श्वेता पुरोहित :-
🌿 नरसी भक्त को पुत्री व पुत्र रत्नों की प्राप्ति और पुत्र का विवाह 🌿
गतांक से आगे –
वंशीधर उन्हें अपने मनोऽनुकूल ठीक मार्ग पर लाने के लिए कोई बात उठा न रखी, भौजाई ने भरपूर कोसने तथा पति-पत्नी दोनों को कष्ट पहुँचाने में अपनी ओर से कोई कोर-कसर न रहने दी; परंतु ‘जैसे काली कामरी चढत न दूजो रंग’, नरसिंहराम के पक्के रंग पर कोई दूसरा रंग न चढ़ा।
धीरे-धीरे उनकी उम्र भी प्रायः पन्द्रह वर्ष की हो गई। भाई ने जब देखा कि अब उनका पढना-लिखना कठिन है तब उन्होंने उनको घोड़ों की परचिर्या तथा घास काटने का कार्य सौंप दिया। परंतु इस साईसी के काम से भी नरसिंह राम को कोई कष्ट नहीं हुआ। वह बड़ी प्रसन्नता के साथ भगवन्नाम-स्मरण करते हुए यथाशक्ति सारा कार्य करने लगे।
प्रायः सोलह वर्ष की अवस्था होते-होते नरसिंहराम की पत्नी माणिकगौरी के गर्भ से एक पुत्री का जन्म हुआ। उसके दो वर्ष बाद फिर मणिकगौरी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्री का नाम कुँवरबाई और पुत्र का नाम शामलदास रखा गया।इस तरह नरसिंहराम को दो सन्तानों का पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
परंतु उनका यह सौभाग्य दुरितगौरी की आँखों का काँटा बन गया। एक तो यों ही देवर-देवरानी को देखकर वह सदा जला करती थी; अब उनके परिवार की वृद्धि उसके लिए और भी असहाय हो उठी। दोनों भक्त दम्पति यद्यपि सेवक-सेविका की तरह दिन-रात घर के सब छोटे-बड़े काम किया करते थे, फिर भी दुरितगौरी यही समझती थी कि ये लोग मुफ्त ही घर में बैठकर खा रहे हैं और दिन पर दिन इनका खर्च भी बढ़ता ही जाता हैं अतएव वह अब नित्य उनके कामों में अकारण दोष निकालने लगी।
झूठी झूठी बातों से उनके विरूद्ध अपने पति के कान भरने लगी। नाना प्रकार के कारण दिखाकर उन्हें सताने लगी। वंशीधर यद्यपि यह जानते थे कि मेरी पत्नी बड़ी दुष्टा है, द्वेषवश छोटे भाई और उसकी पत्नी पर झूठा दोषारोपण करती है; वे वेचारे तो एकदम निर्दोष और पवित्र हैं, फिर भी कभी-कभी पत्नी की बातों में आकर वह छोटे भाई को कुछ भला-बुरा सुना दिया करते थे। इस तरह परिवार में कुछ कलह का सुत्रपात्र हो गया।
वृद्धा जयकुँवरी को इस कलह का भावी कुपरिणाम स्पष्ट दिखाई दे रहा था। परंतु घर में मृत्युशय्या पर पड़ी एक वृद्धा की बात कौन सुनता है? वह चुपचाप सब देखा करती। धीरे-धीरे उसकी अवस्था भी लगभग ९५ वर्ष की हो गयी। उसने मन में सोचा – “अब मेरा जीवन बहुत थोड़ा है। अगर नरसिंहराम् की लड़की का विवाह भी मेरे सामने ही हो जाता तो अपनी यह अंतिम अभिलाषा भी पूरी करके मैं शान्तिपूर्वक इस संसार से विदा होती और इस बेचारी का भी एक ठिकाना लग जाता।”
उन्होंने एक दिन वंशीधर को पास बुलाकर अपनी अभिलाषा प्रकट की। वंशीधर ने वृद्धा दादी की आज्ञा टालना उचित नहीं समझा। उन्होंने एक कुलीन और सुयोग्य वर की खोज करने के लिए कुल के पुरोहित को भेज दिया। पुरोहित जी घूमते-फिरते काठियावाड़ के ‘ऊना‘ नामक गाँव में आये और उन्होंने वहाँ के श्रीमंत नागर श्रीरंगधर मेहता के पुत्र वसन्तराय के साथ कुँवरबाई का विवाह निश्चित किया। निश्चित तिथि पर बड़े धूमधाम के साथ कुँवरबाई की शादी हो गयी।
वृद्धा जयकुँवरी की अभिलाषा पूरी हुई और वह उसके लगभग तीन मास बाद शान्ति पूर्वक इस असार संसार से सदा के लिए विदा हो गई।
योगेश्वर श्री कृष्ण की जय 🙏
भक्त श्री नरसी मेहता की जय 🙏
क्रमश – भाग ६
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