम हटाने की यादव परिवार की अर्जी सुप्रीम कोर्ट ने मान ली। 2007 के बाद मुलायम नरम पड़ने लगे क्योंकि सत्ता कांग्रेस के पास थी और कांग्रेस को सहयोग करने से उनकी जान बच सकती थी। मुलायम जानते थे की चोर को जोर से नहीं बोलना चाहिए। इस मुहावरे को खारिज करते हुए उन्होंने चुप्पी साध ली और सीबीआई जांच से लगातार बचते रहे। 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आई । मुलायम बीजेपी की मानसिकता की तरह तरफ लौटते दिखने लगे। कई मंचो से मोदी की तारीफ में कसीदे गढ़ने लगे। सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़े मुलायम परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर मामले ठंडे बस्ते में यूं ही पड़े रहे। न कभी इसकी सुध सीबीआई ने ली,न सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि सीबीआई एक दशक से इस मामले पर चुप्पी क्यों साध रखी है! बदलते वक्त में उत्तर प्रदेश में मुलायम पुत्र की सत्ता आई और गई लेकिन यादव परिवार का बाल बांका भी नहीं हुआ। यह साफ दिखते हुए की एक पहलवान, गांव की गरीबी से खस्ताहाल निकला एक शिक्षक कुछ ही सालों में अपने अपने पूरे कुनबो को सत्ता के ऐशगाह में घुसा कर कैसे 100 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति कैसे बना ली! ना तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया न हीं देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी ने इस बात की जरूरत समझी। क्योंकि मुलायम सत्ता के नजदीक थे। माना जाता है कि मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं और वे जानते हैं कि सत्ता के साथ सांठगांठ से बुढ़ापे में जेल से कैसे बचा जा सकता है और अपने पूरे कुनबे को कैसे बचाया जा सकता है। इसीलिए कभी वह अपने परिजनो से नाराज नजर आते हैं ,कभी पुत्र से ,कभी भाई से ।लेकिन माना जाता है कि वह हमेशा सत्ता के साथ हमजोली का खेल खेलते हैं। 1990 में जब वह मुल्ला मुलायम बने तो केंद्र में वीपी सिंह की सरकार तो थी लेकिन सत्ता की चाबी देवीलाल और चंद्रशेखर के पास थी। मुलायम चंद्रशेखर की इशारे पर काम कर रहे थे। कुछ ही महीने में चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। फिर केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार आई और मुलायम उन्हीं के हो लिए। नरसिम्हा राव सरकार के गिरने के बाद संयुक्त मोर्चा कि सरकार का दौर आया लालू यादव खुद को किंग मेकर कहने लगे । उन्होंने मुलायम को राजनीतिक पटकनी भी दी। मुलायम प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए। लालू ने देवेगौड़ा फिर गुजराल को प्रधानमंत्री बना कर मुलायम का खेल खराब कर दिया। और किंगमेकर का गुमान पालने लगे। लालू और मुलायम दोनों घोर गरीबी से निकल कर आए थे । लेकिन सत्ता में आते ही पूरे कुनबे के साथ अकूत संपत्ति के मालिक हो गए। बस यही समानता दोनों यादव बंधू में थी। लालू किंग का जब गुमान पाल रहे थे। उसी समय उन पर शिकंजा कस दिया गया। जिन्हें उन्होंने प्रधानमंत्री बनाया उसी के दौर में लालू के खिलाफ ना सिर्फ सीबीआई ने एफ आई आर दर्ज की चार्जसीट भी दाखिल कर ली। लेकिन मुलायम केंद्र की सत्ता से नरम पड़े रहे और कभी उन पर जांच एजेंसी का दबाव नहीं पड़ा। 2004 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने वाली थी मुलायम ने सोनिया का पुरजोर विरोध किया ।सोनिया प्रधानमंत्री तो नहीं बनी लेकिन कांग्रेस की सरकार बनी ।मुलायम उसके सहयोगी बने। सोनिया का विरोध करने के लिए दंड के रूप में मुलायम पर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई । लेकिन मुलायम मनमोहन सरकार के तारणहार बने रहे ।इसलिए उन पर कार्रवाई नहीं हुई और मुलायम अल्पमत में परी कांग्रेस को 10 साल तक ढोते रहे। ईनाम में सीबीआई के शिकंजे से बचते रहे। जिस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में मुलायम के खिलाफ याचिका दाखिल की थी वह विश्वनाथ चतुर्वेदी कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं। छात्र संघ के नेता रहे। यह स्पष्ट संदेश रहा कि सीबीआई जांच की मांग कांग्रेस ने अपने एक कार्यकर्ता से करवाई थी। मुलायम पर सीबीआई के शिकंजे की कसावट और ढील बनी रहे इसलिए सीबीआई और याचिकाकर्ता के द्वारा लगाम पर नियंत्रण किया जाता रहा। लेकिन अहम सवाल यह है कि इस बेहद गंभीर मामले में सालों तक मसला सुप्रीम कोर्ट के ठंडे बस्ते में क्यों रहा! अब यह मामला तब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है । मुलायम सिंह यादव ने16वीं लोकसभा सत्र के आखिरी दिन नरेंद्र मोदी के लिए कसीदे गढ़े ।कहा जाने लगा कि भाजपा विरोधी मुलायम ने यह कौन सा राजनीतिक दांव चला है! क्या मुलायम का दांव इसलिए क्योकि मोदी सरकार फिर वापस आएगी और कम से कम उनकी जिंदगी सलाखों के पीछे जाने से बच जाएगी! उनके कुनबों पर कार्रवाई नहीं होगी! मुलायम सिंह यादव अपने इसी राजनीतिक दांव से व्यवस्था को पटकनी देते रहे हैं। सीबीआई के शिकंजे से बचते रहे ।अपने कुनबे को बचाते रहे । इसीलिए कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव उस मुहावरे को खारिज करते हैं कि “चोर बोले जोर” से । मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में उठेगा ।सत्ता संग मुलायम की हमजोली यूं ही कायम रहेगी। URL : Mulayam singh yadav challenging the system. keywords: mulayam singh yadav, supreme court,cbi,modi, congress, मुलायम सिहं यादव, सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट
|
|
|
मुलायम ‘चोर बोले जोर से’ मुहावरे को खारिज करते हैं! इसीलिए कभी ‘मुल्ला मुलायम’ तो कभी ‘संघी मुलायम’ नजर आते है!
Leave a comment
Leave a comment