इन दिनों एक बात की बहुत चर्चा हो रही है कि एक ओर हॉलीवुड हमारे महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन पर उत्कृष्ट फिल्म बना रहा है और दूसरी ओर हम खुद ‘संजय दत्त’, ‘हसीना पारकर’, दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन पर फ़िल्में बना रहे हैं। अंडरवर्ल्ड पर फ़िल्में बनाकर अपराधियों के लिए हमदर्दी पैदा करने का फैशन ज़ोर पकड़ता जा रहा है। ऐसी ही एक फिल्म चुपके से आपके पीछे आकर खड़ी हो गई है और आपको पता भी नहीं चला। निर्माता-निर्देशक अनुभव सिन्हा की नई फिल्म ‘मुल्क’ अगस्त में प्रदर्शित हो रही है। इस फिल्म को चर्चा में लाने के लिए वही हथकंडा अपनाया जा रहा है जो ‘पद्मावत’ और ‘लवरात्रि’ जैसी फिल्मों के लिए अपनाया गया है। फिल्म का प्रमोशन इस लाइन के साथ शुरू किया जाता है कि इसकी कहानी सच्ची घटना पर आधारित है। फिल्म से सम्बन्धित ख़बरों में बताया जा रहा है कि ये एक ऐसे पिता की कहानी है जिसने अपने आतंकी बेटे का शव लेने से इनकार कर दिया था। अबकी बार हमदर्दी किसी अपराधी के लिए नहीं बल्कि एक दुर्दांत आतंकी और उसके परिवार के लिए दिखाई जा रही है। आजकल फिल्म उद्योग ‘गंगा घाट’ का रूप ले चुका है, जहाँ पर अपराधियों के पाप थोक में धोए जा रहे हैं।
पहली नज़र में देखने पर ऐसा लगता है कि ये कोई सामाजिक सरोकार वाली फिल्म है जिसमे आतंकी के पिता के किरदार को उभारा गया है। लेकिन जब हम फिल्म का पहला ट्रेलर देखते हैं तो अपना अनुमान झुठलाता सा लगता है। ट्रेलर में दिखाया जा रहा है कि आतंकी के पिता समेत उसके परिवार को अभियुक्त बना दिया गया है और महिला वकील उस परिवार की खोई इज़्ज़त लौटाने के लिए लड़ रही है। देश में स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है। आप किसी भी विषय पर फिल्म बना सकते हैं। लेकिन आप ये कहते हैं कि फिल्म सत्य घटना पर आधारित है तो बात बदल जाती है।
पिता के अपने आतंकी बेटे का शव लौटाने की दो घटनाएं हैं। एक जम्मू-कश्मीर में घटी थी और एक लखनऊ में। दोनों ही घटनाओं में ऐसा नहीं पाया गया कि आतंकी के परिवार को सह अभियुक्त बनाया गया हो। मामला कोर्ट में गया हो और एक वकील ने उन्हें उनका सम्मान वापस दिलाया हो। अनुभव सिन्हा यदि एक सच्ची कहानी पर फिल्म बना रहे हैं तो इतना भयानक काल्पनिक तथ्य क्यों डाल रहे हैं जिससे देश का सामाजिक तानाबाना प्रभावित हो। आप स्पष्ट तौर पर उस परिवार का नाम नहीं बता सकेंगे क्योंकि उस परिवार के साथ ऐसा घटित ही नहीं हुआ था।
स्पष्ट हो रहा है कि उस फिल्म के जरिये आप एक नरेटिव स्थापित करने का प्रयास करेंगे जैसा ‘संजू’ में राजकुमार हिरानी ने किया था। और जब विरोध उठेगा तो आप कहानी को काल्पनिक कहकर विरोध करने वालों को गुंडे की संज्ञा देंगे। अनुभव सिन्हा की हालिया योजना तो यही दिखाई दे रही है। फिल्म में आतंकी का मुख्य पात्र निभा रहे अभिनेता प्रतीक बब्बर आतंकी डेविड हेडली के बारे में पढ़ते हैं और उन्हें ‘मिस गाइडेड यूथ’ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। जो युवा देश के खिलाफ बन्दूक उठा ले उसे भटका हुआ युवा कहने का फैशन चल पड़ा है।
एक अच्छा मसाला मिल गया है फिल्मकारों को। संजय लीला भंसाली ने अन्य फिल्म निर्देशकों को ये रास्ता दिखा दिया है कि विवादित विषय पर फिल्म बनाओ। अच्छा खासा विवाद खड़ा करो। फिल्म का विरोध हो तो कोर्ट में चले जाओ। इतना कर लिया तो फिल्म कामयाब होकर रहेगी। ‘मुल्क’ फिल्म को कामयाब बनाने के लिए भी इसी रणनीति का प्रयोग किया जा रहा है। ऐसी विवादित फ़िल्में बनकर रिलीज के लिए तैयार हो जाती हैं लेकिन देश का सुचना व प्रसारण मंत्रालय को खबर तब होती है जब फिल्म सेंसर से क्लियर हो जाती है। इसके बाद ऐसी फिल्मे जनमानस के लिए क्लेश का कारण बनती है।
नोट: अनुभव सिन्हा की मुल्क को आप नीचे के लेख द्वारा ज्यादा बेहतर समझ सकते हैं
URL: Next step towards creating sympathy for the criminals is Anubhav Sinha’s forthcoming film ‘Mulk’
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