पूरी मीडिया जगत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नफरत फैलाने का खेल सुनियोजित तरीके से चल रहा है। उनके खिलाफ नफरत फैलाने के इस खेल में पीडी पत्रकारों का एक पूरा गैंग लगा हुआ है। इस खेल को देखते हुए आईएएनएस का प्रधानमंत्री के खिलाफ बकचोद जैसे अपशब्द के साथ खबर जारी करना उसी साजिश का हिस्सा है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, मोदी के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए मीडिया में प्रधानमंत्री के प्रति गाहे बगाहे इस प्रकार के अपशब्द प्रयोग होते रहे हैं। चाहे किसी छोटी-मोटी पार्टी की आड़ में हो या किसी छुटभैये नेता के बयान की आड़ में, मीडिया इस खेल में अनवरत रूप से संलिप्त है। कभी दूसरों की आड़ लेकर तो कभी खुद हमला कर पत्रकारिता आज पूरी तरह गर्त में चली गई है।
मुख्य बिंदु
* प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आईएएनएस की गलती षडयंत्रकारी अपराध की श्रेणी में आनी चाहिए
* मोदी के खिलाफ नफरत फैलाने के इस खेल में पीडी पत्रकारों का एक पूरा गैंग लगा हुआ है
* इस प्रकार के पीडी पत्रकार गैंग को माफ करना पूरी पत्रकारिता के लिए घातक साबित होगा
गौरतलब है कि आइएएनएस ने 12 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा किसान कल्याण योजना की मंजूरी देने को लेकर एक खबर जारी की। मालुम हो कि जिस कैबिनेट बैठक में किसान कल्याण योजना को मंजूरी दी गई उसकी अध्यक्षता स्वयं नरेंद्र मोदी ने की थी। न्यूज एजेंसी आईएएनएस ने उस बैठक में प्रधामंत्री का उल्लेख करते हुए अपनी खबर में लिखा है कि “बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र बकचोद मोदी ने की थी”। उसने प्रधानमंत्री के नाम में जुड़े अपशब्द के साथ ही खबर जारी कर दी। मामला सामने आने पर हंगामा हुआ और एजेंसी ने एडवाइजरी जारी कर खबर वापस भी ले ली और ठीक कर दोबारा खबर जारी कर दी। न्यूज एजेंसी ने इस मामले के बाद जो भी नाटक हो सकता है किया। मसलन जांच का आदेश देना, संबंधित रिपोर्टर को तत्काल प्रभाव से निष्कासित करना, अपने पाठकों से तथा प्रधानमंत्री से गलती मांगना, तथा अपने “उज्ज्वल इतिहास” का हवाला देते हुए दोबारा ऐसी गलती नहीं करने का आश्वासन देना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन न्यूज एजेंसी को माफ भी कर देंगे। लेकिन सवाल उठता है कि उसे माफी मिलनी चाहिए?
कई सवाल इससे इतर भी हैं, जो मोदी विरोध में गिरती पत्रकारिता के साथ नफरत फैलाने वाले पीडी पत्रकारों और मीडिया हाउस की मंशा पर है। पत्रकारिता में गलती होना स्वाभाविक है, क्योंकि इसे लिटरेचर इन हरी की संज्ञा पहले से प्राप्त है। लेकिन अनयास गलती और सायास गलती में फर्क होता है। अनायास गलती माफ की जा सकती है लेकिन सायास गलती षडयंत्रकारी अपराध की श्रेणी में आती है। वो भी प्रधानमंत्री के खिलाफ! अब थोड़ा उस वाक्य “बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र बकचोद मोदी ने की थी” पर ध्यान दीजिए। क्या आपको लगता है कि यहां बकचोद शब्द का उपयोग अनायास हुआ है? जो पत्रकारिता से जुड़े हैं वे भलीभांति जानते हैं कि एक रिपोर्टर की रिपोर्ट कई चरणों से गुजरते हुए जारी होने या प्रकाशित होने के लिए जाती है। ऐसे में क्या सिर्फ एक रिपोर्टर जिम्मेदार होगा, या फिर उससे जुड़ा हुआ पूरा सिस्टम?
इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बकचोदी जैसे अपशब्द के उपयोग के लिए एक व्यक्ति के बजाए पूरी व्यवस्था के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए तभी मीडिया में फैले पीडी पत्रकार गैंग का होश ठिकाने आएगा। अगर इस बार भी मोदी ने फेक न्यूज को लेकर गठित होने वाले आयोग की तरह बड़ा दिल दिखाया तो वह पूरी पत्रकारिता के लिए घातक साबित होगा।
URL: News agency IANS uses expletive to describe PM Modi
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