
मोदी सरकार में नक्सली वारदातों में कमी आने के बाद भी खतरे में है ‘कामी-वामियों’ के लिए लोकतंत्र!
वामियों-कांगियों की कथनी और करनी में ही अंतर नहीं होता उसका विश्लेषण भी समझ से परे ही होता है। वामियों के साथ कांगी भी हर ओर यह शोर मचाने में जुटे हैं कि मोदी सरकार आने के बाद से देश का लोकतंत्र खतरे में है। ये वही वामी-कांगी है जिनके लिए साल 2009 2258 नक्सली वारदातों के बाद भी लोकतंत्र पर कोई खतरा नहीं था, देश का लोकतंत्र दनादन था। कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान यानि 2009 में अर्बन नक्सली कमोपेक्ष शांत थे, इसके बाद भी देश में आये दिन नक्सली वारदातों को अंजाम दिया गया।
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* मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं
2009: Urban Naxals were quiet and democracy was not in Danger
Violent incidents by Left wing extremists: 2258
2017-18: Urban Naxals whining. Democracy is in danger. Fascist govt in power.
Violent Incidents by Left Wing Extremists: 908
Hmmm?
— Ashu (@muglikar_) November 14, 2018
इतनी नक्सली वारदातें होने के बाद भी देश के लोकतंत्र पर किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं था। साल 2017-18 के बीच अर्बन नक्सलियों की सक्रियता भी चरम पर रही है। इसके बाद भी देश में नक्सली वारदातों की संख्या में गजब की कमी देखी गई है। साल 2017-18 में कुल 908 नक्सली घटनाएं हुई हैं। इसके बाद भी देश में लोकतंत्र खतरे में है। इस प्रकार विश्लेषण कोई वामी ही कर सकता है और उसपर कोई कांगी ही भरोसा कर सकते हैं। इस प्रकार के बे सिर पैर का विश्लेषण इन्ही दोनों को शूट भी करता है।
देश के आंकड़े कुछ भी कहे वामपंथी अपनी ही बनाए अवधारणा के अनुरूप चलते हैं। उनके सामने कोई भी डाटा रख दीजिए उन्हें मोदी को तानाशाह बताना है तो वे वही बताएंगे भले तथ्य कुछ भी हो। तभी तो नक्सली वारदातों से लेकर अर्बन नक्सलियों की अति सक्रियता कुछ भी हो, जब तक मोदी सत्ता में रहेंगे वे उन्हें तानाशाह बताकर बदनाम करते रहेंगे इतना ही देश का लोकतंत्र खतरे में ही रहेगा।
URL: Naxal attacks reduced during Modi government, than UPA government
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