दोगली पत्रकारिता और वोट बैंक की राजनीति की वजह से ‘मीम’ का हौसला इतना बुलंद हो गया है कि उसका अत्याचार हिंदुओं पर लगातार बढता जा रहा है। तभी तो ‘मीम’ सरेआम दिल्ली और यूपी से भीम की बेटियों का अपहरण कर लेता है, लेकिन पुलिस से लेकर मीडिया मूक दर्शक बना बैठा रहता है। पुलिस डरती है कि इस वजह से मीम सांप्रदायिक हिंसा न भड़का दें वहीं मीडिया डरता है कि कहीं वोट बैंक लुट जाने की वजह से उनके आका नाराज न हो जाए।
‘भीमों’ पर दिनानुदिन ‘मीमों’ का अत्याचार बढ़ता जा रहा है लेकिन आज भी वामी-कांगी से परिपूर्ण मीडिया का एक वर्ग असहिष्णुता के नाम ‘मीम’ उत्पीड़न का राग आलाप रहा है। दिल्ली में एक ‘मीम’ एक भीम की नाबालिग बेटी का अपहरण कर लेता है लेकिन सांप्रादायिक दंगा फैलने के भय से पुलिस अपनी एफआईआर में आरोपी ‘मीम’ सद्दाम अंसारी का नाम नहीं लिखती है। महीनों तक नाबालिग लड़की गायब रहती है लेकिन पुलिस पीड़ित परिवार की शिकायत पर एफआईआर तक दर्ज नहीं करती है। ये तो दिल्ली का मामला है। ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले का है। जहां पुलिस की लापरवाही की वजह से एक भीम की बेटी का अपहरण हो जाता है, उसका मजहब बदलता है और फिर उसकी अपहरणकर्ता के साथ शादी हो जाती है।
मुख्य बिंदु
* यूपी के विजनौर जिला के एक पिता अपनी नाबालिग बेटी को दबंग ‘मीम’ के कब्जे से छुड़ाने के लिए संघर्ष कर रहा है
* दिल्ली में सांप्रदायिक दंगा फैलने के डर से पुलिस एफआईआर में अपहरण के आरोपी ‘मीम’ का नाम दर्ज नहीं करती है
इतना ही नहीं अपहरणकर्ता साजिश के तहत पीड़ित पिता के खिलाफ ही उसी की बेटी द्वारा केस करवा देता है। मामला कोर्ट पहुंचता है। कोर्ट में पिता द्वारा प्रस्तुत अपनी बेटी के मैट्रिक सर्टिफिकेट में दर्ज आयु प्रमाण नहीं माना जाता लेकिन अपहरणकर्ता द्वारा प्रस्तुल लड़की का आधार कार्ड प्रमाण मान लिया जाता है, और आरोपी की गिरफ्तारी पर रोक दर रोक लगती जाती है। दयनीय पिता जब आरोपी दानिश हुसैन को फोन कर अपनी बेटी लौटाने का अनुरोध करते हैं तो कहता है कि “मैंने तुम्हारी बेटी ले ली है अगर वापस ले जा सको तो ले जाओ।” फिर भी पुलिस लेकर कोर्ट तक उसका साथ दे रहा है। क्या किसी मुख्यधारा के मीडिया को इन दोनों मामलों को उठाते हुए देखा है? फर्ज कीजिए अगर ऐसी घटनाएं किसी ‘मीम’ परिवार के साथ दलित हिंदू द्वारा की गई होती तो इसी तरह मीडिया खामोश बैठा होता? इसलिए तो आज के मुख्यधारा के मीडिया को दोगला मीडिया कहा जाता है।
गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली में सद्दाम अंसारी ने एक ‘भीम की बेटी’ का अपहरण कर लिया। पीड़ित परिवार ने जब इसकी शिकायत पुलिस से की तो उसने एफआईआर लिखने तक से मना कर दिया। महीनों तक उसकी बेटी गायब रही। बाद में कुछ स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं द्वारा इस मामले को अनुसूचित जाति राष्ट्रीय आयोग के सामने उठाने के बाद पुलिस एफआईआर करने को राजी हुई। लेकिन ‘मीमों’ द्वारा सांप्रदायिक दंगा भड़काने के भय से पुलिस ने न तो आरोपी सद्दाम अंसारी का नाम एफआईआर में लिखा न ही उसके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट की धारा लगाई।
इसी प्रकार का एक मामला यूपी के विजनौर जिले का है। वहां भी एक ‘भीम’ की नाबालिग लड़की के अपहरण के मामले में पुलिस की लापरवाही के कारण उसका मजहब बदलवा कर अपहरणकर्ता से शादी तक हो गई। लड़की के पीड़ित पिता दयानंद सिंह अपनी बेटी की वापसी के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। यह मामला विजनौर जिले के नगीना तहसिल के धर्मपुर गांव का है। आरोप है कि उनकी नाबालिक बेटी को दानिस हुसैन ने अपहरण कर लिया। पीड़ित पिता ने उसी दिन पुलिस में रिपोर्ट करवाई, जिस दिन नाबालिग लड़की का अपहरण हुआ था। लेकिन पुलिस ने कार्रवाई करने में इतनी लापरवाही बरती कि तब तक आरोपी दानिश ने नाबालिग लड़की का मजहब बदलवाकर उससे शादी कर ली। इतना ही नहीं उसने लड़की को जरिया बनाकर उसके पिता के खिलाफ केस भी करवा दिया। अब गरीब पीड़ित पिता अबनी बेटी को वापस पाने के लिए इलाहाबाद कोर्ट का चक्कर काट रहे हैं।
अभी तक कई बार कोर्ट जा चुके हैं, गरीब पिता ने लड़की के नाबालिग होने के सबूत के तौर पर उसका मौट्रिक का सर्टिफिकेट भी पेश कर दिया है। जबकि दानिश ने लड़की के बालिग होने के रूप में उसका नया आधार कार्ड पेश किया है। कोर्ट आधार कार्ड को तो मान रहा है जिसे सबूत माना ही नहीं जा सकता है लेकिन गरीब पिता द्वारा पेश लड़की के मैट्रिक सर्टिफिकेट को सबूत नहीं मानते हुए आरोपी दानिश की गिरफ्तारी पर बार-बार रोक लगाते जा रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 24 सितंबर को होने वाली है।
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