सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। सूट पहने, पॉकेट में एक हाथ रखे, पिचके पिछाड़ी और निकले अगाड़ी वाला पोडियम पर खड़ा एक विदूषक जनता का मनोरंजन कर रहा है! उसे गुमान है कि उसने बड़ी विद्वता का प्रश्न जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से पूछ डाला है, लेकिन अभी इस गुमान का नशा उतरा भी नहीं था कि चीनी कहावत के उदाहरण से राज्यपाल ने उसे मंच से ही ‘नासमझ’ साबित कर दिया! जनता ताली पीटने लगी! अभी तक अपने लिए बज रही ताली से उत्साहित उस विदूषक को जनता की यह ताली शायद शोर लग रही हो! टेलीविजन न्यूज पर खुद को सबसे बड़े एंकर समझने वाले रवीश कुमार को मैं विदूषक क्यों कह रहा हूं? चाहता तो नहीं कहता, लेकिन उसके ही शब्दों में-‘यही लोकतंत्र है!’ राज्यपाल को एक फैक्स ऑपरेटर समझने वाला या मूर्ख है या मूढ़! मूर्ख वह, जिसे तथ्य पता ही न हो, मूढ़ वह, जिसके सिर पर विद्वता का नशा हो! लेकिन मेरे लिए वह प्योर विदूषक है, क्योंकि रवीश मेरे मनोरंजन की सबसे बड़ी खुराक है!
उस वीडियो में वामपंथी पत्रकार रवीश कुमार जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक पर तंज कस रहा है! ‘जनाना नजाकत’-सी भंगिमा धारण करते हुए भूमिका बनाने के लिए वह पहले भानुमति का कुनबा जोड़ने का प्रयास करता है! चंबल नदी के हालात से श्रीनगर राजभवन के फैक्स मशीन के हालात को जोड़ देता है, और जब उसे लगता है कि अभी और विद्वता प्रदर्शित करने की जरूरत है तो फिर गटर सफाई की तकनीक से फैक्स मशीन की तकनीक को जोड़ कर थोड़ा पॉज लेता है…और एक अंधी युवाओं की भीड़ इस बेमेल तुलना पर ताली पीट देती है!
वामपंथ यही चाहता है! उसे तकनीक में भी सर्वहारापन चाहिए, उसे फैक्स मशीन पर बात करने में भी गटर की तकनीक पर चर्चा कर महानता का लबादा ओढ़ना होता है! चूंकि युवा वामपंथ के भटकाने के तरीकों से वाकिफ नहीं है, इसलिए वह जिस तरह कपिल शर्मा के शो की कॉमेडी पर ताली पीट कर लुत्फ उठाता है, उसी तरह रवीश कुमार की बकैती पर भी ताली पीट कर हा..हा..हा कर हंस देता है!
हालांकि रवीश को इससे गुस्सा आता है। तुनक कर उसने बीबीसी के फेक न्यूज वाले कार्यक्रम में उन युवाओं को दुत्कारा, जिसने उसके लिए भी ताली पीटी थी और उसी मंच पर बैठे एक साइबर विशेषज्ञ जितेन जैन के लिए भी ताली बजायी! रवीश को अकेले ताली की आदत पड़ चुकी है, इसलिए जब मंच पर उसकी बात काटने वाले जितेन को ताली मिली तो ऐसा लगा जैसे उसके पीछे सांढ़ छोड़ दिया गया हो! वह भड़क गया और युवाओं को नसीहत देने लगा कि दोनों पर एक साथ ताली पीटना उचित नहीं!
वामपंथी लोमड़ी की चालाकी में नजाकत सबसे बड़ा हथियार है और उपहास दूसरा। रवीश जैसा वामपंथी बहुत नजाकत से बात करने का स्वांग रचते हुए किसी का उपहास उड़ता रहता है, लेकिन ज्यों ही कोई एक तीखा सवाल पूछ ले, हाथ उठाकर कहेगा, ‘आसमान में उड़ते हेलीकॉप्टर में चुनाव प्रचार करने वाले क्या ईमानदारी से घूम रहे हैं?’ उसकी नजाकत का मेकअप उतर जाता है! उसके प्राइम टाइम को देख लीजिए, किसी को सवाल पूछने की वहां इजाजत नहीं है, ‘यही लोकतंत्र है’ का उसका जुमला केवल दूसरों पर हमला करने के लिए है!
हां तो, फिर उस वायरल वीडियो में रवीश बकैती कर रहा है- ‘यह बात मैंने क्यों कही। मैं चाहता तो अपने विशिष्ट अतिथि के सम्मान में इस बात को किनारे रख सकता था। मगर यह बात मैंने इनके ही सामने कही, क्योंकि यही लोकतंत्र है।’ जनाना-सी महीन आवाज में जब उसने यह कहा तो वह भूल गया कि उसके इसी एक वाक्य से उसकी ‘मालकिन की सरकार’ और उसके ‘पेटिकोट पत्रकार’ होने का प्रमाण वह खुद ही दे रहा है!
‘यही लोकतंत्र है’- उसने ज्यों ही यह कहा तो यह तो साबित कर दिया कि पिछले चार साल से उसने जो तानाशाही, फासीवाद, लोकतंत्र की हत्या-जैसे जुमले प्राइम टाइम से लेकर फेसबुक पर उछाले हैं, वह सब केवल एक झूठ था। आखिर एक गर्वनर के सामने कोई जब कहे-‘मुझे इन पर (राज्यपाल महोदय) पर पूरा भरोसा है कि ये कभी नहीं कहेंगे कि रवीश कुमार ने यह बात आईएसआई के हशारे पर कही थी।’ तो यह साबित हो जाता है कि लोकतंत्र ही है, जिसके कारण वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI को बचाने के लिए उसी पाकिस्तानी आतंकवाद से सर्वाधिक पीडि़त भारत के एक राज्य के राज्यपाल पर तंज कस रहा है! आखिर वह अप्रत्यक्ष रूप से यही तो कह रहा है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी वारदात में पाकिस्तान व उसके आईएसआई की कोई भूमिका नहीं है!
रवीश के इस सच स्वीकारने से कि ‘यही लोकतंत्र है’ यह स्पष्ट हो गया कि मई 2004 से 2014 तक इस देश में लोकतंत्र या तो नहीं था और यदि था तो कराह रहा था! अन्यथा 2004-14 के दौरान जिन 12 राज्य की सरकारों को अनुच्छेद-356 का दुरुपयोग कर ‘सोनिया माई की सरकार’ ने बर्खास्त किया, उस पर रवीश कुमार ने उस वक्त की ‘मनमोहनी सरकार’ या उसके मुखिया से कोई सवाल क्यों नहीं पूछा? क्यों नहीं उन 12 राज्यों में से किसी एक भी राज्यपाल पर वह उस तरह तंज कस सका, जिस तरह उसने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक पर अभी कसा है? क्या अपने या अपने जेम्स-रॉय मालिक या फिर उसकी कंपनी के ‘पेटिकोट’ के सरकने का डर तो नहीं था उसे?
यह सही है न रवीश कुमार कि उन 10 सालों में शायद तानाशाही इतनी गहरी थी कि तुम और तुम्हारे चैनल का पूरा पत्रकार कुनबा ‘सोनिया माई की सरकार’ से प्रश्न पूछने से डरता था? एक प्रश्न तो बताओ, जो तुमने या तुम्हारे चैनल ने 12 लाख करोड़ के घोटाले पर पूछे हो? उल्टा सीएजी के कॉमनवेल्थ गेम्स घोटले के रिपोर्ट में एनडीटीवी का नाम घोटाला पार्टनर के रूप में दर्ज है!
4 जून 2011 की रात दिल्ली की रामलीला मैदान में शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे एक आंदोलन को ‘मनमोहनी सरकार’ ने रातों-रात कुचल दिया, लेकिन तानाशाही इतनी थी कि अगले दिन 5 जून को एनडीटीवी पर इसे लेकर एक न्यूज तक नहीं चली और न ही रवीश कुमार का इस पर कोई प्राइम टाइम ही हुआ। शुक्रिया बकैत रवीश पांड़े, कम से कम तुमने यह तो मान लिया कि आज का लोकतंत्र 2004-2014 के बीच के लोकतंत्र से कहीं अधिक मजबूत है। चलो, तुम्हारे रंडापा से यह तो साबित हो ही गया।
मजनू जैसे बीच मांग किए, चश्मा लगाए, पिचके पिछाड़ी और निकले अगाड़ी पर कोर्ट-पतलून डाले बकैती करते, वह ठीक वैसा ही लगता है जैसे किसी नौटंकी का कोई विदूषक हो। विदूषक को लगता है कि जनता उसकी कलाकारी पर ताली बजा रही है, इसलिए वह और, और करतब दिखाता है, लेकिन असल में जनता उसके वेशभूषा, उसकी बेवकूफी का आनंद लेते हुए लहालोट होती रहती है। रवीश बाबू, हर ताली को अपने सवाल पूछने की कलाकारी मत समझ लेना! तुम्हारा सवाल तुम्हारे व्यक्तित्व जैसा ही ढीला-ढाला, लुढ़कता हुआ लिजलिजा होता है, बस उसमें मनोरंजन का तड़का ज्यादा है, इसलिए जनता ताली पीटते हुए लहालोट होती रहती है! एक विदूषक के लिए ताली तो बजना ही चाहिए! तो सब मिलकर बकैती करते इस विदूषक के लिए बजाओ ताली…
रवीश कुमार पर अन्य व्यंग्य…
* NDTV वाले रवीश कुमार का ‘रंडापा’ और उसके ही एक साथी का ‘आईना-प्रहार’!
URL: NDTV Ravish Kumar’s hypocrisy and agenda journalism exposed-2
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