देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन की स्थायी सदस्यता के लिए किस तरह अंतरराष्ट्रीय लाॅबिंग की थी, यह कल आपने इंडिया स्पीक्स डेली पर पढ़ा। आज आपको बताते हैं कि चीन के परमाणु शक्ति संपन्न बनने में भी जवाहरलाल नेहरू की ही भूमिका थी। यह तथ्य संदीप देव की पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ से एक श्रृंखला के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जाॅन.एफ.कैनेडी ने भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक प्रस्ताव दिया था। उन्होंने कहा था कि ‘मैं चाहता हूं कि एशिया में सबसे पहले परमाणु ताकत लोकतांत्रिक भारत बने, न कि क्युनिस्ट चीन।’ इसके लिए अमेरिका ने भारत को पूरी सहायता उपलब्ध कराने के लिए एक ब्लूप्रिंट 1961 में भेजा था, जिसे नेहरू ने ठुकरा दिया था। यदि नेहरू सरकार तक अमेरिका की मदद स्वीकार कर लेती तो फिर न 1962 में चीन भारत पर हमला करता, न ही वह एशिया का प्रथम परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र ही बनता।
अमेरिकी राष्ट्रपति जाॅन.एफ.कैनेडी ने अपने हाथ से लिखे पत्र के साथ अमेरिकी परमाणु उर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष का तकनीकी नोट भी संलग्न किया था कि जिसमें यह ब्लूप्रिंट था कि राजस्थान के थार रेगिस्तान में अमेरिकी वैज्ञानिक भारत को परमाणु विस्फोट करने में मदद करेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी लिखा था कि ‘चीन परमाणु परीक्षण करने वाला है जो भारत और नेहरू की सरकार के लिए सुरक्षा संबंधी खतरा पैदा करेगा।’
राष्ट्रपति ने पत्र में लिखा था, ‘मिस्टर नेहरू राष्ट्रीय सुरक्षा से बड़ी कोई चीज नहीं होती।’ लेकिन नेहरू ने उनकी बात नहीं मानी। 1961 के इस अमेरिकी प्रस्ताव को यदि नेहरू मान लेते तो शायद 1962
में चीन डर के कारण भारत पर कभी हमला नहीं करता और भारत के हिस्से पर कब्जा नहीं करता। उस समय तक चीन परमाणु शक्ति संपन्न नहीं बना था। उसने प्रथम परमाणु परीक्षण 1964 में किया था।
नोट- संदीप देव ने कहानी कम्युनिस्टों की में यह तथ्य पंडित नेहरू के समय विदेश सेवा में रहे महाराजकृष्ण रसगोत्रा की पुस्तक ‘ए लाइफ इन डिप्लोमेसी’ से लेकर प्रस्तुत किया है।