विपुल रेगे। गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर सन 2002 में भयंकर आतंकी हमला हुआ था। हमले में 32 निर्दोष लोग मारे गए थे। उस प्रलयंकारी दिन की कड़वी स्मृतियाँ अब भी भारतीय नागरिकों को पीड़ा देती है। अक्षरधाम आतंकी हमले पर एक उत्कृष्ट फिल्म बनाई गई है। अक्षय खन्ना अभिनीत ‘स्टेट ऑफ़ सीज़ टेम्पल अटैक’ उस हमले के बीस वर्ष पश्चात बनाई गई है किंतु इसे देखते हुए हम बीस वर्ष पीछे लौट जाते हैं और उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन को ढाई घंटे में जीते हैं।
ओटीटी मंच : ZEE5
फिल्म की शुरूआत सन 2000 में गुजरात के भीषण दंगों से होती है। पाकिस्तान के आतंकी इसका प्रतिशोध लेने के लिए गाँधी नगर के अक्षरधाम मंदिर पर आतंकी हमले की योजना बनाते हैं। आतंकी मंदिर में घुसकर श्रद्धालुओं को बंधक बना लेते हैं। गुजरात पुलिस और एनएसजी कमांडों मिलकर मंदिर की घेराबंदी करते हैं।
लगभग 24 घंटे के इस आपरेशन में एनसीजी कमांडो न केवल आतंकियों का सफाया कर देते हैं, बल्कि बंधकों के बदले छोड़े गए एक मास्टरमाइंड को भी भारतीय सीमा पार नहीं करने देते। फिल्म निर्देशक के.एन.घोष ने एक संतुलित फिल्म बनाई है। एक स्मूद स्क्रीनप्ले, जो दर्शक को सरसता के साथ कहानी में प्रवेश करवा देता है। फिल्म के कुछ सीक्वेंस दर्शक को सुखद अनुभूति देते हैं।
निर्देशक ने आतंक का ऐसा वातावरण बनाया है कि हम बीस वर्ष पूर्व के आतंकी हमले की तीव्रता को अनुभव कर पाते हैं। तकनीकी रुप से फिल्म सशक्त है। एक्शन दृश्य सहजता से फिल्माए गए हैं। फिल्म के मुख्य पात्र को जबरन हीरो बनाने की बॉलीवुडी परंपरा से भी निर्देशक ने किनारा कर लिया। इसके कारण फिल्म वास्तविक प्रतीत होती है।
फिल्म का क्लाइमैक्स इसकी यूएसपी है। क्लाइमैक्स में पाकिस्तानी गोलीबारी के बीच ठहाके लगाता सिख सैनिक फिल्म को एक सुखद और सुंदर अंत की ओर ले जाता है। कलाकारों ने स्वाभाविक अभिनय किया है। अक्षय खन्ना ने अपने किरदार से विशेष छाप छोड़ी है। ये किरदार उनके लिए नए ऑक्सीजन टैंक की तरह होगा।
उनकी मार्केट वेल्यू इस किरदार के बाद और सुधरेगी। अभिमन्यु सिंह, गौतम रोडे, विवेक दहिया ने भी अपने किरदार सुंदरता से निभाए हैं। ये एक दर्शनीय फिल्म है और दर्शक को उस साहसी आपरेशन का एक अनुमान दे सकती है। इस फिल्म में कुछ बुराइयां भी हैं, जिन पर बात होनी आवश्यक है।
सबसे पहले तो फिल्म का नाम अंग्रेज़ी में क्यों रखा गया। क्या ‘अक्षरधाम’ शीर्षक से फिल्म नहीं बनाई जा सकती थी ? फिल्म में बॉलीवुड की चिरपरिचित बेलेंसिंग के भी दर्शन होते हैं। एक मुस्लिम पात्र मंदिर में कार्य करता है और वह आतंकियों को मानवता का पाठ पढ़ाने जाता है। ये दृश्य वास्तविक नहीं लगता।
ऐसा कौन होगा जो मशीनगन से लैस आतंकियों को जाकर कहेगा कि निर्दोष लोगों को मत मारो। ये बेलेंसिंग हमें हर उस फिल्म में दिखाई देती है, जिसमे विषय हिन्दू-मुस्लिम या आतंक से संबंधित होता है। एक साहसिक फिल्म बनाने के बाद किसी ‘डर’ से ये बैलेंसिंग कर निर्देशक ने चाँद में दाग लगा लिया है।
‘स्टेट ऑफ़ सीज़ टेम्पल अटैक’ अक्षरधाम हमले पर बनी एक दर्शनीय फिल्म है। युवा दर्शकों को ये फिल्म अवश्य देखनी चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि अतीत में भारत कुछ ऐसा था कि आतंकी ऐसे घुसते थे, जैसे सैर-सपाटे पर निकले हो। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन करेगी और इसे ‘उरी -द सर्जिकल स्ट्राइक’ वाली सफलता भी मिल सकती है।