विपुल रेगे। भारत के आम आदमी की आंतरिक शक्ति का अनुमान लगा पाना, समुद्र की गहराई नापने जैसा कठिन कार्य है। पीठ पर निर्मम सिस्टम के चाबुक सहता आम आदमी ताउम्र हँसते हुए निकाल देता है लेकिन सिस्टम की गंदगी से उपजा कोई कीड़ा उसके परिवार को नुक़सान पहुंचाना चाहे तो यही आम आदमी सुपरमैन भी बन सकता है। जसपाल सिंह सिंधु और राजीव बरनवाल की ‘वध’ ऐसे ही आम नागरिक की कथा है। ‘वध’ पिछले वर्ष थियेटर्स में रिलीज हुई थी लेकिन इसे कम ही दर्शकों ने देखा था। ओटीटी पर ‘वध’ 3 फरवरी को प्रदर्शित हुई है।
ओटीटी मंच : Netflix
बहुत सी फिल्मों की कहानी ही उसकी ‘स्टार’ होती है। ‘वध’ एक ऐसी ही कहानी है। कहानी का बैकड्रॉप मध्यप्रदेश के ग्वालियर का है। इस शहर में एक रिटायर्ड शिक्षक शंभूनाथ मिश्रा अपनी पत्नी मंजू के साथ रहता है। वह अपने बेटे को महंगा एजुकेशन लोन लेकर अमेरिका भेज चुका है। बेटे के लोन के लिए वह एक गुंडे से ब्याज से पैसा ले लेता है। इसके बाद मिश्रा का जीवन दूभर होने लगता है।
ये गुंडा अब मिश्रा के निजी जीवन में दखल देने लगता है। इस स्थिति में आकर इस रिटायर्ड टीचर का धैर्य जवाब दे जाता है। सिस्टम से लड़ता आम आदमी कई कहानियों में दिखाई दिया है। आम आदमी सत्तर और अस्सी के दशक की फिल्मों में सिस्टम से तंग आकर हथियार उठा लेता था, डकैत बन जाता था। इसके बाद की फ़िल्मी कहानियों में आम आदमी गैंगस्टर बनकर हथियार उठाने लगा।
ऐसी बहुत कम कहानियां रही, जिनमे कॉमन मैन को उसकी सीमित क्षमताओं के साथ लड़ता दिखाया गया था। महेश भट्ट की ‘सारांश’ को उस श्रेणी में रखा जा सकता है। जसपाल सिंह सिंधु और राजीव बरनवाल द्वारा निर्देशित ‘वध’ एक ऐसी ही फिल्म है, जिसे याद रखा जाएगा। कहानी, स्क्रीनप्ले, निर्देशन की कसौटी पर फिल्म का एक-एक तार कसा हुआ है।
संजय मिश्रा द्वारा अभिनीत स्मरणीय भूमिकाओं में शंभूनाथ मिश्रा के कैरेक्टर का भी ज़िक्र किया जाएगा। संजय मिश्रा डूबकर अभिनय करने वाले कलाकारों में से हैं। एक रिटायर्ड टीचर की लाचारी को संजय ने जीवंत ढंग से पेश किया है। वे इस पूरे शो को चुरा ले गए हैं। उन्होंने नीना गुप्ता और मानव विज के करने के लिए कुछ ख़ास नहीं छोड़ा। प्रजापति पांडे की भूमिका में सौरभ सचदेवा ने कमाल किया है।
उनका एक्टिंग कॅरियर कुछ वर्ष पहले ही शुरु हुआ है। उनमें अच्छे अभिनय के बीज हैं। निर्देशन की दृष्टि से फिल्म मनोरंजक और कैची है। फिल्म में कोई बड़ा स्टार नहीं है इसलिए बजट नियंत्रित है। फिल्म में स्टार्स नहीं थे इसलिए थियेटर्स में इसे अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला। लेकिन अब ओटीटी पर इसे बहुत से दर्शक देख रहे हैं और सराह रहे हैं। ‘वध’ मैच्योर दर्शक की फिल्म है। ये बच्चों के लिए नहीं है।
जो लोग नाटकीयता से परे वास्तविक फ़िल्में देखना पसंद करते हैं. ये फिल्म उनके लिए ही है। फिल्म में कुछ कमियां भी हैं। जैसे पुलिस द्वारा जाँच करने वाला हिस्सा कुछ कमज़ोर है। नीना गुप्ता का किरदार स्ट्रांग नहीं है। संजय मिश्रा के साथ अन्य किरदारों पर और काम करने की आवश्यकता थी। हालाँकि इसके बावजूद फिल्म दर्शनीय है और दर्शक का इंट्रेस्ट आखिर तक बनाए रखती है।