श्वेता पुरोहित :-
संत हृदय नवनीत समाना कहा कबिन्ह परि कहै न जाना ।
निज परिताप द्रवइ नवनीता पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता ॥
गतांक से आगे –
गोस्वामी तुलसीदासजी ने ठीक ही कहा है कि –
संत हर्दय नवनीत समाना । कहा कबिन्ह परि कहै न जाना ॥
निज परिताप द्रवइ नवनीता । पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता ॥
महात्माओं का हर्दय मक्खन के समान होता है। इतना ही नहीं, माखन तो केवल अपने ही ताप से द्रवित होता है और सत्पुरूष दूसरों के ताप से द्रवीभूत हो जाते हैं। फिर ये महात्मा तो दैवी शक्ति से सम्पन्न थे और मानो उस वृद्धा की मनःकामना पूरी करने के लिए ईश्वर द्वारा प्रेरित होकर वहाँ आये थे। उन्होंने बालक को अपने पास बिठाया और उसे एक बार ध्यान पूर्वक देखकर कहा – ‘यह बालक तो भगवान का बड़ा भारी भक्त होगा।’ इतना कहकर उन्होंने अपने कमण्डल से जल लेकर मार्जन किया और बालक के कान में फूँक देकर कहा – ‘बच्चा ! कहो – राधे कृष्ण, राधे कृष्ण !
बस, महात्मा की कृपा से जन्म का गूँगा बालक ‘राधे कृष्ण, राधे कृष्ण‘ कहने लगा। उपस्थित सभी लोग आश्चर्य चकित हो गये और महात्माजी की जय-जयकार करने लगे।
गूँगें पौत्र के मुख भगवान नामोच्चार सुनकर वृद्धा जयकुँवरी को कितनी प्रसन्नता हुई होगी, इसे कौन बता सकता है ? उसने महात्मा जी को बार-बार प्रणाम किया और हाथ जोड़कर बड़ी दीनता के साथ प्रार्थना की –” महाराज ! आपकी ही कृपा से मेरा पौत्र अब बोलने लगा। मेरा बड़ा पौत्र राज्य में थानेदार के पद पर है। आप मेरे घर पर पधारने की कृपा करें और मुझे भी यथा शक्ति सेवा करने का सुअवसर प्रदान करें। आपकी चरण रज से मेरा घर पवित्र हो जायेगा।
परंतु सच्चे महात्मा सेवा या पुरस्कार के भूखे नहीं होते। वे तो सदा स्वभाव से लोक-कल्याण की चेष्टा करते रहते हैं। महात्मा जी ने प्रसन्नता पूर्वक उतर दिया –“माता ! मुझे कोई योगबल या तपोबल नहीं प्राप्त है। इस संसार में जो कुछ होता है , सब केवल प्रभु की कृपा से होता है। उन महामहिम परमात्मा की माया ‘अघटन-घटना पटीयसी’ कहलाती है। अतः मेरा उपकार भूलकर उन परमात्मा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करो और उनका नाम स्मरण ,भजन-पूजन करो। मैं इस तरह अकारण अथवा प्रतिष्ठा के लिए किसी गृहस्थ के घर पर नहीं जाता। तुम घर पर जाकर प्रभु का भजन करो, तुम्हारा कल्याण होगा। मैं तो अब गिरनार पर जाता हूँ और तुम्हारे इच्छानुसार यह कह जाता हूँ कि थोड़े ही दिनों में एक कुलवती सुरूपा कन्या से इसका विवाह भी हो जायेगा।”
जयकुँवरी को महात्माजी के सामने विशेष आग्रह करने का साहस न हुआ। पौत्र के साथ प्रसन्न वदन अपने घर चली आयी और उसने बड़े पौत्र वंशीधर से महात्माजी का चमत्कार कह सुनाया। वंशीधर ने महात्माजी के दर्शन करने की लालसा से सिपाहियों द्वारा बड़ी खोज करायी; परंतु कहीं उनका पता न लगा। लोगों का विश्वास है कि अपने भावी भक्त नरसिंह मेहता को इष्ट मंत्र तथा वाचा देने वाला सिद्ध पुरूष स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ही थे।
योगेश्वर श्री कृष्ण की जय🙏
भक्त श्री नरसी मेहता की जय 🙏
क्रमशः भाग – ३