डॉ रजनी रमण झा नासदीय सूक्त (ऋग्वेद, मण्डल १०, सूक्त १२९)
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(७)
इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न ।
यो अस्याध्यक्ष: परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद ।।
अर्थ – जहां से यह सृष्टि उत्पन्न हुई है, वह (मूल कारण परमेश्वर मायाशक्ति से) इसे धारण करता है या (तात्त्विक रूप से निष्क्रिय होने के कारण वह) धारण नहीं करता है। (इस संसार का) वही ईश्वर है, हे मित्र ! जो परम आकाश में यानी निर्मल स्वप्रकाश में स्थित है। वह परमेश्वर ही जानता है (कि यह सृष्टि कहां से आयी है) अथवा वह नहीं जानता अर्थात् उससे भिन्न कोई नहीं जानता ।