विपुल रेगे। फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह अब अपने अभिनय के लिए नहीं, बल्कि अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं। हालाँकि मीडिया और शाह के समर्थक ये कभी नहीं मानेंगे कि उनके बयान गृहयुद्ध को आमंत्रण दे सकते हैं। नसीरुद्दीन शाह अपने इतिहास के बारे में बात नहीं करते। वे अपने पारिवारिक इतिहास को कभी अपने पिता से आगे नहीं ले जाते। वे जानते हैं कि यदि वे देश को अपने परिवार की ब्लडलाइन बता दे तो अब तक के सारे बयान उनके ही विरुद्ध जाते दिखाई देंगे।
एक अभिनेता अपने दायरे से निकलकर देश के करोड़ों मुसलमानों का प्रतिनिधि बन जाता है। मीडिया उसके भड़काऊ बयानों को हवा देता है लेकिन कभी ये नहीं बताता कि नसीरुद्दीन शाह के शरीर में उस शासक का रक्त दौड़ रहा है, जिसने भारत के विरुद्ध अंग्रेज़ो का साथ दिया था।नसीरुद्दीन शाह के चरित्र को लेकर फिल्म उद्योग में कई सारी बाते की जाती हैं।
उनके बारे में प्रसिद्ध है कि वे कभी कमज़ोर किरदार नहीं करते। जब उन्होंने सुनील शेट्टी और अक्षय कुमार के साथ ‘मोहरा’ फिल्म की, तब उनकी ज़िद से क्लाइमैक्स बदला गया था। उनका किरदार खलनायक का था लेकिन वे नायक के हाथों आसानी से नहीं मरते। ‘सरफ़रोश’ फिल्म में गुलफाम हसन का किरदार संभवतः उनके दिल के करीब था।
इस फिल्म में भी वे नायक के हाथों से नहीं मरते, बल्कि बंदूक की संगीन अपनी गर्दन में घोंप लेते हैं। नसीर एक ऐसे कलाकार है, जिनके किरदारों पर ‘जान फिशानी खान’ का प्रभाव दिखाई देता है। जान फिशानी उर्फ़ सैयद मोहम्मद शाह एक अफगानी योद्धा था। इसने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिशों का साथ दिया था। उसने महारानी लक्ष्मीबाई के विरुद्ध भी तलवार उठाई थी।
सैयद मोहम्मद शाह का अफगानी रक्त नसीरुद्दीन शाह की रगों में भी दौड़ता है। यही कारण है कि वे लगातार भारत को लेकर आपत्तिजनक बयान देते रहते हैं। वे अपनी अफगानी ब्लडलाइन को लेकर मन में एक गौरव अनुभव करते हैं। यही कारण है कि नवाबों वाली ठसक उनसे शक्तिशाली किरदारों की मांग करती रहती है। जब जान फिशानी अंग्रेज़ों की ओर से लड़ा तो अंग्रेज़ों ने खुश होकर मेरठ में उसे एक जागीर प्रदान की।
नसीरुद्दीन के पिता एले मोहम्मद शाह ने मुस्लिम लीग का साथ दिया था। अब नसीरुद्दीन अनर्गल बयानबाज़ी कर अपनी अफगानी ब्लडलाइन का सतत प्रदर्शन करते रहते हैं। आज नसीरुद्दीन शाह का परिवार अत्यंत समृद्ध हैं। उन्होंने इतने वर्ष तक फिल्म उद्योग में काम किया। उनको अवसर देने वाले निर्माता-निर्देशक इसी धरती पर जन्म लिए थे और वे अफगानी भी नहीं थे।
यदि उन्हें उचित अवसर न मिलते तो शायद वे कभी इतने बड़े सितारे न बन पाते। क्या वे कल्पना कर सकते हैं कि वे भी अपने चाचाओं के परिवार के साथ पाकिस्तान चले जाते तो वहां उनकी प्रतिभा को कौन पहचान सकता था। नसीर को तो इस देश और यहाँ के फिल्म उद्योग को धन्यवाद देना चाहिए। हालाँकि सैयद मोहम्मद शाह का देशद्रोही रक्त उनकी रगों में दौड़ रहा है तो वे ऐसा कैसे कर सकते हैं।
जान फिशानी खान का अफगानी खून उनको कभी सच नहीं कहने देगा। नसीरुद्दीन शाह एक प्रतिभाशाली किन्तु एहसानफरामोश कलाकार हैं। जिस देश ने रोटी दी, जिस देश ने नाम दिया, उसका अपमान करना उनका निजी जेहाद बन चुका है।