23 जनवरी का इस वर्ष से भारत के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान हो जायेगा। ऐसा नहीं था की इस दिन की पहले कोई विशेषता नहीं थी, लेकिन इस साल जो कुछ भी घटित होने वाला है वह विशेष है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिनको राजनितिक षड्यंत्रों के तहत इतिहास से गायब करने के कुत्सित प्रयास हुए है, उनसे जुड़े सभी रहस्यों का पर्दाफास होने की प्रक्रिया अब शुरू हो गयी है, भले ही किसी भय या मजबूरी वश सरकारें माने या न माने। देश अब नेताजी को वास्तव में एक अलग दृष्टि से देखने लगा है। दूसरे शब्दों में लिखूं तो ‘दे दी आजादी हमें बिना खड़ग बिना ढाल’ इस झूठी पंक्ति की पोल अब क्षण क्षण खुलती जा रही है। सत्य को जितना मर्जी दबाया जाए किसी न किसी दिन सत्य सूर्य की तरह प्रकट हो जाता है। कुछ वर्ष पूर्व तक मैं भी देदी आजादी हमें बिना खड़ग बिना ढाल से आगे नहीं सोचता था। लेकिन एक दिन दिल्ली में अखबार में पढ़ा कि नेहरू ने नेताजी की जासूसी करवाई थी। आज तक न्यूज़ पर वो लेख पढ़ा था, वहां से अनुज धर का नाम पता चला। उसके कुछ दिन एक पुस्तक खरीदी जिसका नाम था ‘नेताजी रहस्य गाथा‘, यह पुस्तक अनुज धर ने ही लिखी थी। पुस्तक पढने के बाद ‘दे दी आजादी हमें बिना खड़ग बिना ढाल’ वाला सगूफा दिमाग से हमेशा के लिए मिट गया और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मन में अलग की प्रतिमा बन गयी। क्योंकि स्कूल में हमें केवल इतना ही पता था कि नेताजी ने नारा दिया था,”तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” और कुछ पता था तो केवल ये कि नेताजी ने आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की थी। इसके आलावा यदि देश की स्वतंत्रता संबंधी जानकारी थी तो वह केवल ‘दे दी आजादी हमें बिना खड़ग बिना ढाल’ के अगल बगल ही घूमती थी। अनुज धर की ‘नेताजी रहस्य गाथा’ पुस्तक ने झकझोर कर रख दिया था। उसके बाद अनुज धर और चंद्रचूड़ घोष की Conundrum पुस्तक पढ़ी। स्व. लाल बहादुर शास्त्री पर अनुज धर द्वारा लिखी पुस्तक भी पढ़ी। ये पुस्तकें पढ़ने के बाद दिमाग में ये बात तो पक्की हो गयी की इस व्यक्ति का जन्म पंगे लेने के लिए हुआ है, और एक न एक दिन ये व्यक्ति बहुत बड़ा ऐतिहासिक उलट पलट करेगा।
अभी पिछले सप्ताह चंद्रचूड़ घोष और अनुज धर की एक पुस्तक मिली जिसका शीर्षक है,” नेताजी, गुमनामी बाबा और सरकारी झूठ (Vitasta Publication, Delhi)”
पुस्तक पढ़ने के बाद निसंकोच लिख सकता हूँ कि नेताजी प्रकरण को लेकर भारत सरकारों के रवैये को देखकर ‘सरकार’ नामक शब्द से घृणा सी हो गयी है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस या फिर लाल बहादुर शास्त्री आखिर अपने लिए कुछ चाहते थे क्या? जो उनके साथ सरकारों द्वारा इस तरह का व्यवहार किया गया। आखिर सरकारों की क्या मजबूरी रही थी कि नेताजी की मूर्ति अब जाकर इंडिया गेट पर लगाई जा रही है? क्या ये भी कोई खेल ही है? खैर! वर्तमान सरकार ने थोड़ा सा प्रयास तो किया है उसकी सराहना जरूर करनी चाहिए। लेकिन क्या नेताजी से जुड़े रहस्यों को बाहर नहीं आना चाहिए ? आखिर क्यों अनुज धर, चंद्रचूड़ घोष जैसे लेखक कई वर्षों से नेताजी प्रकरण में सरकारों को दोषी ठहरा हैं? क्या इस प्रकरण में भारत सरकार झूठ बोलती आ रही है? आखिर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रकरण पर पूर्ण विराम क्यों नहीं लग रहा है? बहुत सारे प्रश्न यह पुस्तक पढ़ने से पहले मन में उठते थे, लेकिन चंद्रचूड़ घोष और अनुज धर की पुस्तक ” नेताजी, गुमनामी बाबा और सरकारी झूठ” ने सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए। साथ ही यह भी अंदाजा हो गया है कि अभी लेखकों की जंग जारी रहेगी, क्योंकि सत्य जोकि हमारी कल्पनाओं से परे होता है उसे एक न एक दिन बाहर आना ही पड़ेगा।
252 पृष्ठों की यह पुस्तक अपने 12 अध्यायों में वो सब रहस्य और तथ्य अपने भीतर समाकर पाठकों की प्रतीक्षा कर रही है जिन्हे भारत के हर नागरिक को पता होना चाहिए। क्यों आवश्यक है यह जानकारी और क्यों भारत सरकार पर नेताजी के विषय को लेकर दबाब बनाने की आवश्यकता है? मेरा मत है जो इस पुस्तक को पढ़ेगा वह स्वतः ही मिशन नेताजी की टीम से जुड़ जाएगा।
नेताजी को लेकर लोग बहुत सारे प्रश्न पूछते हैं बल्कि दावे भी करते हैं, जैसे उनकी मृत्यु प्लेन क्रैश में हो गयी थी, कोई कहता है उनकी मृत्यु रूस में हुई थी। ये भी सुनने को मिलता है कि उत्तर प्रदेश में दशकों तक अज्ञातवास करने वाले गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे। आखिर सत्य क्या है? ये तो भारत सरकार के पास रखे हुए कागजात जिन्हे सरकार सार्वजिनक नहीं कर रही है, उनमें छुपा हुआ है। लेकिन यह पुस्तक पढ़ने के बाद मैं कह सकता हूँ की लेखकद्वय सत्य को अपने शोध के आधार पर इस पुस्तक में प्रकट कर चुके हैं।
इस पुस्तक में पाठक को पता चलेगा कि आखिर नेताजी के साथ क्या हुआ उनको लेकर चलने वाली तीन कथानकों में से कौन सा सत्य है। जस्टिस मुखर्जी आयोग का क्या कहना है ? जस्टिस मुखर्जी ने कौन से खुलासे किये है?
यदि नेताजी गुमनामी बाबा थे तो फिर क्यों सरकार के आधिकारिक कथनों एवं जस्टिस विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट का निष्कर्ष इससे भिन्न हैं? नेताजी कब और कैसे भारत लौटे? इतने वर्षों तक वे अपने ही देश में क्यों छिपकर रहे? क्यों सरकार इस सत्य को हम देशवासियों से छिपा रही है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाठक को इस पुस्तक में विस्तार से मिलेंगे। फ़ॉरेन्सिक विज्ञान ने नाम पर बनाईं गईं DNA एवं हैंडराइटिंग संबंधी रिपोर्टें झूठी क्यों है? और क्यों संसद में दिए गए वक्तव्य झूठे हैं, आखिर सरकार क्यों नहीं चाहती कि देश की जनता ये सब कुछ जानें? अनुज धर और चंद्रचूड़ घोष ने बहुत शोधपूर्ण और साहसिक कार्य इस पुस्तक के माध्यम से किया है।
पुस्तक में बहुत सारे डॉक्यूमेंट साक्ष्य स्वरूप लगे हुए हैं जो लेखकों के दावों को प्रामाणिक बनाते हैं। छठे अध्याय ‘सूत्रपात’ में पाठकों को एक वृतांत मिलेगा जिसके अनुसार प्रोफेस्सर अतुल सेन नामक एक स्वतन्त्रता सेनानी ने वर्ष 1962 में नेहरू जी को पत्र लिखकर बता दिया था कि ‘नेताजी जीवित हैं और भारत में किसी स्थान पर साधनारत हैं ‘; उस पत्र की प्रति जो लेखकों को RTI के माध्यम से मिली है, प्रमाण स्वरुप पृष्ठ संख्या 100 पर लगी है। यदि सच में नेताजी जीवित थे तो फिर वो बाहर क्यों न आये? यह प्रश्न लोगों के मन में उठता है और उठना स्वाभाविक भी है। इस प्रश्न का उत्तर पाठक को इस पुस्तक के अध्याय ‘अज्ञातवास की विवशता’ में विस्तार से मिलेगा। पुस्तक के पृष्ठ संख्या 100 से 105 के बीच बहुत ध्यान से पढ़ेंगे तो पाठक को चौंकाने वाली जानकारी मिलेगी। इसी पुस्तक में पाठक को नेताजी के DNA रिपोर्ट और हैंडराइटिंग को लेकर हर प्रकार के खेल के बारे में पता चलेगा, साथ ही पाठक यह भी जानेंगे की स्वतंत्र विदेशी एक्सपर्ट नेताजी के DNA और हैंडराइटिंग को लेकर क्या कहते हैं? और आखिर क्यों इस पुस्तक के लेखक इस बात पर अड़े हैं की DNA और हैंडराइटिंग संबंधी जांच यदि सरकार करवाना चाहती है तो वह भारत की सरकारी लैब्स में न हो, बल्कि अमेरिका जैसे देश में हो। ध्यातब्य है कि इस पुस्तक में DNA और हैंडराइटिंग संबंधी जांच के प्रमाण लगे हुए हैं जो लेखकों ने स्वतंत्र और विदेशी एक्सपर्ट्स से स्वयं करवाई है। पुस्तक का अध्याय ‘मृतक के वृतांत’ पाठक को हिलाकर रख देगा, ऐसा लिखने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है। नेताजी के विषय को लेकर भारत सरकार मौन क्यों है? इस प्रश्न पर भी विस्तार से प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। अंत में एक परिशिष्ट है जिसमें लेखकों से प्राय: पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न उत्तर सहित हैं। इस परिशिष्ट के माध्यम से लेखकों ने कदाचित बहुत छोटे में ही अनेक प्रश्नों या विवादों को शांत करने का उद्यम किया है। यहीं आपको उस प्रश्न का उत्तर भी मिलेगा कि क्या नेताजी उस समय ताशकंद में थे जब लाल बहादुर शास्त्री जी ने ताशकंद समझौता किया था और फिर जीवित भारत लौटकर नहीं आये थे।
संक्षेप में लिखूं तो यह पुस्तक नेताजी के विषय को लेकर अपने भीतर तथ्य और प्रमाणों का सागर छुपाये हुए है। जिसका भारत की जनता को जानना अति आवश्यक है। सम्भवतः यह पुस्तक नेताजी के प्रेमियों को एक नया और शक्तिशाली वातावरण बनाने में मदद करेगी क्योंकि ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल’ के झूठ का पर्दाफास करने की क्षमता केवल और केवल नेताजी सुभाष चंद्र बोस में ही है।
यह पुस्तक नीचे दिए गए लिंक से प्राप्त की जा सकती है :