मालिनी अवस्थी। संवाद भारत की प्राणशक्ति है और संवाद की निरंतरता ही विचारों को नव जीवन देती है, गति देती है,आत्म आकलन का सुअवसर देती है। आज सोशल मीडिया संवाद का सशक्त माध्यम है अतः संस्कृति गंगा द्वारा ऐसे आयोजन की कल्पना की गई जिसमें सभी समसामयिक विषयों पर एक चर्चा हो जिसमें विभिन्न वक्ताओं एवं सोशल मीडिया के सक्रिय लेखकों का परस्पर संवाद हो।
इस तरह की परिकल्पना का यह पहला आयोजन था, मात्र 13 दिनों में इसकी परियोजना बनी और इतने अल्प समय में जिस तरह हमारे आग्रह पर देश भर के लेखक लोग आन जुटे, वह इस बात का परिचायक है कि अधिकतर विचारक सिर्फ़ घर के सुकून में लिखने वाले ‘आर्मचेयर एक्टिविस्ट’ नही, संगठन की शक्ति को समझने वाले राष्ट्र प्रथम का संकल्प लिए, स्वयं कष्ट उठाकर मौके पर पहुँचने वाले अहंकार-विहीन प्रतिबद्ध विचारक हैं। आप सभी की लगन और प्रतिबद्धता को नमन। सात सत्र की जगह आठ सत्र आयोजित हुए जिनमें सभी विचारकों ने अपनी बात कही और प्रश्नकर्ताओं की जिज्ञासाओं का समाधान किया।
कार्यक्रम की शुरुआत ही सुंदर हुई। आदरणीया विदुषी डॉ सोनल मान सिंह जी से दीप प्रज्वलित कराते समय मैंने इस संकल्प के लिए पधारी सभी देवियों से दीप प्रज्वलन का आग्रह किया। जहां भगवती कृपा हो जाये, उस मंच को माँ का साक्षात आशीर्वाद मिल जाता है। यह नयनाभिराम दृश्य था। प्रथम सत्र में आदरणीया सोनल मान सिंह जी एवं अमीरचंद जी ने सोशल मीडिया के महत्व को रेखांकित किया, सत्र संचालन प्रख्यात लेखक लोकप्रिय स्तंभकार अनंत विजय जी ने किया। संबित पात्रा जी को कर्नाटक चुनाव में अपरिहार्य कारणों से रुकना पड़ा जिसके कारण उनका आना संभव नही हुआ, उनके स्थान पर, अल्प समय में हमारा अनुरोध स्वीकार पधारीं सांसद मीनाक्षी लेखी जी का सत्र अत्यन्त दिलचस्प रहा। प्रखर प्रश्न और वैसी ही प्रखरता से उनके उत्तर!
तीसरा सत्र रोहित सरदाना जी का था, जिनसे वार्ता की तुफ़ैल चतुर्वेदी जी ने। मुख्य धारा मीडिया और सोशल मीडिया एक दूसरे के पूरक या शत्रु! लोकप्रिय रोहित सरदाना जी बेबाकी से जवाब दिए, और बहुत तबियत से मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया की ताक़त और कमज़ोरियों को बयान किया। चौथा सत्र गौरव भाटिया का था, विषय था- न्यायपालिका पर उठते प्रश्न-कितने प्रायोजित हैं! यह ज्ञानपरक सत्र गंभीर था लेकिन गौरव भाटिया की तैयारी ने इसे एक धुंआधार सत्र में तब्दील कर दिया। वार्ताकार अनंतविजय पूरे समय गौरव भाटिया से चुटकी लेते नज़र आये।
पांचवा सत्र: इतिहास संस्कृति कला संगीत में सोशल मीडिया
इस सत्र में हमारे बीच विद्वानों की ऐसी त्रिवेणी थी कि इस सत्र में मैने तय कर लिया था कि आज त्रिवेणी की पावन धारा में अभिषिक्त करना और कराना, यही मेरा उद्देश्य हो।
इस सत्र में श्रद्धेय नरेंद्र कोहली जी के ओजस्वी उद्गार को अपने सुने सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ उद्बोधन/भाषण कहूँ तो अतिश्योक्ति नही होगी। आदरणीय कोहली जी ने निर्बाध जिस तरह इतिहास संस्कृति को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जोड़ा, वे बार बार हमें भारत के गौरवशाली इतिहास, से जुड़ने सीखने की शिक्षा देते रहे और सामने बैठे सभी श्रोता जैसे सम्मोहित से बैठे रहे, कितनी बार तालियां बजी, गिनती नही, कितनी बार रोम सिहर उठे, आंखें छलक आईं, कह नही सकती।
इस सत्र का वीडियो आप लोगों को उपलब्ध कराऊंगी, आप सभी को उस दिन अद्वितीय कलाकार शेखर सेन जी की बातें सुननी चाहिए, जो जितना बड़ा चिंतक विचारक होगा, उतना बड़ा कलाकार होगा- शेखर सेन जी को देख कर यह बात समझ आती है। उन्होंने बताया कि तकनीक का माहात्म्य समझते हुए संगीत नाटक अकादमी किस तरह आज सोशल मीडिया से जुड़ गई है आदरणीय सच्चिदानंद जोशी जी ने बताया कि तकनीक के युग में किस तरह सोशल मीडिया संस्कृति के विकास का साथी बन रहा है। युवा देवेंद्र सिकरवार ने भी बताया कि किस तरह हम आज जिस विजय पराजय के ज़िम्मेदार हम स्वयं हैं। दूसरों का लिखा इतिहास हमारा इतिहास नही। हमे स्वयं रचना होगा। इस सत्र में बहुत सवाल आये और सत्र तय सीमा से बहुत अधिक लंबा चला, और इच्छा थी कि आज सत्र समाप्त ही न हो। विद्वानों को सुनना आत्मा को रीझता है, इस सत्र का सत्व सदा साथ रहेगा।
छठा सत्र था सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तित्वो के साथ:आयोजन के लिए पुणे से पधारीं हम सबकी प्रिया अत्यंत लोकप्रिय शेफ़ाली वैद्या! साथ थे, ट्विटर पर अक्रामक तेवरों व तथ्यो के लिए प्रसिद्ध गौरव प्रधान! अत्यंत विद्वान सुधांशु त्रिवेदी जी एवं सत्र संचालन किया पश्यति शुक्ला ने। इस सत्र में डेलीगेट्स ने जम कर सवाल पूछे और सीधा संवाद स्थापित किया। शेफ़ाली एक अद्भुत महिला हैं। ग़ज़ब बोलती और वैसा ही लिखती हैं। लेकिन इस सत्र में कमाल उद्बोधन सुधांशु त्रिवेदी जी का रहा। बेहद शानदार और बोधक!
अगला सत्र था वर्तमान में सोशल मीडिया पर आर्थिक सुधारों को लेकर फैलते भ्रम पर! रेणुका जैन एक चार्टेड एकॉउंटेंट हैं जिनके कई सुझावों को हाल ही में माना गया है। विमुद्राकरण, और जी एस टी एवं बैंकों के NPA तक! अनेक आर्थिक पक्षों पर लोगों ने सवाल पूछे और उन्होंने जवाब दिए।
अंतिम सत्र था रजत शर्मा जी के साथ!
आज तक रजत शर्मा जी कभी भी सोशल मीडिया से सीधे रूबरू नही हुए हैं। यह पहला अवसर था। मुझे ख़ुशी है, मेरे एक अनुरोध पर वे मान गए।
यह सत्र सबसे दिलचस्प था। मुख्यधारा मीडिया में एक बड़े चैनल के मालिक और पत्रकार रजत शर्मा जी सोशल मीडिया के आक्रमक तेवरों का सामना कैसे करेंगे यह देखने की जिज्ञासा सभी को थी। सत्र का संचालन शालीन ऋचा अनिरुद्ध ने जितनी कुशलता से किया, जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। रजत जी ने बड़ी गरिमा के साथ अपनी बात रखी और देश भर से पधारे डेलीगेट्स के तीखे प्रश्नो का उत्तर सधे संतुलित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए दिया। कुछ बातें नकार गए कुछ स्वीकार करनी पड़ीं। वे समझ गए थे कि मंच के इस पार जो बैठे हैं, उनके मन में मुख्यधारा मीडिया के गैरज़िम्मेदाराना रवैये को लेकर गहरा आक्रोश है। और उन्होंने यह माना कि आपके सुझाव सभी चैनलों तक पहुंचाने का वायदा करता हूं।
अंत में संसदीय कार्य मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल जी ने आशीर्वचन देकर सोशल मीडिया की सक्रिय भूमिका की भूरि भूरि प्रशंसा की। सुबह 9 बजे से रात्रि 7 बजे तक चले इस मैराथन संवाद में जो ऊर्जा और उत्साह सुबह दिखाई दिया, शाम तक बना रहा। आप सभी ने संभव बनाया। मुझे मालूम है सोशल मीडिया पर अनेक लोग सक्रिय हैं, उनकी सक्रियता से ही आज आप मुख्यधारा मीडिया पर भारी पड़ रहे हैं। व्यवस्था में डेढ़ सौ लोगों को न्योता देना ही सम्भव हुआ,बहुत से लोग आये, Amitabh Satyam
बंगलोर से आये, Anand Rajadhyaksha मुम्बई से आये, शेफ़ाली वैद्या पुणे से आईं, Ganga Mahto खपौली झारखंड में रहते हैं, मुम्बई से आये, Bharti Ojha राँची से आईं। किरण राय Ranjay Tripathi लखनऊ से आये, सुरेश कात्यान कानपुर से पधारे,कुलदीप वर्मा पूना से। विष्णु भगानी जयपुर से, Salil Bhatt जयपुर से, अजित सिंह गाजीपुर से अवनीश पी. एन. शर्मा गोरखपुर से पधारे। Varun Bajpai जयपुर से पधारे, महिमाजीतेंद्र नागर हल्द्वानी से आईं। विशाल सचदेव पानीपत से तो Nita Gupta मेरठ से आईं। पवन अवस्थी लखनऊ से विष्णु भगानी जयपुर से आये।
Tufail Chaturvedi जी Sandeep Deo जी Devanshu Jha जी Isht Deo Sankrityaayan जी की गरिमामयी उपस्थिति हम सभी को आश्वस्त कर गई।
सब इतनी दूर दूर से आये- ग्यारह बारह दिन की पूर्वसूचना में! हम सब कृतज्ञ हैं। इन सभी तक पहुंचने में Anand Kumar जी का, आशीष कुमार अंशु का और सबसे विशेष मेरे अग्रज भइया Pushker Awasthi का सबसे बड़ा सहयोग रहा है, उन्हें बहुत आभार। कुछ नही भी आ सके। जो नही आ सके उन्होंने कुछ खोया, यही कह सकती हूं। अगली बार और लोग शामिल हों, संवाद का दायरा और बढ़ सके, यही मनोकामना है। यह हमारा पहला प्रयास था और ऐसे संवाद अब आयोजित होते रहेंगे। याद रखिये, यह गंभीर काल है। संगठन में ही शक्ति है। अहंकार तज एक हों, संवाद कायम करें। सार्थक, सकारात्मक और देश हित में हो संवाद! इस पुण्य यज्ञ में सम्मिलित सभी पुण्यात्माओं को प्रणाम! यह आयोजन नील Rahul Chaudhary Anil Dubey जी एवं नीरज जी के अथक परिश्रम का परिणाम है, उन्हें आगे ऐसे अनेक आयोजन करने की ऊर्जा माँ विंध्यवासिनी दें यही कामना।
अंत में इसी कथा के साथ विदा लेती हूं जो आयोजन के प्रथम सत्र में इस आयोजन के मूलाधार आदरणीय अमीरचंद जी ने सुनाई और परोक्ष में बहुत बड़ी बात कह दी। भगवान राम ने भरत से भेंट पर पूछा, “राजकाज कैसा चल रहा है?” भरत ने कहा, “सब कुशल है, आपकी खड़ाऊं के प्रताप से सब कुशल है।” तब राम ने पूछा, “भरत, तुम्हारी सेना में अवैतनिक सैनिक और गुप्तचर कितने हैं?” भरत यह सुन निरुत्तर हो गए और तब श्री राम ने कहा, “हृदय से प्रतिबद्ध सैनिक यदि तुम्हारे पास नही हैं, तो तुम्हारी व्यवस्था अधूरी है, राष्ट्र खतरे में है। ध्यान रखो, वेतनभोगी सैनिक तो वेतन लेकर रक्षा करे, न भी करे। किंतु सच्चा राष्ट्रप्रेमी निःस्वार्थ तुम्हारे लिए निर्भीक सजग खड़ा होगा और युद्ध ऐसे अवैतनिक निस्पृह सैनिकों से ही जीते जाते हैं! कथा का मर्म समझ ही गये होंगे…