ऐसा लगता है कि विपक्ष के पास मुसलिम वोटों के अलावा इस चुनाव में कोई मुद्दा ही नहीं है। राहुल गांधी मुसलिम वोटों के लिए केरल के वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं, मायावती खुलकर मुसलमानों से सपा-बसपा गठबंधन को वोट देने की अपील कर रही है, कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू मुसलमानों को कह रहे हैं कि ‘आप अल्पसंख्यक नहीं, बहुसंख्यक हैं। यदि आप सब एकजुट हो जाएं तो नरेंद्र मोदी को रोक सकते हैं।’
ममता बनर्जी बंगाल के मुसलमानों को रिझाने के लिए बंगाल में रामनवमी का जुलूस नहीं निकलने देती और अपने समर्थन में बांग्लादेश के मुसलिम फिल्म स्टार से अपने यहां रोज शो कराती है और जोधपुर में रामनवमी के दिन खुलेआम हिंदू समुदाय पर पथराव किया गया और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चुप रहे। कश्मी का अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार तो खुलेआम हिंदूस्थान से कश्मीर को अलग करने की धमकी पर उतारू हैं।
2019 के दूसरे चरण का चुनाव एक दिन बाद है, लेकिन जिस तरह से विपक्ष के बीच देश के मुसलमानों का वोट हासिल करने के लिए होड़ मची हुई है और जिस तरह ये लोग पूरे चुनाव को सांप्रदायिक बना रहे हैं, वह अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देने वाला साबित हो रहा है। सब वोट के मुसलिम टुकड़े पर जैसे दांत गड़ाने के लिए छीनाझपटी कर रहे हैं।
ऐसा लगता है कि भारत में केवल मुसलिम रहते हैं और विपक्ष की सारी पार्टियां उनके लिए काम करती है। हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों की इनको कोई चिंता नहीं है। मुसलमान के बाद दूसरे नंबर पर यह इसाईयों की गोलबंदी में जुटे हैं। ऐसा विपक्ष जब यह कहता है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी मुद्दों को भटकाने के लिए पाकिस्तान और राष्ट्रवाद की बात कर रहे हैं, लेकिन जब यही लोग पाकिस्तानी मानसिकता में जकड़े मुट्ठी भर जेहादी मुसलमानों का वोट हासिल करने के लिए पाकिस्तान का समर्थन करने से लेकर बंग्लादेशी कलामारों को नचाने और खुलकर मुसलमानों का वोट मांगने का धंधा कर रहे हैं तो कोई बात नहीं? जनता इनके पाखंड को पहचान गयी है, इसलिए अपनी खिसकती जमीन बचाने के लिए विपक्षी पार्टियां खुलकर सांप्रदायिकता का कार्ड खेल रही हैं।
बता दूं कि बिहार के एक सभा में नवजोत सिंह सिद्धू ने मुसलमानों से कहा कि आपकी जनसंख्या यहां 64 फीसदी है। यदि आप एकजुट हो जाएं तो मोदी को आने से रोका जा सकता है।’ यह साफ-साफ सांप्रदायिकता से भरा बयान है और चुनाव आयोग को इस प संज्ञान लेना चािहए। वैसे चुनाव आयोग की निष्पक्षता भी दांव पर है।
खुलेआम मुसलमानों का वोट मांगने वाली मायावती और एक हिंदू स्त्री का अपमान करने वाले आजम खान पर दो दिनों का तो योगी आदित्यनाथ और मेनका गांधी पर तीन दिनों तक प्रचार न करने का प्रतिबंध चुनाव आयोग की निष्पक्षा को कटघरे में खड़ा करता है।