पहले राहुल गांधी अपनी माँ के भरपूर सुरक्षित साए में रहे और जब माँ ने उनको बाहर के हवा-पानी का अनुभव करने के लिए अकेला छोड़ा तो उनको कांग्रेस के राज्यसभा वाले चाचाओं ने घेर लिया। जो चाहते ही नहीं हैं कि वे कुछ समझदार बन जाएँ। जिसका प्रमाण है अक्सर होने वाले उनके हास्यास्पद भाषण और बयान। जिस क्रम में वे यह भी कह गए कि अगर उन्हें संसद में बोलने का मौका मिला तो अपने अपने भाषण से ऐसा हल्ला बोल करेंगे कि भूकम्प आ जाएगा। जबकि हकीकत यह है कि अगर राहुल गांधी वाकई सलीके से बोलना सीख जाएँ और एक स्पीच भी ढंग से पूरी कर दें तो हम सब वह भूकम्प भी सहर्ष झेलने के लिए तैयार हो जायेंगे।
लेकिन उनके लिए दिल्ली अभी बहुत दूर है । विरासत में पद, सत्ता और वैभव बेशक प्राप्त हो जाए लेकिन इस दौर में योग्यता साबित किये बिना स्वीकार्यता संभव नहीं है। यद्यपि राहुल गांधी जिस राजनैतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं वहां ऐसे बोल कोई नहीं बात नहीं है। उनके पिताजी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी एक समय में अपने विरोधियों को ‘नानी याद दिलाने’ की ऐतिहासिक धमकी दे चुके हैं। इस दौरान ‘नानी’ से लेकर ‘भूकम्प’ तक बहुत कुछ बदल गया है, अगर राहुल गांधी जी भी बदल जाएँ तो उनके खुद के लिए न सही लेकिन कांग्रेस पार्टी के उन तमाम लाचार कार्यकर्ताओं के लिए बड़ी राहत की बात होगी जो उनसे भारी भरकम उम्मीदें लगाकर जी रहे हैं।
जहाँ तक राजनीति में अपनी हुंकार से भूकम्प लाने का सवाल है तो राहुल गांधी को समझ लेना चाहिए कि वो भूकम्प स्क्रिप्ट में लिखे डायलॉग बोलने से नहीं आता बल्कि इसके लिए पहले भारतीय होना पड़ता है, इस देश की मिट्टी में उतरना पड़ता है और अपने गिरेबान में भी झांकना पड़ता है। बदकिस्मती से राहुल गांधी इसमें से कोई भी योग्यता धारण नहीं करते हैं और सिर्फ एक उपनाम की वजह से ये देश अब उनको आगे ढोने के लिए तैयार नहीं है।