एनडीटीवी के प्राइम टाइम पर रवीश कुमार जब प्रकट होते हैं तो उनके चेहरे पर खीझ साफ झलकता है। चेहरे पर खिंचाव, झुकी हुई गर्दन, कुबड़ी कमर, आंखों के नीचे पड़े काले स्याह खड्डे और हताश आवाज में जब वह मोदी-शाह को लेकर ‘रंडापा’ छेड़ते हैं तो लगता है जैसे वह अपनी घृणा में खुद ही झुलसते जा रहे हैं। कई बार ऐसा लगता है कि वह अपना सिर पीट लेंगे कि मोदी-शाह के नाम पर इतना रुदाली गाने के बावजूद लोग उनकी बातों को तवज्जों क्यों नहीं दे रहे हैं? ‘मीम’ समुदाय और वामपंथी वर्ग-यही दो खेमे ऐसे हैं जो उनके फेसबुक पोस्ट और उनके प्राइम टाइम पर ‘नारा-ए-तकरीर’ का नारा बुलंद किए रहते हैं। इन दोनों वर्ग के लिए रवीश सूखे में ठूंठ की तरह हैं। क्या पता इस ठूंठ में कभी कोई कोंपल फूट जाए! लेकिन हाय रे रवीश और उनके चाहने वालों की किस्मत, मोदी-शाह बढ़े जा रहे हैं, राष्ट्रवादी मल्हार गा रहे हैं और रवीश की आंखों के नीचे का घेरा स्याह से काला होता जा रहा है!
वही-वही चेहरे, वही-वही लोग रवीश को बार-बार गुमान कराते हैं कि वह उन दोनों वर्गों के लिए ‘जॉनी वाकर’ हैं, जो लगातार हिच…हिच… करते हुए अपने दर्शकों का मनारंजन कर रहे हैं! ‘मीम-वाम’ समुदाय के अलावा रवीश के पोस्ट पर न नए तरह के पाठक जुड़ रहे हैं, न प्राइम टाइम पर नए तरह के दर्शक! प्राइम टाइम का तो यह हाल है कि वह TRP के सबसे निचले पायदान पर है। रवीश को इसका अच्छे से ऐहसास है, इसलिए वह अपने प्रोग्राम को शून्य TRP वाला कहते हुए यह कहना नहीं भूलते कि ‘आप लोग न्यूज चैनल देखना बंद कर दीजिए, क्योंकि न्यूज चैनल सिर्फ शोर फैलाते हैं!’ जेएनयू के अंदर उनके ‘द्वि-नंगों’ (मीम-वाम समुदाय) द्वारा देश विरोध में लग रहे नारों को न दिखाना पड़े, इसलिए एक बार तो इस शोर के बहाने वह अपना मुंह, अहां, अपने टीवी का मुंह काला कर चुके हैं!
गड्ढे से झांकती नफरत से भरी रवीश की आंखें दूसरों में भी नफरत ही तलाशती है। शून्य टीआरपी वाला यह व्यक्ति चाहता है कि मेरा घर नहीं बस रहा तो दूसरे का भी उजड़ जाए, यानी दूसरों को भी दर्शक न मिले! लेकिन कोई उनकी बात नहीं सुनता, वह बस नकियाते रहते हैं! ध्यान से सुनिए, वह नाक से न केवल बोलते हैं, बल्कि हंसते भी हैं!
अकेलेपन और हताशा से जूझते रवीश रोज एक ही तरह का स्यापा करते हैं- ‘मोदी-शाह, मोदी-शाह!’ ऐसा लगता है कि रात में बिस्तर पर भी ‘नहीं हार रहा मोदी-नहीं हार रहा शाह’ चिल्लाते हुए उठ बैठते होंगे! बेचारी पत्नी, कहीं किसी रात अपने पति की नफरत की शिकार न हो जाए! मोदी-शाह का गला दबाने के सपने में रवीश उनका गला न दबा दें!
नकियाते और नाक से ही हंसते रवीश यदि यह पढ़ लें तो कहेंगे, ‘देखिएं, मोदी भक्तों ने मेरे परिवार तक को नहीं छोड़ा हैं!’ भैया कैसे छोड़ दें। अपने बलात्कार अरोपी भाई को बचाने के लिए कांग्रेसी कपिल सिब्बल जैसे छह नामी गिरामी कांग्रेसी वकीलों से सुप्रीम कोर्ट में झूठ बुलवाने का धंधा कर आपने भी तो अपनी ‘पेटिकोट पत्रकारिता’ के जलवे से ही अपने परिवार को बचाया है! तो नकोड़े, फिर परिवार को पहले बीच में लाने वाला कौन हुआ?
आजकल रवीश कुमार ने एक और धंधा चालू किया है! दूसरे अखबार की खबरों को पढ़ने, दूसरे न्यूज चैनल्स की रिपोर्ट को देखने और यह तय करने का कि मेरी खबर आखिर कोई क्यों नहीं दिखा रहा है? ‘मीम-वाम’ ने उनके अंदर गुमान भर दिया है कि वह जो नकियाते हैं, वही न्यूज है! अब भैया, गर्दभ को भी यह गुमान होता है कि वह ‘वैशाखनंदन’ है! तुम्हें ‘पत्रकारनंदन’ का गुमान है तो फिर इसमें किसी का क्या दोष?
कौन क्या दिखा रहा है? क्या छाप रहा है? कहां और कितने कॉलम में छाप रहा है? ईंची-टेप लेकर सुबह-सवेरे रवीश बाबू बैठ जाते हैं और फिर प्राइम टाइम में अपने प्रिय अरविंद केजरीवाल के मानिंद सर्टिफिकेट बांटना शुरु कर देते हैं! बिल्कुल विक्षिप्त-सी दशा में वह चिल्लाने लगते हैं, ‘गोदी मीडिया-गोदी मीडिया।’ अब अपने बलात्कार आरोपी भाई को बचाने के लिए कांग्रेस की गोदी में बैठने वाला, 2जी, कॉमनवेल्थ, चिंदबरम का हवाला, एयरसेल-मैक्सिस के भ्रष्टाचार रूपी पैसे से चलने के दाग वाले चैनल से सैलरी पाने वाला ‘गोदी-गोदी’ चिल्लाएगा तो लोग कहेंगे ही न कि अरे ‘गांधी परिवार की गोदी’ लुट गई है, इसलिए इतनी गोदी की याद आ रही है क्या? यह बस पूछ भर लीजिए, बेचारे विक्षिप्त मनोदशा के शिकार होकर चिल्लाने लगते हैं- फेक न्यूज..फेक न्यूज!
चिद्दू की गोदी में बैठकर लेमनचूस चूसने का समय कब का चला गया रवीश बाबू! जाग जाओ, अच्छा रहेगा! समझ सकता हूं कि 2004 से 2014 तक यह लेमनचूस बहुत मीठा था, अब इसका रस सूख गया है और गोदी उजड़ गया है! अब इसमें किसी का क्या दोष?
अब तो NDTV के तुम्हारे ही एक साथी अखिलेश शर्मा ने भी ट्वीट कर तुम्हें आईना दिखा दिया है कि यह जो तुम सुबह-शाम दूसरे मीडिया हाउसों, पत्रकारों, अखबारों को सर्टिफिकेट बांटते फिर रहे हो, वह तुम्हें उपहास का पात्र बना रहा है! हालांकि अखिलेश शर्मा ने किसी का नाम नहीं लिया है, लेकिन मीडिया के लोग समझ रहे हैं कि रात दिन दूसरे मीडिया और पत्रकारों को कोसने वाले रवीश कुमार पर ही उनका यह व्यंग्य है! अखिलेश शर्मा ने लिखा है- अब कुछ पत्रकारों पर ज़िम्मेदारी बढ़ गई है। उन्हें न सिर्फ़ अपना काम करना होता है, बल्कि यह भी देखना होता है कि दूसरे पत्रकार सही काम कर रहे हैं या नहीं। मसलन ख़बर छपी कि नहीं, छपी तो कहाँ छपी, कितने कॉलम में छपी,पहले पन्ने पर छपी तो लीड क्यों नहीं छपी? ठीक हेडलाइन क्यों नहीं लगी?
अब कुछ पत्रकारों पर ज़िम्मेदारी बढ़ गई है।उन्हें न सिर्फ़ अपना काम करना होता है, बल्कि यह भी देखना होता है कि दूसरे पत्रकार सही काम कर रहे हैं या नहीं। मसलन ख़बर छपी कि नहीं, छपी तो कहाँ छपी, कितने कॉलम में छपी,पहले पन्ने पर छपी तो लीड क्यों नहीं छपी? ठीक हेडलाइन क्यों नहीं लगी?
— Akhilesh Sharma (@akhileshsharma1) November 20, 2018
अखिलेश शर्मा के इस ट्वीट के एक दिन पहले ही प्राइम टाइम में नकियाते हुए रवीश कुमार दूसरे अखबारों को कोस रहे थे कि राफेल पर कोई खबर नहीं छाप रहा, छाप रहा है तो अंदर छाप रहा है, सिंगल कॉलम में छाप रहा है, वगैरह-वगैरह। इस प्राइम टाइम के अगले ही दिन यही ‘रंडापा’ अमित शाह को लेकर किया- ‘अमित शाह का पीछा करती फ़र्ज़ी एनकाउंटर की ख़बरें और ख़बरों से भागता मीडिया।’
अमित शाह को लेकर रवीश कुमार जिसे खबर कह रहे हैं, वह बकैती है और रवीश कुमार चाहते हैं कि उनकी बकैती को दूसरी मीडिया और पत्रकार उसी तरह तवज्जो दे, जैसे वह सोनिया की ‘मनमोहनी सरकार’ के समय देते थे! रात-दिन कांय-कांय में वही गुजरात दंगा, सोहराबुद्दीन-तुलसी प्रजापति-इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर, वही तीस्ता सीतलवाड़ और शबनम हाशमी का एजेंडा, वही संजीव भट्ट, प्रदीप शर्मा, अमिताभ ठाकुर, संदीप तामगड़े जैसे कांग्रेसी नौकरशाह की झूठी लगाई-बुझाई! अरे कब तक यही बकैती करके रोटी खाओगे?
पूरा एक दशक रवीश कुमार और एनडीटीवी ने इसी बकैती में निकाला है, अगले एक दशक भी वह यही सब बड़बड़ाना चाहते हैं। इसलिए जो यह बकैती नहीं कर रहा, वह कुंठा के शिकार रवीश कुमार के अनुसार गोदी मीडिया है, और जो यह बकैती कर रहा है, वह क्रांतिकारी मीडिया है! अब इस क्रांति का परिणाम लोकसभा चुनाव-2019 में बिहार से रवीश के परिवार से कांग्रेसी टिकट के रूप में सामने आ जाए तो ताज्जुब मत कीजिएगा! आखिर नफरत बांटने का सारा धंधा इसी को ध्यान में रखकर तो चल रहा है!
2019 में भी सब लुट गया तो फिर गाते रहना, ‘मोदी-शाह ने छीन लीना बुढ़ापा मेरा!’ घबराओ मत, तुम्हारे पूरे परिवार के बुढ़ापे का पेंशन गांधी परिवार व अहमद भाई उठा ही लेंगे! उनकी गोदी में पूरे एक दशक तक बैठ कर तुमने जो वफादारी निभाई है, उसका इतना ईनाम तो बनता ही है! वैसे राहुल गांधी अपने वफादार के लिए ‘पीडी’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं! ‘पीडी’ का अर्थ तो समझते हो न? नहीं समझते, चलो फिर भौंक लो!
URL: NDTV Ravish Kumar’s hypocrisy and agenda journalism exposed-1
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