राष्ट्रीय पुस्तक मेला में 18 अगस्त 2017 को “दाना पानी पहल” की ओर से “दादी नानी की कहानी” विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई.
साहित्यकार निर्मल दर्शन के संचालन में हुए इस कार्यक्रम में इस मुहिम के प्रणेता गौरव मिश्रा ने बताया कि किस प्रकार उनके मन में यह विचार आया. और “काग भगोड़ा” को “काग बुलौवा” के रूप में पुनर्स्थापित करके पर्यावरण संतुलन की अवधारणा भी उन्होंने प्रस्तुत की.
व्यंग्य कार अनूपमणि त्रिपाठी ने कहा कि आज जिस प्रकार बच्चों के जीवन को मशीनी बनाया जा रहा है वो बड़ी चिंता की बात है….विकास के साथ साथ अपनी पारंपरिक क़िस्सागोई के पुनर्जीवन की बात की.
हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने कहा कि बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने में दादी नानी की कहानियों की बड़ी भूमिका हो सकती है.
समर्पण वरिष्ठ जन परिसर से ओज कवयित्री श्रीमती राकेश कुमारी चौहान ने अपनी ओज की कविता के माध्यम से बच्चों से जुड़ाव का विषय उठाया.
परिसर से ही वरिष्ठ लेखिका डा. उषा दीक्षित ने कहा कि आज दादी नानी की कहानियों से हम आत्मीयता का संबंध रच सकते हैं.
उम्मीद संस्था से आई हुई श्रीमती उषा अवस्थी ने भावुक होते हुए कहा कि जीवन में धन कितना ही कमा लिया जाए लेकिन यदि जीवन के मूल्य न बचे तो संसार में रिश्ता नाम की चीज़ नहीं बचेगी.
राष्ट्रीय बाल भवन की पूर्व निदेशक और समारोह की मुख्य अतिथि डा. मधु पंत ने कहा कि बच्चे सरल, सहज, निश्छल, पवित्र और स्पष्ट होते हैं, उनके साथ संबंधों के स्थापना में दादी नानी की कहानियां बड़ी भूमिका का निर्वहन कर सकती हैं, बच्चों से संबंधित एक कविता भी उन्होंने सुनाई. मधु पंत ने “खुल जा सिमसिम” नाम का सुझाव भी दिया कि इस के माध्यम कहानियों के अनंत रूप प्रचलन में लाए जा सकते हैं.
कार्यक्रम के अध्यक्ष पूर्व प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त, भारत सरकार एवं साहित्यकार गिरीश नारायण पांडे ने कहा कि दादी नानी की कहानी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि दादी नानी कहानियों को सुनाते समय बच्चे बन जाती हैं इसीलिए कहानी वाचन की यह विधा सर्वाधिक प्रभावशाली है. बच्चों की संवेदनशीलता ही उनका सबसे बड़ा गुण है और इस प्रयास से समाज को संवेदना के ह्रास से बचाया जा सकता है.
अतिथियों को दाना पानी पहल की ओर से “काग बुलौवा Care Crow” का प्रतीक भेंट किया गया.
(दाना पानी पहल के सौजन्य से)