अन्वय नाइक खुदकुशी मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने जो क्लोजर रिपोर्ट अदालत में दायर किया था, उसमें साफ कहा था कि इस मामले में अर्नब गोस्वामी पर कोई आरोप नहीं बनता है। क्लोजर रिपोर्ट में कहा गया था कि जिन तीन आरोपियों को इसमें शामिल किया गया है उनका आपस में कोई संबंध नहीं है।
अरनब गोस्वामी, फ़िरोज़ शेख और नितेश सारदा का मई 2018 में इंटीरियर डिज़ाइनर अन्वय नाइक के सुसाइड नोट में नाम दिया, जिसके आधार पर तीनों के खिलाफ आत्महत्या का मामला बनाया गया था, लेकिन यह लोग एक-दूसरे से जुड़े नहीं थे। इस मामले की जांच करने वाले जांच अधिकारी इंस्पेक्टर सुरेश एच वरडे द्वारा 16 अप्रैल को दायर की गई क्लोजर रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन तीन आरोपियों का नाम अलग-अलग फील्ड्स, लोकेशन्स में है उनका आपस में कोई लिंक नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “अब तक की जांच में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि सुसाइड नोट में नामजद तीन आरोपियों की ओर से की गई कार्रवाई, व्यक्तिगत रूप से या साथ में, मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने वाला हो।”
क्लोजर रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नाइक की कंपनी घाटे में चल रही थी और इससे मां बेटे परेशान थे। जांच में पाया गया कि नाइक की इंटीरियर कंपनी तीनों आरोपियों के कार्यालयों के लिए अंदरूनी काम कर रही थी, लेकिन कुछ काम तय समय सीमा में अधूरा छोड़ दिया गया लेकिन इसके बावजूद भुगतान कर दिया गया। वैसे दावा है कि कुछ भुगतान नहीं हुआ।
इस मामले की जांच में पता चला है कि पिछले छह से सात साल (2018 से पहले), कॉनकॉर्ड (नाईक की कंपनी) को वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण अन्वय नाइक और उनकी मां मानसिक तनाव में थे। चूंकि उनकी मां कंपनी में भागीदार थीं, इसलिए उन्होंने उनकी गला दबाकर हत्या कर दी, एक सुसाइड नोट लिखा और फिर खुद को लटका लिया।
रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज की ओर से अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने दावा किया है कि वित्तीय वर्ष 2016 के रूप में 26.5 करोड़ रुपये का कर्ज था। तब से, कंपनी निष्क्रिय थी और उसने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के साथ अपना वार्षिक वैधानिक रिटर्न दाखिल नहीं किया था। हालांकि अन्वय नाइक के परिवार द्वारा इसका विरोध किया गया।
पीड़ित परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील वैभव कार्णिक ने आरोप लगाया था कि पुलिस द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की सत्यता संदिग्ध थी। उन्होंने दावा किया, “पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट कई दस्तावेजों पर आधारित थी जैसे कि अभियुक्तों द्वारा जमा किए गए डेबिट नोट, जिनकी गिनती भी नहीं की गई थी और इसलिए, उनकी सत्यता संदिग्ध है। अब तो महाराष्ट्र सरकार ने इस केस की जांच करने वाले अधिकारी के खिलाफ भी कार्यवाही किए जाने का निर्णय लिया है।”
इस बीच महाराष्ट्र के अलीबाग जिले की सत्र अदालत अर्नब गोस्वामी को रिमांड पर सौंपने को लेकर पुलिस की पुनरीक्षण याचिका पर नौ नवंबर को सुनवाई करेगी। पुलिस ने यह पुनरीक्षण याचिका साल 2018 के आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक गोस्वामी को पुलिस रिमांड के स्थान पर न्यायिक हिरासत देने के मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ दायर की है।
इस बीच रिपब्लिक टेलीविजन के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी मुंबई पुलिस पर अपनी जमानत याचिका में यातना देने का आरोप लगाया है। अर्नब गोस्वामी ने अपनी याचिका में दावा किया कि गिरफ्तारी के दौरान उन्हें भारी बूट से मारा, उन्हें बाएं हाथ में आधा फुट गहरा निशान पड़ गया है और उन्हें चोट लगी है। उनकी रीढ़ की हड्डी में भी गंभीर चोट आई है। अर्नब गोस्वामी ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारियों ने उन्हें एक पेय पदार्थ पीने के लिए मजबूर किया। उन्होंने यह भी कहा कि उसे पीने के बाद उन्होंने गले में घुटन की शिकायत हुई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
इंटीरियर डिजाइनर को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अपनी गिरफ्तारी को ‘गैरकानूनी’ बताते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में इसके खिलाफ एक याचिका अर्णब गोस्वामी के वकील ने दायर की है। इस मामले में उन्होंने महाराष्ट्र में अलीबाग पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने की अपील की है।
बहुत बडी साजिश है