श्वेता पुरोहित :-
🌿 नरसीजी को शंकर भगवान् के दर्शन 🌿
गतांक से आगे –
नरसिंह राम की दृष्टि में शिवलिंग पत्थर नहीं था, बल्कि साक्षात कैलाशपति थे। अतएव वह निरन्तर विश्वासपूर्वक प्रार्थना और रुदन करने लगे। जंगल की भयावनी रात थी, नाना प्रकार के हिंसक जन्तु चारों ओर बोल रहे थे, कितने ही उस मंदिर में सोने के लिए आते थे और मनुष्य को देखकर डर से वहाँ से चले जाते थे; परंतु नरसिंह राम को इन सब बातों की कोई सुधि न थी। वह तो अखिलभुवनपती के ध्यान में पड़े थे और उन्हीं की पुकार कर रहे थे।
धीरे-धीरे रात बीती; सुर्य भगवान के आगमन से पृथ्वी का अन्धकार न मालुम कहाँ विलीन हो गया। फिर भी ब्राहम्ण नरसिंह मेहता उसी स्थिति में जमीन पर सिर टेके रुदन और विनती कर रहे थे। फिर दिन बीतता और रात आती और इस तरह दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता और चला जाता। परंतु वे उसी स्थिति में पड़े रहे। वे अपनी श्रद्धा और संकल्प से लेशमात्र भी विचलित नही हुए। इस प्रकार प्रायः सात दिन की उग्र तपस्या से कैलाशपति का आसन डोल गया।
सातवें दिन आधी रात के बाद भगवान भोलानाथ भक्त के सामने साक्षात प्रकट हुए। उन्हें देखते ही भक्तराज उनके परमपावन चरणकमलों पर यह कहते हुए लोट गये कि ‘मेरे भोलेनाथ आओ! मेरे शम्भु आओ। ‘भगवान शंकर ने कहा-‘बेटा ! मैं तुम्हारी सात दिन की घोर तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूँ; तुम मुझसे इच्छित वर माँग लो। भक्तराज नरसीजी ने नम्रतापूर्वक प्रार्थना की – ‘भगवान! मुझे कोई वरदान माँगने की इच्छा नहीं है। फिर भी आपकी आज्ञा वर माँगने की है; अतएव जो वस्तु आपको अत्यंत प्रिय हो, वही वस्तु आप वरदान में देने की कृपा करें।
वत्स ! तुमने तो वरदान बड़ा सुंदर माँगा। जगत भर में भगवान श्रीकृष्ण से अधिक प्रिय वस्तु मेरी दृष्टि में दूसरी कोई नहीं है। यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हें भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करा दूँ। ‘भगवान सदाशिव ने उत्तर दिया।
भगवन! यही तो इस असार संसार में सारभूत और दुर्लभ वस्तु है। फिर जो वस्तु आपको प्रियातिप्रिय है उसे अप्रिय कहने की धृष्टता कौन कर सकता है? नरसिंहराम ने निवेदन किया।
नरसिंहराम की ऐसी निष्ठा देखकर शंकरजी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने भक्तराज को दिव्य देह प्रदान कर, उन्हें साथ ले दिव्य द्वारिका के लिए तुरंत प्रस्थान किया।
भगवान भोलेनाथ की जय 🙏
योगेश्वर श्री कृष्ण की जय 🙏
भक्त श्री नरसी मेहता की जय 🙏
क्रमश – भाग ९